देशद्रोही नारेबाज़ी के मामले में चार्जशीट पर कौन लोग उठा रहे हैं सवाल

कल JNU में देशद्रोही नारेबाज़ी के मामले में चार्जशीट आई थी.. और कल इस चार्जशीट का विश्लेषण करते हुए हमने, आपसे ये कहा था कि देशद्रोह के आरोपियों को हीरो बनाने वाला गैंग एक बार फिर से सक्रिय हो जाएगा. और आज ऐसा ही हुआ. आज अभिव्यक्ति की आज़ादी की बड़ी बड़ी दुकानें और शोरूम खुल गए हैं. जिनमें दुकानदार नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के ठेकेदार बैठे हुए हैं. ये लोग दिल्ली पुलिस की चार्जशीट को बकवास बता रहे हैं. 

कन्हैया कुमार और उमर खालिद को देशभक्त बताया जा रहा है और तमाम आरोपियों पर लगी देशद्रोह की धारा 124 A की तुलना, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई से की जा रही है. बहुत से लोग देशद्रोह की धारा हटाने की वकालत भी कर रहे हैं. लेकिन ये सिर्फ कुछ मुट्ठी भर लोग हैं. पूरा देश इस वक्त ज़ी न्यूज़ के साथ खड़ा है. क्योंकि देशद्रोही नारे लगाने वालों के खिलाफ चार्जशीट तैयार करने में ज़ी न्यूज़ के कैमरे से रिकॉर्ड हुए वीडियो से पुलिस को बड़ी मदद मिली है. ये वही वीडियो है, जिसे उस वक्त, बहुत से लोगों और पत्रकारों ने Doctored बताया था. लेकिन दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में लिखा है. ज़ी न्यूज़ का वीडियो पूरी तरह से सही पाया गया था. और यही वजह है कि आज उन अखबारों को मजबूरी में ज़ी न्यूज़ के वीडियो को सही बताना पड़ा. जो उस दौर में चिल्ला चिल्लाकर इस वीडियो को झूठा बता रहे थे. ऐसे अखबारों का पूरा विश्लेषण भी हम करेंगे. लेकिन सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि देशद्रोह के इस मामले को किस तरह राजनीतिक बनाने की कोशिश हो रही है.

भारत तेरे टुकड़े होंगे.. ये सुनकर आपके मन में क्या भाव आते हैं ? ये बोलना भारत सरकार के खिलाफ़ है या भारत के खिलाफ़ है ? इसे बोलना देशद्रोह है या नहीं ? इसका जवाब है.. हां ये देशद्रोह है… क्योंकि यहां सरकार के टुकड़े करने की बात नहीं हो रही, बल्कि देश के टुकड़े करने की बात हो रही है. लेकिन टुकड़े टुकड़े गैंग, इस सरल से प्रश्न और उत्तर में, अपने एजेंडे की मिलावट कर रहा है और आपको भ्रमित कर रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने एक Tweet करके, देशद्रोह के मुख्य आरोपी कन्हैया कुमार का बचाव किया है.

चिदंबरम ने लिखा है – कन्हैया कुमार और अन्य छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप हास्यास्पद है. अगर राजद्रोह का आरोप लगाने में 3 साल और 1200 पेज लगते हैं, तो ये सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है. जांच टीम में शामिल कितने लोग भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए और इस धारा पर कानून से अवगत हैं, या उन्होंने इसे पढ़ा भी है? धारा 124 ए जैसे प्रावधान को लोकतांत्रिक गणराज्य के कानूनों में स्थान मिलने पर गंभीर बहस होनी चाहिए.

यानी पी. चिदंबरम देशद्रोह की धारा 124 A पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. अब हमारा सवाल ये है कि पी चिदंबरम की पार्टी.. कांग्रेस ने इस देश में करीब 55 वर्षों तक शासन किया है, ऐसे में इन 55 वर्षों में कांग्रेस की सरकारों ने इस धारा को क्यों नहीं हटाया ? अगर दिल्ली पुलिस ने बिना जांच के ये आरोप तय किए होंगे, तो इनकी विवेचना अदालत करेगी, लेकिन पी. चिदंबरम जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को कन्हैया कुमार और अन्य आरोपियों का बचाव करने की ज़रूरत क्यों पड़ गई?

