अगर आप डोनेशन या चैरिटी करते हैं तो भी आप आयकर की बचत कर सकते हैं। यह छूट आयकर की धारा 80G के अंतर्गत मिलती है
सालभर कमाई करने और उसी कमाई में से भविष्य की जरूरतों के लिहाज से तमाम विकल्पों में निवेश करने के बाद अक्सर निवेशकों की चाहत होती है कि उन्हें कम से कम टैक्स देना पड़े। निवेशकों में टैक्स बचाने की यह उधेड़बुन हर बार नए साल से शुरू हो जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि 31 मार्च से खत्म होने वाले वित्त वर्ष के बाद जुलाई महीने में आईटीआर फाइलिंग के दौरान निवेश से जुड़ी हर वो जानकारी देनी होती है जो टैक्स बचाती है। ऐसे में अगर आप भी बतौर निवेशक यह जानना चाहते हैं वर्ष 2019 में कहां निवेश कर आप चालू वित्त वर्ष के लिए टैक्स बचा सकते हैं और कहां निवेश करने पर आपको हर हाल में टैक्स देना होता है तो हमारी यह खबर आपके काम की है। इस संबंध में हमने ईमुंशी के टैक्स एक्सपर्ट अंकित गुप्ता से बात की है।
सबसे पहले जानिए किस विकल्प में निवेश पर आप बचा सकते हैं टैक्स?
पीपीएफ में करें निवेश: पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) को निवेश के लिए अच्छा विकल्प माना जाता है। पीपीएफ में निवेश से ना सिर्फ टैक्स बेनिफिट्स मिलते हैं, बल्कि यह एक सुरक्षित भविष्य की नींव भी रखता है। पीपीएफ में निवेश, ब्याज दर और मैच्योरिटी पर मिली रकम टैक्स फ्री होती है। पीपीएफ में किया जाने वाला निवेश आयकर की धारा 80C के अंतर्गत टैक्स छूट के दायरे में आता है। इस निवेश पर आप एक वित्त वर्ष के दौरान 1,50,000 रुपये तक की टैक्स छूट का क्लेम कर सकते हैं। इस पर वर्तमान समय में 8 फीसद की दर से ब्याज मिल रहा है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ): अक्सर निवेशकों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि यह भी टैक्स बचाने का एक विकल्प है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किया जाने वाला निवेश 100 फीसद तक टैक्स फ्री होता है। यानी यहां आप जितना भी पैसा दान में दें वो टैक्स फ्री होता है।
मेडिकल ट्रीटमेंट (चिकित्सकीय उपचार): इलाज के दौरान किया जाने वाला खर्च भी टैक्स बचा सकता है इसकी जानकारी भी सिर्फ कम लोगों को ही होती है। इलाज के दौरान किया जाने वाला खर्च 80DDB के अंतर्गत कर छूट के दायरे में होता है। इसके दायरे में माता-पिता, बच्चे और भाई-बहन आते हैं। यह छूट तीन श्रेणियों में होती है। 60 वर्ष से कम सामान्य लोगों के लिए 40,000 रुपये, 60 वर्ष तक की उम्र वाले सीनियर सिटिजन के लिए 60,000 रुपये और 60 से 80 वर्ष तक के उम्र के लोगों के इलाज पर खर्च किया गया 80,000 रुपये का खर्च टैक्स छूट के दायरे में आता है।
मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम: एक वित्त वर्ष के दौरान आप मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम भी आपका टैक्स बचा सकता है। अगर आपने अपने और अपनी पत्नी के नाम पर इंश्योरेंस पॉलिसी ले रखी है तो आप 25,000 रुपये (प्रत्येक) के लिहाज से 50,000 रुपये तक की छूट प्राप्त कर सकते हैं। यह सीमा सीनियर सिटिजन के लिए 30,000 रुपये तक की है। यानी अगर आपने खुद और खुद के पिता (सीनियर सिटिजन) के लिए पॉलिसी ले रखी है तो आप एक वित्त वर्ष के दौरान (25,000+30,000) 55,000 रुपये की टैक्स बचत कर सकते हैं।
फिक्स्ड डिपॉजिट: यह टैक्स बचाने के लिए सबसे सस्ता और आसान तरीका होता है और इसकी जानकारी अधिकांश निवेशकों को होती है। इस विकल्प में किया जाने वाला निवेश आयकर की धारा 80C के अंतर्गत टैक्स छूट के दायरे में आता है। अधिकांश निवेशक इसी विकल्प का चयन करते हैं।
प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप: प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप में भी किया गया खर्चा टैक्स छूट के दायरे में आता है। इसकी लिमिट 5,000 रुपये होती है। आयकर की धारा 80D के तहत यह कर छूट प्राप्त की जा सकती है।
डोनेशन से भी बचा सकते हैं टैक्स: अगर आप डोनेशन या चैरिटी करते हैं तो भी आप आयकर की बचत कर सकते हैं। यह छूट भी आयकर की धारा 80G के अंतर्गत मिलती है। आप अगर कोई चैरिटी करते हैं तो आप अपनी कुल सकल आय में से 10 फीसद की कटौती कर सकते हैं। इसके बाद ही आपकी कर योग्य आय तय होगी।
यहां पर किया निवेश तो हर हाल में देना होगा टैक्स:
लॉटरी: रिटर्न के लिहाज से लोग लॉटरी पर भी निवेश करते हैं। हालांकि, ऐसे निवेशकों की संख्या काफी कम होती है। ये निवेशक इसके टैक्स फैक्टर को या तो नजरअंदाज कर देते हैं या फिर उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती है। लॉटरी से होने वाली कमाई पर फ्लैट 30 फीसद का टैक्स देना होता है।
फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज: फिक्स्ड डिपॉजिट टैक्स बचाता भी है और नहीं भी। यानी एफडी पर मिलने वाला ब्याज अगर एक वित्त वर्ष के दौरान 10,000 रुपये से ज्यादा है तो आपको हर हाल में टैक्स देना होगा।
मकान का किराया: अगर किसी करदाता ने अपना मकान किराए पर उठाया है तो उसे अपने आयकर रिटर्न में किराए से आमदनी के बारे में जानकारी देनी होगी। मकान के किराए से होने वाली आमदनी पर भी हर हाल में टैक्स देना होता है। इस आमदनी को आपकी आय में जोड़ा जाता है और उसके बाद ही आपकी टैक्स देनदारी बनती है।