एकबार फिर सुप्रीम कोर्ट ने तोड़ी कश्मीरी पंडितों की उम्मीद, पढ़े पूरी ख़बर..
कश्मीरी पंडितों को सुप्रीम कोर्ट से एकबार फिर निराशा हाथ लगी है। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 700 कश्मीरी पंडितों की हत्या की जांच फिर से कराने से इनकार करते हुए एक और याचिका खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2017 के फैसले पर फिर से विचार करने से इनकार कर दिया है, जिसमें 1989-90 के दौरान जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की सामूहिक हत्या की स्वतंत्र जांच की मांग को खारिज कर दिया गया था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने कश्मीरी पंडितों के समर्थन में रूट्स द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा, ”हमने क्यूरेटिव पिटीशन और इससे जुड़े दस्तावेज को देखा है। हमारी राय में कोर्ट द्वारा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा केस में बताए गए मापदंडों के आधार पर कोई मामला नहीं बनता है। क्यूरेटिव पिटीशन खारिज की जाती है।” ‘रूट्स इन कश्मीर’ ने 2017 में एक जनहित याचिका के साथ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। लगभग 700 कश्मीरी पंडितों की मौत के मामले में सभी मामलो को फिर से खोलने की मांग की गई थी। साथ ही कोर्ट की निगरानी में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की मांग की थी। संगठन ने तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा एफआईआर पर मुकदमा न चलाने के कारणों की जांच के लिए एक जांच आयोग की मांग भी की थी। जनहित याचिका पर 27 अप्रैल, 2017 को तत्कालीन सीजेआई जेएस खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनवाई की और फैसला किया। आदेश में कहा गया है, “हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं। वर्तमान याचिका में वर्ष 1989-90 का संदर्भ दिया गया है। तब से अब तक 27 वर्ष से अधिक समय बीत चुके हैं। इतने वर्षों में साक्ष्य उपलब्ध होने की संभावना नहीं है।” बाद में रूट्स इन कश्मीर ने इस आदेश को चुनौती देने वाली एक समीक्षा याचिका भी दायर की थी, जिसे भी अक्टूबर 2017 में खुली अदालत में सुनवाई के बिना ही खारिज कर दिया गया था। याचिका में कहा गया था, “निर्णय और आदेश की समीक्षा की जा सकती है। यह आदेश पूरी तरह से निराधार अनुमान पर आधारित है। इस तथ्य की अनदेखी की गई कि1996 से कुछ प्राथमिकी में मुकदमे भी चल रहे हैं।”