वैसे देशद्रोह के आरोपियों का बचाव करने वालों की इस लिस्ट में पी. चिदंबरम अकेले नहीं हैं. उनके साथ बहुत से डिज़ाइनर पत्रकार और संपादक भी हैं. हम आपको इन पत्रकारों और संपादकों का नाम नहीं बता रहे हैं. क्योंकि उनके बारे में आप सभी जानते हैं. उनकी भाषा से आप बखूबी परिचित हैं और आप ये भी जानते हैं कि देशविरोध की बातें करने वाले पत्रकार कौन हैं? लेकिन इन पत्रकारों ने क्या लिखा है, ये हम आपको ज़रूर बताएंगे.

एक डिज़ाइनर पत्रकार ने अंग्रेज़ी में Tweet करके कन्हैया कुमार की तुलना स्वतंत्रता सेनानियों से की है. और लिखा है कि देशद्रोह का कानून अंग्रेज़ों ने स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के लिए बनाया था, लेकिन अब सरकार उसी कानून का राजनीतिक इस्तेमाल करके असहमति की भावनाओं को दबा रही है.

एक डिज़ाइनर संपादक ने भी Tweet करके इस चार्जशीट की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं. और ये लिखा है कि चुनावों से 3 महीने पहले ही ये चार्जशीट क्यों दायर की गई है. इन संपादक महोदय ने इसे समय की बर्बादी बताया है.

एक और महिला पत्रकार हैं, जिन्होंने ना तो चार्जशीट पढ़ी और ना ही अखबार. इन्होंने पुलिस के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि कन्हैया कुमार और उमर खालिद के खिलाफ कोई वीडियो सबूत नहीं मिले हैं, बल्कि चश्मदीदों के बयानों को आधार बनाकर चार्जशीट दायर की गई है.

यानी पी. चिदंबरम और ये डिज़ाइनर पत्रकार, एक जैसी भाषा बोल रहे हैं. और देशद्रोह की धारा को खत्म करने पर ज़ोर दिया जा रहा है.

अब ये भी समझ लीजिए कि इस धारा में क्या लिखा है?

IPC की धारा 124 A के मुताबिक देश के खिलाफ लिखना, बोलना या ऐसी कोई भी हरकत, जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो, वो देशद्रोह कहलाएगी. अगर कोई संगठन देश-विरोधी है और उससे अनजाने में भी कोई संबंध रखता है, उसके Literature को दूसरे लोगों तक पहुंचाता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है, तो उस पर देशद्रोह का मामला बन सकता है.

ये बात सही है कि ये कानून अंग्रेज़ों का बनाया हुआ कानून है.

ये कानून वर्ष 1870 में लागू हुआ था

आज़ादी से पहले जो लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाते थे, उन्हें राजद्रोही माना जाता था.

अंग्रेज़ों की इस नीति का विरोध पूरे भारत ने किया था. क्योंकि तब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था.

महात्मा गांधी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस दौर में देशद्रोह के कानून को आपत्तिजनक और अप्रिय कानून बताया था .
लेकिन वो आज़ादी से पहले की परिस्थितियां थी. तब पूरा देश आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था. उन परिस्थितियों की तुलना JNU के आरोपी छात्रों की परिस्थितियों से नहीं की जा सकती.

JNU में जो नारे लगाए गये. वो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नहीं लगाए गये थे. वो नारे भारत के खिलाफ़ लगाए गये थे. इन दोनों में बहुत फर्क है.

