दोषी ब्रजेश ठाकुर ने अदालत के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में दी चुनौती, कोर्ट ने CBI को दिया ये आदेश
बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह में दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न के चर्चित मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे मुख्य दोषी ब्रजेश ठाकुर ने निचली अदालत के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। बुधवार को सुनवाई के दौरान ब्रजेश ठाकुर की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) को पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया है।
हाई कोर्ट में दायर याचिका में ब्रजेश ठाकुर ने उसे दोषी ठहराने एवं उम्रकैद की सजा सुनाने के 20 जनवरी 2020 के साकेत कोर्ट के फैसले रद करने की मांग की है। याचिका पर आने वाले दिनों में सुनवाई हो सकती है। निचली अदालत ने ब्रजेश ठाकुर समेत 19 लोग को दोषी करार दिया था। निचली अदालत ने ब्रजेश ठाकुर पर 32.20 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। अधिवक्ता निशांक मत्तो के माध्यम से दायर चुनौती याचिका में ब्रजेश ठाकुर ने कहा कि साकेत कोर्ट ने जल्दबाजी में सुनवाई की और यह उनके निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है।
उसने यह भी दावा किया कि उसके खिलाफ निचली अदालत ने पक्षपातपूर्ण तरीके से सजा का फैसला सुनाया। उसने यह भी दावा किया कि उसके आवेदन को बिना दिमाग लगाए ही खारिज कर दिया गया। अपील याचिका में कहा गया कि दुष्कर्म के मामले में पोटेंसी टेस्ट मूलभूत तथ्यों में से एक है, लेकिन बिहार पुलिस से लेकर केंद्रीय जांच एजेंसी तक ने ब्रजेश का पोटेंसी टेस्ट नहीं कराया। अपील याचिका में कहा गया कि निचली अदालत यह तथ्य देखने में नाकाम रहा कि दुष्कर्म के मामले में अभियोजन को सबसे यह स्थापित करना अनिवार्य है कि आरोपित पोटेंट (जनन-क्षम) है और उक्त आरोप को करने की क्षमता रखता है। अपील याचिका में कहा गया कि निचली अदालत का फैसला अवैध, गलत, दोषपूर्ण है और इसे रद किया जाना चाहिए।
सात महीने की नियमित सुनवाई के बाद दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 20 जनवरी 2020 को ब्रजेश ठाकुर को पॉक्सो की धारा-6, दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म की धारा में दोषी करार दिया था। ब्रजेश के अलावा कुल 19 दोषियों को अदालत ने सजा सुनाई थी। अदालत ने इसके साथ ही तीन दुष्कर्म पीडि़ताओं को 5.50 लाख रुपये, एक पीडि़ता को छह लाख एवं 9 लाख रुपये एक अन्य पीडि़ता को देने का निर्देश दिया था। इसके अलावा दो पीडि़ताओं को 40-40 हजार एवं एक अन्य पीडि़ता को 25 हजार रुपये का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यह मामला बिहार के मुजफ्फरपुर की जिला अदालत से साकेत कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था। पूरा मामला तब सामने आया था जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि बालिका गृह में लड़कियों का यौन उत्पीड़न किया जा रहा है।