‘नैकरे’ बैक्टीरिया का इस्तेमाल, चिकित्सा प्रत्यारोपण और भविष्य में चंद्रमा पर घर बनाने में होगा
वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया का इस्तेमाल कर एक सिंथेटिक मदर ऑफ पर्ल का निर्माण किया है। यह कठोर होने के साथ ही थोड़ा लचीला भी है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इसका इस्तेमाल चिकित्सा प्रत्यारोपण और भविष्य में चंद्रमा पर इमारतें बनाने में हो सकता है। मदर ऑफ पर्ल के नाम से जानी जाने वाली इस सामग्री को नैकरे के नाम से भी जाना जाता है। यह कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों का मिश्रण है।
प्राकृतिक रूप से इसका निर्माण कुछ घोंघों द्वारा अपने आवरण को कठोर करने के लिए किया जाता है। साथ ही यह मोती के बाहरी परत में भी पाया जाता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि नैकरे के अद्वितीय गुण होने के कारण इससे सिंथेटिक सामग्रियां बनाई जा सकती हैं। वर्तमान में कृत्रिम नैकरे बनाने वाली विधियां जटिल और ऊर्जा की खपत वाली हैं।अमेरिका की रोचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया का उपयोग करते हुए एक कृत्रिम नैकरे बनाने की एक नई तकनीक विकसित की गई है।
यह विधि सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल है। यह कृत्रिम नैकरे जैविक रूप से निर्मित सामग्री से बना होता है। इसमें प्राकृतिक नैकरे की कठोरता होने के साथ ही लचीलापन भी है। इस तकनीक को स्माल जर्नल में प्रकाशित किया गया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि जब उन्होंने कृत्रिम रूप से बनाए गए नैकरे के सैंपल को इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से देखा तो पता चला कि बैक्टीरिया द्वारा बनाई गई संरचना प्राकृतिक रूप से घोंघों के द्वारा उत्पादित नैकरे के समान ही है। इसकी सबसे खास विशेषता यह है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है।
प्रत्यारोपण में होगा फायदेमंद
रोचेस्टर यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर ऐनी एस मेयर ने बताया कि इस नैकरे का उपयोग मनुष्यों में अंग प्रत्यारोपण में बेहद कारगर होगा। वर्तमान में हड्डी टूटने पर ऑपरेशन के दौरान धातु की पिन लगाई जाती हैं। इन्हें बाहर निकालने के लिए एक बार फिर ऑपरेशन करना पड़ता है।
बताया कि अगर धातु की जगह नैकरे का इस्तेमाल किया जाएगा तो इन्हें बाहर निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
भविष्य में चंद्रमा पर भवन बनाने के लिए होगा कारगर
वैज्ञानिकों ने बताया कि यह नैकरे भविष्य में चंद्रमा पर भवनों को बनाने के लिए एक आदर्श सामग्री होगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए अंतरिक्ष यात्रियों को केवल बैक्टीरिया ले जाने होंगे।
बताया कि चंद्रमा की धूल में भारी मात्रा में कैल्शियम मौजूद है। अंतरिक्ष यात्रियों को इसके अलावा यूरिया बनानी होगी जिसके बाद से कैल्शियम कार्बोनेट की परतें आसानी से बनाई जा सकेंगी