अगर आज महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ज़िंदा होते, तो अपने देश के विरोध में लग रहे ऐसे नारों को सुनकर उन्हें बहुत दुख होता. वो ये ज़रूर सोचते कि जिस देश की आज़ादी के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया, उसी देश के कुछ लोग.. भारत के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगा रहे हैं. JNU का तो नाम ही जवाहर लाल नेहरू के नाम पर है. और वहीं पर देश के टुकड़े करने के नारे लगाए गये

जो लोग आज इस धारा पर सवाल उठाकर कन्हैया कुमार और उसके साथियों को निर्दोष बता रहे हैं. और ये कह रहे हैं कि उन्होंने कोई देशद्रोह नहीं किया, उन्हें एक बार फिर से उन देशद्रोही नारों को सुनना चाहिए. और ये तय करना चाहिए कि ये नारे किसके खिलाफ हैं ? ये देशद्रोह है या नहीं?
इनमें जो सबसे पहला वीडियो है वो ज़ी न्यूज़ के कैमरे से रिकॉर्ड होने वाला वही वीडियो है.. जिसे टुकड़े टुकड़े गैंग ने Doctored बताया था.

तो आपको ये नारे कैसे लगे ? आपको आनंद आया? ज़ाहिर है आपको गुस्सा ही आया होगा और आना भी चाहिए क्योंकि ये सीधे सीधे देशद्रोह का मामला है. लेकिन टुकड़े टुकड़े गैंग ये बात मानने को तैयार ही नहीं है.

आपने नोट किया होगा कि हमारे देश में जब कोई गलत काम करते हुए पकड़ा जाता है तो उसका फॉर्मूला यही होता है कि..

कानून पर सवाल उठाओ
जांच एजेंसी पर सवाल उठाओ
अदालत पर सवाल उठाओ
जज पर सवाल उठाओ

ऐसे ही अगर मीडिया में रिपोर्ट आ जाए तो भी सत्य को झूठ बताने का एजेंडा चलाया जाता है.
अगर वीडियो है तो वीडियो को Doctored बताया जाता है
पत्रकार को बिका हुआ बताया जाता है
पूरे चैनल की विश्वसनीयता पर प्रहार किया जाता है
ऐसे ही लोग जब चुनाव हार जाते हैं तो ये कहते हैं कि EVM फिक्स की गई है, सेट की गई है

वैसे इस पूरे घटनाक्रम के बीच देशद्रोह का आरोपी कन्हैया कुमार बहुत खुश होगा. क्योंकि वरिष्ठ डिज़ाइनर पत्रकारों के बीच कन्हैया कुमार और उमर खालिद का इंटरव्यू करने की होड़ एक बार फिर से शुरू हो गई है. आपको आज से 3 साल पहले का वो दौर याद होगा, जब देशद्रोह के आरोप लगने के बाद दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया था. और फिर अदालत ने कन्हैया कुमार को बहुत सी शर्तों के साथ ज़मानत दी थी. उस वक्त भी इन पत्रकारों और संपादकों में कन्हैया कुमार का इंटरव्यू करने की होड़ मची हुई थी. तब इन पत्रकारों ने जेएनयू में एक तरह से अपना अस्थायी स्टूडियो बना लिया था. और अब एक बार फिर कन्हैया कुमार के इंटरव्यू लिए जा रहे हैं. जिसमें कन्हैया कुमार इस चार्जशीट को झूठ का पुलिंदा बता रहा है. और देशद्रोही नारों को अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे पवित्र शब्दों से ढक रहा है.

ये सारे लोग शायद ये भूल गये हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी असीमित नहीं होती. अभिव्यक्ति की आज़ादी का एक दायरा होता है और इसकी अपनी कुछ सीमाएं होती हैं. ये आज़ादी अपने साथ बहुत सारी ज़िम्मेदारियां लेकर आती है.

हमारे संविधान के अनुच्छेद -19 (1) (A) के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार दिया गया है.

ये अधिकार मूल अधिकार के दायरे में है. लेकिन ये अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है. इस अधिकार पर न्याय संगत रोक लगाई जा सकती है. क्योंकि इस अधिकार के साथ जिम्मेदारियां भी हैं, जिनकी व्याख्या संविधान के अनुच्छेद-19 (2) के तहत प्रतिबंधों के रूप में की गई है.

