इसतारीख पर लगा कलंक, निर्भया केस के बाद कानून बदला हालात नहीं
दिल्ली की सर्द रात की कहानियां तो बहुत हैं लेकिन 6 साल पहले हुए एक वारदात आज भी दिल को दहला देने के लिए काफी है. 16 दिसंबर अब सिर्फ तारीख नहीं रही दर्द बन चुकी है, हर उस मां-बाप के लिए जिनके घर बेटी है. इसी दिन दिल्ली की एक घटना ने देशभर के लोगों के रौंगटे खड़े कर दिए थे. बलात्कार हुआ था, दरिंदगी की सारी हदें पार की गईं, इंसानियत पर दाग लगा और लोगों का गुस्सा ऐसा फूटा की देश के कोने-कोने से लोग इंडिया गेट पर जमा हुए. जनाक्रोश के इस रौद्र रूप को देखकर सरकार भी हिल गई. तमाम कोशिशों के बाद भी दामिनी को नहीं बचाया जा सका लेकिन ‘निर्भया केस’ के बाद कानून में काफी बदलाव किया गया. कानून तो बदल गया लेकिन क्या देश में महिलाओं के हालत में कोई तब्दीली हुई?
निर्भया कांड के बाद महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म जैसे मामलों में कानून और सख्त कर दिया गया. इसके बावजूद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के साल 2016-17 के आकंड़ों में महिला संबंधी अपराधों में अकेले दिल्ली में 160.4 फीसद का इजाफा रिकॉर्ड किया गया. वहीं पूरे देश में 55.2 फीसद का इजाफा हुआ. इस मामले में कई बार दिल्ली के विभिन्न मीडिया संस्थानों और एजेंसियों द्वारा निर्भया कांड के बाद वक्त-वक्त पर आम महिलाओं और युवतियों से सुरक्षा को लेकर बातचीत की गई. जवाब आज भी वही है कि दिल्ली में कुछ नहीं बदला. आज भी यहां महिलाएं रात क्या दिन में भी सुरक्षित नहीं हैं.
निर्भया कांड के बाद दिल्ली के हाल
2012 में दुष्कर्म के 706 मामले दर्ज किए गए. 2014 में इनमें तीन गुना इजाफा हुआ और आंकड़ा 2166 पहुंच गया. 2015 में भी दुष्कर्म के 2199 मामले दर्ज हुए. साल दर साल दुष्कर्म के मामलों में इजाफा हो रहा है. महिला संबंधी अन्य अपराधों में भी 50 फीसद से ज्यादा का इजाफा रिकॉर्ड किया गया है. 2012 में ऐसे 208 मामले दर्ज हुए थे, जो 2015 में बढ़कर 1492 हो गए. निर्भया कांड के बाद दिल्ली पुलिस ने महिला अधिकारियों की तैनाती कर कुल 161 हेल्प डेस्क बनाए गए.
निर्भया कांड के बाद पुलिस और सार्वजनिक परिवहन के वाहनों में जीपीएस लगाने और उन पर नजर रखने की बात अगस्त 2014 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कही गई थी. हालांकि ये अब तक पूरा नहीं हुआ. निर्भया कांड के बाद महिला हेल्पलाइन में पेशेवर काउंसलर्स की भर्ती के लिए 6.2 करोड़ का बजट आरक्षित किया गया था. इसमें अब तक खास प्रगति नहीं हुई. देश के 114 शहरों व अपराध बाहुल्य जिलों में विशेष इंतजाम किए जाने थे, लेकिन ये प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका.
निर्भया कांड के बाद सख्त हुआ कानून
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जेएस वर्मा की अगुवाई में महिला सुरक्षा संबंधी कानूनों को सख्त करने के लिए तीन सदस्यीय टीम बनी और सिफारिशें मांगी गई. वर्मा कमिशन ने 29 दिनों में 631 पेज की रिपोर्ट 22 जनवरी 2013 में सरकार को सौंप दी थी. कमिशन की सिफारिस पर संसद में बिल पास करा दो अप्रैल 2013 को नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया. नए कानून में दुष्कर्म के कारण अगर कोई महिला मरणासन्न अवस्था में पहुंचती है या मौत हो जाती है, तो फांसी तक की सजा हो सकती है. जबरन शारीरिक संबंध बनाने के साथ यौनाचार और दुराचार को भी दुष्कर्म के दायरे में लाया गया. इसमें महिला को आपत्तिजनक तरीके से छूना भी शामिल है. पीड़िता की उम्र अगर 18 वर्ष से कम है तो उसकी सहमति से बनाया गया संबंध भी दुष्कर्म की श्रेणी में आता है. अब दुष्कर्म के मामलों में सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. सामुहिक दुष्कर्म में 20 साल से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. दोबारा दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी को उम्रकैद से फांसी तक की सजा का प्रावधान है. छेड़छाड़ की सजा दो साल से बढ़ाकर पांच साल कर दी गई है. इसमें से एक वर्ष तक जमानत नहीं हो सकती. महिला पर आपराधिक बल प्रयोग कर कपड़े उतारने पर मजबूर करने या जबरन उतारने या किसी और को उकसाने पर तीन से सात साल तक की सजा का प्रावधान है. महिला का पीछा करने या उसे गलत नीयत से जानबूझकर छूने का प्रयास करने पर तीन साल तक की सजा का प्रावधान है.