सुशासन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सबसे आवश्यक है इनके अनुपालन की प्रक्रिया को मजबूत बनाना
प्रक्रिया को मजबूत बनाना
गौरतलब है कि सुशासन भरोसे पर टिका होता है। हमारे देश में संस्थागत और कानूनी ढांचा कमजोर नहीं है परंतु सुशासन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सबसे आवश्यक है इनके अनुपालन की प्रक्रिया को मजबूत बनाना
आज हमारे देश में राजनीति और कार्यकारी इकाइयों समेत तमाम जन कल्याणकारी संगठन नैतिक रूप से कितने सबल हुए हैं, इसे समझने का समय आ चुका है। आजादी के अमृत महोत्सव के दौर में हमें इसे समझना भी चाहिए। दरअसल आचार संहिता, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और प्रशासनिक कानूनों से लोक सेवकों के लिए नैतिकता को सबल बनाने का प्रयास किया गया है, मगर भ्रष्टाचार से मुक्ति का मार्ग नहीं मिला है। लोकतंत्र का लेखा-जोखा संख्या बल पर है, न कि सत्यनिष्ठा और नैतिकता पर। ऐसे में कार्यकारी संदर्भ बिना किसी ठोस संहिता के नैतिकता के मामले में कमतर बनी रह सकती है। जाहिर है, आचरण नीति केवल लोक सेवकों के लिए नहीं, बल्कि उस शासन के लिए भी व्यापक रूप में होना चाहिए जो राष्ट्र और राज्य में ताकतवर हैं और वैधानिक सत्ता से पोषित हैं। साथ ही देश बदलने की इच्छाशक्ति तो रखते हैं, लेकिन लालच से मुक्त नहीं है।स्पेन की सुशासन संहिता पर दृष्टि डालें तो यह दुनिया में कहीं अधिक प्रखर रूप में दिखती है, जहां निष्पक्षता, तटस्थता व आत्मसंयम से लेकर जनसेवा के प्रति समर्पण समेत 15 अच्छे आचरण के सिद्धांत निहित हैं। आचार नीति मानव चरित्र और आचरण से संबंधित है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने आचार नीति पर अपनी दूसरी रिपोर्ट में शासन में नैतिकता से संबंधित कई सिद्धांतों को उकेरा था। पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस बात का जिक्र किया था, ‘भ्रष्टाचार जैसी बुराइयां कहां से उत्पन्न होती हैं? यह कभी न खत्म होने वाले लालच से आता है।ऐसे में भ्रष्टाचार मुक्त नैतिक समाज के लिए इस लालच के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। इस बात को बिना दुविधा के समझ लेना ठीक होगा कि देश तभी ऊंचाई को प्राप्त करता है जब शासन में आचार नीति सतही नहीं हो। जिम्मेदारी और जवाबदेही आचार नीति के अभिन्न अंग हैं और यह सुशासन की पराकाष्ठा है। आचार नीति एक ऐसा मानक है जो बहुआयामी है और यही कारण है कि यह दायित्वों के बोझ को आसानी से सह लेती है। यदि दायित्व बड़े हों और आचरण के प्रति गंभीर न हों तो जोखिम बड़ा होता है।देखा जाए तो नेतृत्व मुख्य रूप से बदलाव का प्रतिनिधित्व होता है और उन्नति उसका उद्देश्य। मात्र लोगों की आकांक्षाओं को ऊपर उठाना, सत्ता हथियाना और नैतिक विहीन होकर स्वयं का शानदार भविष्य तलाशना न तो नेतृत्व की श्रेणी है और न यह आचार नीति का हिस्सा है। यहां पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का एक कथन फिर ध्यान आ रहा है कि सुयोग्य नेता नैतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करता है। जाहिर है यदि नेता सुयोग्य है तो आचार नीति का समावेशन स्वाभाविक हैगौरतलब है कि सुशासन भरोसे पर टिका होता है। शासन में ईमानदारी से सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा का सुनिश्चित होना सुशासन की गारंटी है। सुशासन के चलते ही आचार नीति को भी एक आवरण मिलता है। दूसरे शब्दों में अच्छे आचरण से शासन, सुशासन की राह पकड़ता है। हमारे देश में संस्थागत और कानूनी ढांचा कमजोर नहीं है। दिक्कत इसके अनुपालन करने वाले आचरण में है। केंद्रीय सतर्कता आयोग, सीबीआइ, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, लोकपाल और लोकायुक्त शासन में सुशासन स्थापित करने के संस्थान हैं तो वहीं भारतीय दंड संहिता, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और सूचना के अधिकार समेत कई कानून देखे जा सकते हैं।गौरतलब है कि सुशासन की पराकाष्ठा की प्राप्ति हेतु एक ऐसे आचार नीति का संग्रह हो जो संस्कृति, पर्यावरण तथा स्त्री पुरुष समानता को बढ़ावा देने के अलावा आत्मसंयम और सत्यनिष्ठा के साथ निष्पक्षता को बल देता हो। हालांकि ऐसी व्यवस्थाएं पहले से व्याप्त हैं, परंतु अनुपालन के लिए एक नई संहिता की जरूरत है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘न्यू इंडिया’ को नई सुशासन संहिता चाहिए जिससे नैतिकता के समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित किया जा सके। यह सच है कि जनता और मीडिया मूकदर्शक नहीं है, साथ ही न्यायिक सक्रियता भी बढ़ी है। बावजूद इसके वह सवाल जो हम सबके सामने मुंह बाए खड़ा है, वह यह कि लोकतंत्र के प्रवेश द्वार पर अपराध कैसे रुके और वैधानिक सत्ताधारक आचार नीति में पूरी तरह कैसे बंधे।नैतिकता के संदर्भ में समग्र पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए बने नई सुशासन संहिता। प्रतीकात्मक