अनुच्छेद-19 (2) के तहत सरकार… देश की संप्रभुता की रक्षा, देश की निष्ठा की रक्षा, देश हित को बनाए रखने के लिए, विदेशी संबंधों की रक्षा करने के लिए और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए कानून का इस्तेमाल करके अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित कर सकती है.

यानी अभिव्यक्ति का अधिकार, पूर्ण अधिकार नहीं हैं, बल्कि इसके लिए उचित प्रतिबंध यानी Reasonable Restrictions की भी बात कही गई है.

आप ये भी कह सकते हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी, मोबाइल कंपनियों के Data की तरह Unlimited नहीं होती. अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमाओं पर हमने कानून के जानकारों से बात की है. आप भी सुनिए कि उनकी क्या राय है?

JNU में हुई देशद्रोही नारेबाज़ी का कश्मीर कनेक्शन भी चार्जशीट से साबित हुआ है. नारेबाज़ी के जो दस मुख्य आरोपी हैं, उनमें से 7 कश्मीरी हैं. इनमें कुछ जेएनयू के छात्र हैं और कुछ बाहरी छात्र भी हैं. आज जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इन कश्मीरी आरोपियों के कंधे पर बंदूक रखकर.. कश्मीर कार्ड खेला है. महबूबा मुफ्ती का कहना है कि चुनावी फायदे के लिए 7 मासूम और निर्दोष कश्मीरियों को फंसाया जा रहा है. उन्होंने बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस को भी घेरा है और ये भी कहा है कि ऐसा ही काम कांग्रेस की सरकार संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरू को फांसी देकर कर चुकी है. पहले आप महबूबा मुफ्ती का ये बयान सुनिए फिर हम इस विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे

अब हम महबूबा मुफ्ती को कुछ Videos दिखाना चाहते हैं. वैसे तो ये नारेबाज़ी हम पिछले 3 वर्षों से दिखा रहे हैं और दिल्ली पुलिस को चार्जशीट फाइल करने में हमारे इन Videos से बहुत मदद मिली. लेकिन हो सकता है कि महबूबा मुफ्ती ने ये वीडियो ना देखे हों. महबूबा मुफ्ती को पहले ये नारे सुनने चाहिएं, और ये याद करना चाहिए कि ऐसे नारे उन्होंने पहले कहां सुने थे?

महबूबा मुफ्ती को हम याद दिला देते हैं, ऐसी ही नारेबाज़ी कश्मीर में होती है. कश्मीर में जब लोग भारत के खिलाफ नारे लगाते हैं, तो ऐसे ही लगाते हैं. और तीन साल पहले वही लोग जेएनयू में ऐसे ही नारे लगा रहे थे. भारत को धक्का देने की बात कर रहे थे, भारत के टुकड़े करने के नारे लगा रहे थे.

पुलिस ने अपनी चार्जशीट में जिन कश्मीरियों को आरोपी बनाया है, उनमें दो तो जेएनयू के ही छात्र हैं, जबकि 5 बाहरी छात्र हैं. जो सिर्फ देश विरोधी नारे लगाने के लिए ही उस दिन जेएनयू आए थे.

जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले 7 कश्मीरी आरोपियों तक पहुंचने में स्पेशल सेल को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. क्योंकि जब नारे लगाए जा रहे थे, तब कुछ कश्मीरी छात्रों ने चेहरे ढके हुए थे.

नारेबाज़ी की तस्वीरों में भी आपको ये लोग मुंह ढके हुए नज़र आ रहे होंगे.

जांच में जब ये पता चला कि नारे लगाने वाले छात्रों में से कुछ छात्र जेएनयू के नहीं है तो अनिर्बान और उमर खालिद की Call Detail Record की जांच की गई. जिसमें ये पता चला कि इन दोनों की बात आरोपी कश्मीरी छात्रों से हो रही थी.

