यूपी में नारकोटिक्स दवाओं का इस्तेमाल नशे के रूप में होने के मिले सबूत 

उत्तर प्रदेश में नारकोटिक्स दवाओं का इस्तेमाल नशे के रूप में होने के सबूत मिल रहे हैं। यह मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। चिकित्सा विशेषज्ञ बताते हैं कि नारकोटिक्स दवाओं का इस्तेमाल नशे के रूप में करने वालों के मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ा जाता है। हृदय, किडनी और लिवर सहित अन्य अंग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। फिर धीरे-धीरे जवाब देने लगते हैं।

खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) की जांच में विभिन्न स्थानों पर नारकोटिक्स दवाओं की खरीद और बिक्री में मनमानी मिली है। कोडिन सिरप उत्तर प्रदेश के रास्ते नेपाल और बांग्लादेश तक पहुंच रहा है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में भी नारकोटिक्स दवाए डॉक्टर के पर्चे के बजाय अवैध तरीके से बेची जा रही है। ये दवाएं नशे के रूप में प्रयोग होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा रहा है।

लखनऊ में पकड़े गए आरोपी ने भी एफएसडीए की टीम को दो व्यक्तियों के नाम बताते हुए स्वीकार किया कि यह सिरप नशे के रूप में प्रयोग होता है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि कोडिन और दर्द निवारक (ओपिओइड) या शामक दवाओं का निर्धारित मात्रा में अधिक और नियमित तौर पर इस्तेमाल करने से हृदय गति और श्वास गति धीमी हो जाती है। ज्यादा इस्तेमाल करने पर हृदय, गुर्दे, फेफड़े और मस्तिष्क को क्षति पहुंचती है।

कोडीनयुक्त कफ सिरप, मॉर्फीन, रेमॉडाल, अलराजोन और क्लोजापॉम आदि दवाएं डॉक्टर के पर्चे पर ही मरीज को दी जाती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में वर्ष 2024-25 में 624 एनडीपीएस के केस दर्ज किए हैं। करीब 8054 लोग गिरफ्तार किये गए।

कानपुर के साथ लखनऊ में भी होती थी दवाइयों की सप्लाई

नकली दवाइयां सप्लाई करने के मामले में एसटीएफ की टीम द्वारा गिरफ्तार कानपुर की वर्तिका के फोन से कई खुलासे हुए हैं। इस मामले में पता चला है कि वह कानपुर के साथ लखनऊ और आस-पास के कई बड़े होलसेल मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करते थे। आरोपी महिला के फोन से कई ऐसे दस्तावेज मिले है जिनसे कई बड़े कारोबारियों का नाम सामने आ रहे हैं। वर्तिका के फोन से पुलिस को कई ऐसे दस्तावेज मिले हैं जिससे स्पष्ट है कि वर्तिका नकली दवाइयां सप्लाई करने के मामले में बड़ा कारोबार करती है। उसके साथ कई ऐसे लोग हैं जो यह कारोबार करते हैं। अब कानपुर के कई इलाकों में दोबारा छापामारी की जा सकती है।

क्या कहते हैं जानकार

लोहिया संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विक्रम सिंह का कहना है कि हर व्यक्ति के शरीर की क्षमता अलग-अलग होती है। दवा लिखते वक्त मरीज की स्थिति, वजन आदि का ध्यान रखा जाता है। अधिक मात्रा होने से शरीर में आक्सीजन की मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ा जाता है। धड़कन बढ़ जाती है। हार्ट अटैक का खतरा रहता है। दिमाग की नशें भी प्रभावित होती हैं।

लोहिया संस्थान के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट डॉ. प्रीतम दास का कहना है कि कोडिन सिरप एवं नशे के लिए दवा देने वाले मात्रा का ध्यान नहीं रखते हैं। 50 मिलीलीटर से नशा नहीं हुआ तो 100 मिलीलीटर ले लेते हैं। इसी तरह नशे के लिए एक टैबलेट के बजाय दो टैबलेट ले लेते हैं। इससे लिवर खराब होता है और फिर किडनी व शरीर के दूसरे अंग भी जवाब देने लगता है।

क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. सुशीला यादव का कहना है कि नारकोटिक्स दवाएं कैंसर के गंभीर मरीजों को दर्द कम करने के लिए दी जाती हैं। इसके अलावा नींद की समस्या और मिर्गी जैसी दिक्कतों में भी डॉक्टर ये दवाएं लिखते हैं। अधिक डोज लेने से नशा होता है। नशा करने वाले धीरे धीरे जोड़ बढ़ाते जाते हैं, जिससे उनके विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचता है। ऐसे मरीजों का उपचार शुरू होता है तो लंबे समय तक आईसीयू में रखना पड़ता है।

फार्मासिस्ट फेडरेशन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सुनील यादव का कहना है कि फार्मास्यूटिकल्स में कोडिन, ट्रामाडोल, फेंसिडिल को नशे के कारोबार में अहम माना गया है। खास बात यह है कि लखनऊ में पकड़ी दवाओं में फेंसिडिल कफ सिरप है। ये दवाएं बिना पर्चे के नहीं दी जाती हैं। इनकी खरीद और बिक्री का पर्चा रखना भी जरूरी है।

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