उत्तराखंड में रेमडेसिविर को लेकर मचा हाहाकार, बाजार से गायब है इंजेक्शन, हो रही कालाबाजारी

देहरादून, कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार के साथ ही रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। बाजार से इंजेक्शन गायब है और कोरोना संक्रमित मरीजों के स्वजन इसके लिए दर-दर भटक रहे हैं। यहां तक की सरकारी अस्पतालों में भी इंजेक्शन का स्टॉक खत्म हो चुका है। हालिया स्थिति यह है कि लोग कोई भी कीमत चुकाकर इंजेक्शन पाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में इंजेक्शन की कालाबाजारी भी हो रही है। जबकि, विशेषज्ञों के अनुसार हर मरीज को इस इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं होती। होम आइसोलेशन वाले मरीजों को तो कतई नहीं। उनका कहना है कि कुछ लोग इस इंजेक्शन को ‘संजीवनी’ मान बैठे हैं, जो गलत है। 

राज्य में क्रिटिकल केयर एंड पेशेंट मैनेजमेंट के हेड डॉ. आशुतोष सयाना का कहना है कि सामान्य लक्षण वाले मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं लगाया जाता है। गंभीर लक्षण वाले मरीज में ऑक्सीजन का स्तर कम पाए जाने पर यह इंजेक्शन देना जरूरी हो जाता है। बुखार कोरोना का मुख्य लक्षण है। अगर बुखार 100 डिग्री से अधिक हो और दो दिन तक तापमान कम होने का नाम न ले, तब इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता पड़ सकती है। सामान्य बुखार में इस इंजेक्शन की जरूरत नहीं होती। 

डॉ. सयाना के अनुसार कोरोना वायरस फेफड़ों पर हमला करता है। ऐसे में जिन व्यक्तियों के फेफड़ों में पहले से कोई समस्या है, उनके लिए यह इंजेक्शन प्रभावी हो सकता है। सीटी स्कैन में 25 प्रतिशत से अधिक संक्रमण नजर आता है तो चिकित्सक रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि बेवजह इंजेक्शन लगा देने से मरीज को इसके दुष्परिणाम भी झेलने पड़ सकते हैं। इसीलिए यह इंजेक्शन लगाने से पहले मरीज का लिवर, किडनी फंक्शन टेस्ट आदि कराया जाता है। 

जीवनरक्षक नहीं रेमडेसिविर

डॉ. आशुतोष सयाना के अनुसार रेमडेसिविर इंजेक्शन सभी मरीजों पर काम नहीं करता है। यह दवा मरीज को रिकवर करने में मदद कर सकती है, पर यह कहना गलत है कि इससे मृत्यु दर को नियंत्रित किया जा सकता है। किसी मरीज के ऑक्सीजन का स्तर काफी गिर गया हो। वह सांस लेने की स्थिति में नहीं हो और वेंटिलेटर पर हो तो इसका असर नहीं होता है। अगर कोई व्यक्ति इसे जीवनरक्षक मान बैठा है तो वह गलत है। 

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