सपा के लिए मैनपुरी उपचुनाव की जीत काफी अहम, डिंपल यादव ने 2.88 लाख वोटों के अंतर से जीती सीट
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक बार फिर से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। वे लगातार क्षेत्रों के दौरे कर रहे हैं और जनता से मुलाकात कर रहे हैं। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव की जीत के एक महीने के भीतर ही अखिलेश अब तक छह बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। वहां उन्होंने कम-से-कम दस दिन गुजारे हैं। मालूम हो कि चुनाव के लिए कैंपेन करने के दौरान भी अखिलेश और उनके परिवार के अहम लोगों ने मैनपुरी में 20 दिन गुजारे और ताबड़तोड़ प्रचार किया था।
यादव परिवार का पैतृक घर भी सैफई गांव में है, जो मैनपुरी निर्वाचन क्षेत्र में आता है। यहीं से मुलायम सिंह यादव साल 2019 में लोकसभा के लिए चुने गए थे। इसी साल अक्टूबर में उनके निधन के बाद उपचुनाव हुआ और फिर डिंपल ने बाजी मार ली। अखिलेश के मैनपुरी के लगातार दौरे ने सपा के भीतर कई नेताओं को चौंका दिया, जिन्होंने बताया कि पार्टी प्रमुख अखिलेश ने पिछले साल जून में पार्टी के गढ़ आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों में प्रचार नहीं किया था। बाद में बीजेपी ने दोनों जगह जीत हासिल कर ली थी। 2019 के आम चुनावों में इन दोनों सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की थी।
सपा के लिए मैनपुरी उपचुनाव की जीत काफी अहम रही है, क्योंकि यह मुलायम की विरासत को बनाए रखने को लेकर चुनाव था। डिंपल यादव ने 2.88 लाख वोटों के अंतर से सीट जीती, जो सपा के 2019 के जीत के अंतर से तीन गुना अधिक था। मुलायम ने 94,389 मतों के अंतर से सीट हासिल की थी, जबकि मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तब सपा की चुनाव पूर्व सहयोगी थी।
मैनपुरी संसदीय क्षेत्र सपा का एक प्रमुख गढ़ माना जाता है। यहां पर सपा ने अब तक आठ बार जीत दर्ज की है। मुलायम सिंह यादव खुद यहां से पांच बार जीत चुके हैं। 8 दिसंबर को मैनपुरी उपचुनाव के परिणाम के बाद अखिलेश ने निर्वाचन क्षेत्र के सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देने के लिए संबोधित किया। इनमें मैनपुरी, भोंगांव, किशनी, करहल और जसवंतनगर सीटें शामिल हैं, जिनमें से 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने तीन और भाजपा ने दो (मैनपुरी और भोगांव) सीटें जीती थीं।
करहल से लेकर जसवंतनगर में लोगों से की मुलाकात
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, अखिलेश और डिंपल दोनों ने 10 दिसंबर को मैनपुरी स्थित पार्टी कार्यालय में सपा कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। अगले दिन उन्होंने किशनी में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। 14 दिसंबर को अखिलेश करहल में सड़कों पर उतरे। वहां से वे विधायक भी हैं। इसके बाद 23 दिसंबर को अखिलेश और डिंपल दोनों ने जसवंतनगर में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित किया। अगले दिन अखिलेश मैनपुरी में क्रिसमस के जश्न में शामिल हुए। 2-3 जनवरी को अखिलेश अपने परिवार के साथ सैफई गए, मैनपुरी में लोगों से मिले, सत्संग में शामिल हुए और भोगांव में लोधी समाज की सभा को संबोधित किया।
पिता के जाने से पैदा हुए शून्य को भरने की कोशिश
इस मामले पर सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि अखिलेश वहां के लोगों के अनुरोध पर अक्सर मैनपुरी आते रहे हैं। चौधरी ने कहा कि अखिलेश ने मैनपुरी लोकसभा सीट के सभी विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का आभार व्यक्त करने के लिए सभाओं को संबोधित किया है। वहीं, सपा के कुछ अंदरूनी लोगों ने कहा कि अखिलेश मुलायम के जाने से पैदा हुए बड़े पैमाने पर शून्य को भरने की कोशिश कर रहे हैं। जिससे जनता के साथ उनके अलगाव के आरोप को दूर किया जा सके।
मूल आधार को मजबूत करना है वजह
सपा नेता ने कहा, ”नेताजी (मुलायम) लोगों से आमने-सामने मिलते थे और नियमित रूप से मैनपुरी आते थे क्योंकि यह उनका निर्वाचन क्षेत्र था और उनका गृह क्षेत्र भी था। लोगों के साथ उनका व्यक्तिगत जुड़ाव ही उनकी ताकत थी जिसने कन्नौज, इटावा, फिरोजाबाद और एटा जैसे आसपास के यादव बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत रखा। 2024 के आम चुनाव में अखिलेश इतना समय सिर्फ मैनपुरी और आसपास की अन्य सीटों को नहीं दे पाएंगे। इसलिए, वह मुलायम की गैर-मौजूदगी में अपना मूल आधार मजबूत कर रहे हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि सपा के एक धड़े ने कह दिया है कि अखिलेश को ‘छोटे नेताजी’ कहा जाना चाहिए, क्योंकि मुलायम सिंह यादव को ‘नेताजी’ के नाम से जाना जाता था। वहीं, मनमुटाव के खत्म होने के बाद शिवपाल सिंह यादव ने भी प्रचार करते हुए लोगों से अखिलेश को छोटे नेताजी के रूप में संबोधित करने के लिए कहा था।