अवधी यात्रा वृत्तांत- ‘अकास मा उड़ान‘ पुस्तक का हुआ लोकार्पण
‘‘हमारी संस्कृति में पूरा जीवन एक तीर्थ यात्रा है, जिसके चार पड़ाव हैं- ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। जीवन के अधिकांश अनुभव, हर परिस्थिति में सामंजस्य और जीवन यापन का अभ्यास यात्राआंे से मिलता है। इस दृष्टि से यात्रा साहित्य महत्वपूर्ण विधा है।‘‘ ये विचार प्रो0 सूर्यप्रसाद दीक्षित ने इं0 रमाकांत तिवारी ‘रामिल‘ के अवधी यात्रा वृत्तांत के लोकार्पण के अवसर पर उ0प्र0 हिन्दी संस्थान के ‘निराला सभागार‘ मंे व्यक्त किए। इस अवसर पर रामिल जी ने अपने पिताजी के नाम पर प्रभाराम स्मृति अवधी सम्मान प्रो0 सूर्यप्रसाद दीक्षित और सीतादेवी स्मृति अवधी सम्मान पद्मश्री विद्याबिन्दु सिंह को प्रदान किया। सम्मान के अन्तर्गत 11-11 हजार रूपये की धनराशि, अंगवस्त्र और सम्मान पत्र प्रदान किया गया।
यात्रा वृत्तांत लेखक रामिल जी ने पुस्तक के संदर्भ में चर्चा करते हुए कहा कि इस यात्रा वृत्तांत में सिंगापुर, वियतनाम, कम्बोडिया और थाईलैण्ड की यात्राओं का अवधी भाषा मंे यात्रा संस्मरण है।
मुख्य अतिथि पद्मश्री विद्याबिन्दु सिंह ने पुस्तक के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह कृति अवधी गद्य साहित्य की अनूठी पुस्तक है, जिसमें चार देशों का यात्रा वृत्तांत है। डाॅ0 राम बहादुर मिश्र ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि अवधी साहित्य की वृद्धि मंे यह यात्रा वृत्तांत निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा। इसमें चार देशों के ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भाे की महत्वपूर्ण जानकारी समाहित है।
विशिष्ट अतिथि डाॅ0 चम्पा श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में कहा कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने प्रसिद्ध निबंध ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा‘ में घुमक्कड़ी को एक धर्म बताया है। उन्हांेने कहा कि यह रामिल जी का अवधी प्रेम है, कि उन्होंने अपना यात्रा वृत्तांत विस्तारपूर्वक लिखकर इसे अवधी भाषा में प्रकाशित कराया। राष्ट्र धर्म के सम्पादक पवन पुत्र ‘बादल‘ ने कहा कि इस पुस्तक में चार देशों के धर्म, इतिहास, सामाजिक चेतना और भौगोलिक संदर्भों को बहुत ही लालित्यपूर्ण भाषा अवधी में लिख कर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया है, यह विशेष रूप से उल्लेखनीय तथ्य है।
डाॅ0 शिवप्रकाश अग्निहोत्री ने कहा कि इस यात्रा वृत्तांत में अवधी बोली-बानी की कला, बिम्ब व प्रतीक आदि बहुत ही जीवंत हो उठे हैं। डाॅ0 संतलाल ने कहा कि अवधी यात्रा वृत्तांत के दृष्टिगत संभवतः यह पहली पुस्तक है, जो प्रभावशाली और महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त एस0 के0 गोपाल, डाॅ0 विनयदास, डाॅ0 सत्या सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन और आभार ज्ञापन प्रदीप सारंग ने किया।