आज मनाई जा रही है शनि जयंती, जानें शनिदेव क्यों हुए थे अपने पिता सूर्यदेव पर क्रोधित
आप सभी को बता दें कि शास्त्रो में शनिदेव को न्यायाधीश की उपाधि दी गई है. वहीँ वह ही हैं जिनके पास हमारे सभी कर्मों का लेखाजोखा रहता है. वह हर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देते हैं. ऐसे में ज्येष्ठ मास की अमावस्या यानी आज उनकी जयंती मनाई जा रही है और धार्मिक परंपराओं में बताया गया है कि इस दिन शनिदेव का जन्म हुआ था. आप सभी को बता दें कि इस अमावस्या को ही महिलाएं अपने पति की दीर्घायु का व्रत रखती हैं और बड़ अमावस्या का पर्व मनाती हैं. तो आइए जानते हैं शनि के जन्म की
पौराणिक कथा- शनि के जन्म की पौराणिक कथा- स्कंदपुराण के अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ. सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी. वक्त के साथ सूर्य देव और संज्ञा की वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतान हुईं. लेकिन संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी. सूर्य के तेज को कम करने के लिए संज्ञा ने अपनी हमशक्ल संवर्णा को पैदा किया और बच्चों की देखरेख का जिम्मा उसको सौंपकर खुद अपने पिता के घर चली गई. पिता के साथ न देने पर संज्ञा घोड़ी का रूप लेकर वन में जाकर तपस्या करने लगी. वहीं छाया रूप होने के कारण सवर्णा को भी सूर्य के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई. सूर्य और संवर्णा के मिलन से फिर 3 संतानें हुईं-मनु, शनिदेव और भद्रा.
वहीँ बह्मपुराण में बताया गया है कि शनिदेव छाया के पुत्र होने के कारण वर्ण में काले थे तो उनके पिता सूर्यदेव को शक हुआ कि शनिदेव उनके पुत्र नहीं हैं और उन्होंने सवंर्णा पर आरोप लगाया कि यह उनके पुत्र नहीं हैं. इस बात को सुनकर शनिदेव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने गुस्से से अपने पिता को देखा तो उनके प्रभाव से वह भी काले हो गए. वहीँ जब सूर्य को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने माफी मांगी और तब जाकर सूर्य को उनका असली रूप प्राप्त हुआ.