जनता के बीच प्रभावशाली लोकप्रियता की वजह से नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने : ‘द प्रेसिडेंसियल ईयर्स

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के मुताबिक वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा को मिले निर्णायक जनादेश ने साफ तौर पर इंगित किया कि जनता राजनीतिक स्थिरता चाहती थी। उनके अनुसार नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद ‘अर्जित’ किया। दिवंगत मुखर्जी ने अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017’ में इस बात का भी उल्लेख किया कि मोदी ‘जनता के लोकप्रिय पसंद’ के रूप में देश के प्रधानमंत्री बने जबकि मनमोहन सिंह को इस पद के लिए ‘सोनिया गांधी की ओर से पेशकश की गई थी।’

उन्होंने यह पुस्तक पिछले साल अपने निधन से पहले लिखी थी। रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक मंगलवार को बाजार में आई। पुस्तक में मुखर्जी ने लिखा कि हर आम चुनाव की अपनी महत्ता होती है क्योंकि उनमें जिन मुद्दों पर बहस होती है, उन्हीं के बारे में मतदाता के विचार और राय परिलक्षित होते हैं।

उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2014 के आम चुनाव के नतीजे दो कारणों से ऐतिहासिक थे। पहला यह कि तीन दशकों के बाद किसी दल को खंडित जनादेश की जगह निर्णायक जनादेश मिला। दूसरा, भाजपा का पहली बार बहुमत हासिल करना। वह अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम थी लेकिन इसके बावजूद उसने गठबंधन के साथ सरकार बनाना तय किया।’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन वास्तविक विजेता तो मतदाता थे जो बड़ी संख्या में मतदान करने निकले और निर्णायक मतदान किया और राजनीतिक स्थिरता को तरजीह देने का संकेत दिया। जनता का मानना था कि इससे विकासपरक राजनीति को बल मिलेगा।’ मुखर्जी ने कहा कि उनका भी यही मानना था कि जनता गठबंधन की राजनीति और राजनीतिक दलों के सुविधानुसार पाला बदलने से तंग आ चुकी थी।

उन्होंने कहा, ‘गठबंधन सामान्य रूप से किसी एक दल या किसी एक व्यक्ति विशेष को सत्ता में आने से रोकने के लिए बनाया जाता है।’ मोदी और सिंह की तुलना करते हुए मुखर्जी ने कहा कि दोनों . के प्रधानमंत्री बनने के तरीके बहुत अलग थे। बतौर राष्ट्रपति मुखर्जी ने मोदी और सिंह दोनों के साथ काम किया था।

उन्होंने लिखा, ‘डॉक्टर सिंह को इस पद की पेशकश सोनिया गांधी ने की थी, जिन्हें कांग्रेस संसदीय दल और संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) के अन्य घटक दलों ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुना था, लेकिन उन्होंने (सोनिया) इस पेशकश को ठुकरा दिया था।’

उन्होंने लिखा कि दूसरी तरफ, ‘मोदी 2014 में भाजपा की ऐतिहासिक जीत का नेतृत्व कर प्रधानमंत्री पद के लिए जनता की पसंद बने। वह मूल रूप से राजनीतिज्ञ हैं और जिन्हें भाजपा ने पार्टी के चुनाव अभियान में जाने पहले ही प्रधानमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया। वह उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनकी छवि जनता को भा गई। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद अर्जित किया है।’

मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा कि उनके कार्यकाल के दौरान मोदी से उनके सौहार्दपूर्ण संबंध रहे। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, नीतिगत मुद्दों पर मैं उन्हें अपनी सलाह देने में नहीं हिचकता था। कई ऐसे मौके भी आए जब मैंने किसी मुद्दे पर अपनी चिंता प्रकट की और उन्होंने भी उस पर अपनी सहमति जताई।’

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के बारे में उन्होंने लिखा, ‘इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरा उतरने में पूरी तरह विफल रही। चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद जब सभी चुनावी प्रक्रियाएं समाप्त हो गईं तब कांग्रेस के कई प्रमुख नेता और मंत्री राष्ट्रपति भवन में मुझसे मिले। मजेदार बात ये है कि इनमें से किसी को भी कांग्रेस या फिर संप्रग को बहुमत मिलने की उम्मीद नहीं थी।’

मुखर्जी ने विदेश नीति की बारीकियों को जल्द समझ लेने के लिए मोदी की सराहना भी की। उन्होंने कहा, ‘नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्हें विदेश मामलों का लगभग न के बराबर अनुभव था। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने कुछ देशों का दौरा किया था लेकिन वे दौरे उनके राज्य की भलाई से संबंधित थे। उनका घरेलू या वैश्विक विदेश नीति से बहुत कम लेना देना था। इसलिए विदेश नीति उनके लिए ऐसा क्षेत्र था जिससे वह परिचित नहीं थे।’

उन्होंने लिखा, ‘लेकिन उन्होंने ऐसा काम किया जिसका पहले किसी अन्य प्रधानमंत्री ने प्रयास नहीं किया। उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित सार्क देशों के प्रमुखों को 2014 के अपने पहले शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया। लीक से हटकर उठाए गए उनके इस कदम ने विदेश नीति के कई जानकारों तक को आश्चर्य में डाल दिया।’

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