गुरु – शिष्य के संबंधों को दर्शाता कार्यक्रम स्तंभ संपन्न, नर्तकों की विभिन्न प्रस्तुतितों से दर्शक हुए भावविभोर

लखनऊ। गुरु – शिष्य के प्रगाढ़ संबंधों की गरिमा को दर्शाता कार्यक्रम स्तंभ (ओशिन ऑफ़ कथक) (कथक नृत्य को समर्पित का शास्त्रीयता प्रतिबिंब) में वंदन कार्यक्रम का आयोजन किया गया |


इसका मुख्य उद्देश्य कथक नृत्य के शिष्य द्वारा अपने गुरुओं की चरण वंदना करना था | कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि श्रीमती नीलम यादव , डॉ० नीलम विनय डॉ० विनय शाही, डॉ०डी०के० चतुर्वेदी तथा अंसुमाली टंडन की गरिमामयी उपस्थिति रही बता दें कि स्तंभ की संस्थापिका एवं निर्देशिका अर्चना तिवारी द्वारा विगत 4 वर्षों से संस्था का संचालन किया जा रहा है।


इस संस्था का मुख्य उद्देश्य आज की युवा पीढ़ी को कथक नृत्य के प्रति जागरूक करना एवं उन्हें नवीन प्रयोगों द्वारा कत्थक नृत्य शैली को सशक्त रूप देना व लोगों को कत्थक की शास्त्रीय परंपरा शैली से जोड़ते हुए उनका मार्ग प्रशस्त करना है। आज के वंदन कार्यक्रम में विभिन्न नृत्य प्रस्तुतियों का मंचन किया गया जिसमें प्रमुख रुप से अर्धनारीश्वर, पंचवटी, श्री कृष्ण नर्तकी पराशिष्ट शामिल रहे। कार्यक्रम की परिकल्पना व अवधारणा अद्भुत संस्था की संस्थापिका एवं निर्देशिका अर्चना तिवारी की थी

अर्धनारीश्वर प्रस्तुति के अंतर्गत भगवान शिव के अर्धनारीश्वर अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का मंचन किया गया। भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप जहां शिव जी के तांडव रूप की उग्रता को दर्शाता है, वही पार्वती जी का शांत रूप कोमलता का प्रतीक है।

रामायण महाकाव्य में पंचवटी का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से सीता माता का हरण हुआ था। साथ ही यही स्थान रावण के विनाश का कारण भी बना था। प्रस्तुत पद इसी परिदृश्य को हिंदी महाकाव्य में संकलित एवं मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित खंडकाव्य पंचवटी है।

श्री कृष्ण नर्तकी की संजीव संगीत रचना राजीव महावीर म्यूजिक कंपोजर, निर्देशक संदीप महावीर ने पद्म भूषण पंडित बिरजू महाराज को समर्पित किया है।

आठ शास्त्रीय नृत्य में सबसे प्राचीन नृत्य कत्थक जिसका मध्यकाल से कृष्ण कथा और नृत्य से संबंध रहा है उसी संबंध को छात्रों द्वारा अपनी कथक नृत्य शैली द्वारा प्रस्तुत किया गया।

पराशिष्ट सरगम सुरों की वर्णमाला है जिसमें किसी जाति या प्रकार का भेद नहीं होता। उसी जगह पर कथक नृत्य में जितनी भी जातियां हैं उसका इस सरगम में साथ-साथ पखावज परन का भी सुंदर प्रयोग किया गया। लखनऊ के कत्थक को सूफी अंदाज में पिरो कर दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।


इस सूफी रंग में अंगों का संचालन एवं भाव विन्यास देखने को मिला। नृत्य की यह शैली जहां एक और खुदा की इबादत का पैगाम दे रही थी वहीं दूसरी ओर भगवान की भक्ति में भी सराबोर थी।


दोनों ही रंगों में भक्ति भाव की लहर ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। कत्थक और सूफी का यह संगम दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर देखा।
सूफी गीत भर दो झोली तथा तथा भक्ति गीत सांसों की माला की मिली जुली प्रस्तुति कार्यक्रम को एक नई उल्लास और प्रेरणा दे रही थी।
इसकी प्रस्तुति अर्चना तिवारी की शिष्य अंजुल वाजपेई, सिद्धार्थ राय, अविनाश सिंह, अपूर्व तिवारी, सिम्मी कुमारी व अपरा अग्रवाल द्वारा की गई।

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