भारत जोड़ो यात्रा के पूरे हुए 100 दिन, जानें फुल अपडेट …
कांग्रेस के इतिहास के सबसे मुश्किल दौर में कन्याकुमारी से कश्मीर तक की राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पार्टी की जमीनी राजनीति में आ रहे बदलावों का असर भांपने में अभी कुछ वक्त लगेगा। मगर इसमें संदेह नहीं कि आठ राज्यों के 42 जिलों से होते हुए 2860 किमी से अधिक की दूरी तय कर 100वें दिन शुक्रवार को राजस्थान के दौसा से गुजर रही यह पदयात्रा राहुल गांधी की राजनीतिक छवि को बदलने में प्रभावी साबित होती दिख रही है। राजनीतिक संघर्ष के लिए सड़क पर उतरकर भारी भीड़ जुटा रहे राहुल ने लंबे अर्से से सुस्त दिखाई दे रही कांग्रेस के कैडर को न केवल सोए से जगाया है बल्कि निर्विवाद रूप से पार्टी के शीर्षस्थ चेहरे के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है। वैसे इससे कहीं ज्यादा अहम है कि यात्रा के दौरान अपनी गंभीरता और सहजता से विरोधियों की उनके बारे में ‘अनिच्छुक व अपरिपक्व’ राजनेता होने की बनाई गई धारणा को ध्वस्त करने में राहुल ने कामयाबी हासिल की है।
भारत जोड़ो यात्रा के सौ दिन के बड़े मुकाम छूने पर राहत महसूस कर रही कांग्रेस भी यह मान रही कि राहुल की राजनीतिक छवि के साथ ही पदयात्रा ने बीते कई सालों से दुविधा और दिशाहीनता के चक्रव्यूह से घिरी पार्टी को बाहर निकलने का रास्ता दिखाया है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े सूत्रों ने इस पड़ाव पर पदयात्रा का मूल्यांकन करते हुए कहा कि पार्टी के लिए सबसे बड़ी बात यह हुई है बीते साढ़े तीन महीने से राहुल गांधी को सड़क पर लगातार पैदल चलते देख पार्टी कैडर में यह संदेश गया है कि जब हमारे नेता ने राजनीतिक चुनौतियों से उबरने के लिए खुद को झोंक दिया है तो इसे ताकत देने की जिम्मेदारी हम सब की है।
कैडर में उत्साह से बढ़ रही भीड़
तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश से लेकर राजस्थान में पदयात्रा में उमड़ रही भीड़ पार्टी कैडर में पनपी नई सियासी उम्मीद का ही नतीजा है। हालांकि शुरूआत में यात्रा की दशा-दिशा और असर को लेकर कांग्रेस का नेतृत्व भी चिंतित था, इसलिए पहले तीन राज्यों तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में यात्रा के गुजर जाने के बाद हर जगह जमीनी आकलन करता रहा। तेलंगाना में यात्रा के पहुंचने के बाद पार्टी नेतृत्व का यह संशय खत्म हुआ और तब तक देश में कांग्रेस का सोया कैडर भी जग गया।
कांग्रेस के जमीन पर नजर नहीं आने की धारणा टूटी
पार्टी नेतृत्व का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा को अभी तत्काल चुनावी राजनीति की हार-जीत से जोड़ कर देखना वाजिब नहीं है, चाहे वह गुजरात की हार हो या हिमाचल प्रदेश की जीत। अहम यह है कि यात्रा के दौरान राहुल लगातार जिस तरह महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक ध्रुवीकरण, आर्थिक चुनौतियों से लेकर चीनी घुसपैठ जैसे अहम मुद्दे उठा रहे हैं उससे यह धारणा तो टूटी ही है कि सड़क पर उतर कर भाजपा को राजनीतिक लड़ाई के लिए ललकारने वाला कोई उनके सिवाय कोई चेहरा नहीं है। इतना ही नहीं इससे कांग्रेस के सुस्त होने और जमीन पर नजर नहीं आने की धारणा भी टूटी है।
कांग्रेस को अभी करने होंगे कई काम
कांग्रेस कैडर के साथ इन मुद्दों को लेकर उद्वेलित जनता को वैकल्पिक दृष्टि का राजनीतिक भविष्य खत्म नहीं होने देने का भरोसा पैदा करना यात्रा की उपलब्धि है। शीर्ष नेतृत्व से जुड़े सूत्रों ने दौसा में शुक्रवार को जुटी भीड़ इस बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि बेशक कांग्रेस के कार्यकर्ता यात्रा में काफी संख्या में जुट रहे मगर हर जगह सड़कों के दोनों तरफ आमलोगों का जो हुजूम उमड़ रहा वह राहुल गांधी को देखने-सुनने आ रही है। इसका संदेश यही है कि वे अपनी छवि पर विरोधियों के हमले को निस्तेज कर रहे और जनता के बीच उनकी सियासी अपील है। अब यह कांग्रेस संगठन की बड़ी जिम्मेदारी है कि यात्रा से दिखाई दे रही उम्मीदों की राह को कैसे राजनीतक वापसी की सीढ़ी बनाती है। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व से जुड़े सूत्रों ने स्वीकार किया कि यह यात्रा पार्टी और राहुल दोनों के लिए अभी विराम नहीं बल्कि शुरूआत है।
जमीनी स्तर पर बदलाव की जरूरत
शीर्ष से लेकर नीचे तक पार्टी के संगठनात्मक ढांचे और कार्यशैली में बदलाव के साथ जवाबदेही का तंत्र बनाना बेहद अहम है। जमीनी स्तर पर पार्टी में यह बदलाव लाए बिना कांग्रेस के लिए राजनीतिक वापसी की राह खोलना मुश्किल चुनौती है। खासकर यह देखते हुए कि उसका मुकाबला भाजपा के मजबूत नेतृत्व और चौबीसो घंटे संचालित उसकी चुनावी मशीनरी से है तो दूसरी ओर राज्यों में पहुंचकर आम आदमी पार्टीकांग्रेस के सियासी आधार में ही सेंध लगा रही है।