पूछताछ में भी अनिर्बान और उमर खालिद ने बताया कि उनके कश्मीरी जानकार छात्र 9 फरवरी को जेएनयू में आयोजित कार्यक्रम में आये थे.

इसके बाद दिल्ली पुलिस की एक टीम करीब डेढ़ महीने तक कश्मीर में रही. इन 7 कश्मीरियों के घरों पर गई लेकिन ये सभी आरोपी युवक अपने घर पर नहीं मिले. फिर पुलिस ने इनके परिवार को नोटिस दिया और सभी को जांच में सहयोग करने के लिए दिल्ली बुलाया.

इसके बाद ये सातों आरोपी अपने बयान देने के लिए दिल्ली आए.

क्या अब भी महबूबा मुफ्ती ये कहेंगी कि इस मामले में इन 7 लोगों को फंसाया जा रहा है ?

अब हम देश द्रोहियों के Godfathers को भी Expose करेंगे . ये लोग System के अंदर रहकर, देशद्रोह की विचारधारा को महिमा मंडित करते हैं .

अफ़ज़ल प्रेमी गैंग के कई Godfathers… भेष बदलकर पत्रकार और संपादक बन बैठे हैं . ये खबरों के वो जादूगर हैं जो सच के प्रति भी जनता के दिमाग में शक पैदा करने की कला जानते हैं . आज हम ऐसे जादूगर संपादकों को Expose करेंगे .

आपने ये तो देख लिया कैसे तीन साल पहले अखबार JNU में देशद्रोही छात्रों को हीरो बनाने पर तुले हुए थे. अब ये देखिए कैसे उस दौर में कुछ नेता इन आरोपी छात्रों को भगत सिंह जैसा क्रांतिकारी बताकर, उनका बचाव कर रहे थे. तब कुछ नेताओं के बीच JNU का राजनीतिक दौरा करने की होड़ मची हुई थी. वहां इन नेताओं के बड़े बड़े भाषण होते थे. JNU के छात्रों के बीच ये नेता एक तरह से अपनी राजनीतिक रैलियां करते थे. आज हमने इन नेताओं की JNU वाली उन रैलियों के कुछ अंश निकाले हैं. जो आपको सुनने चाहिए.

अब आपको ये भी सुनना चाहिए दिल्ली पुलिस की इस चार्जशीट पर राजनीतिक दलों का क्या कहना है?

देश विरोधी सोच रखने वाले लोगों की बात तो हो गई. अब ज़रा उन लोगों की बात कर लेते हैं, जो इन देश विरोधी लोगों की आंखों में सबसे ज़्यादा खटकते हैं. और वो हैं हमारी सेना के जवान. आज देश के रक्षकों की बात करना इसलिए ज़रूरी है….क्योंकि आज भारतीय सेना दिवस है.

हमें लगता है कि ये मौका देश के लिए किसी बड़े त्यौहार से कम नहीं है. इसलिए भारतीय सेना के शौर्य से जुड़े आज के ऐतिहासिक दिन के बारे में…आपको संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए. अगर आप Media की परंपराओं पर जाएं तो सेना दिवस की इस ख़बर को अखबार के अंदर के पन्नों पर छोटी सी जगह मिलेगी. और News Channels पर ये किसी Non Primetime News बुलेटिन में छोटी सी ख़बर बनकर रह जाएगी. और Headline तो बिल्कुल भी नहीं बनेगी. लेकिन हम इस परंपरा को तोड़ना चाहते हैं.

हर वर्ष 15 जनवरी को सेना दिवस इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि 1949 में आज ही के दिन….भारतीय सेना को अपना पहला भारतीय कमांडर इन चीफ मिला था. 15 जनवरी 1949 को भारतीय सेना की कमान…ब्रिटिश जनरल फ्रांसिस बुचर (Francis Butcher) से फील्ड मार्शल KM करिअप्पा के हाथ में आ गई थी. इसी के साथ British Indian Army से British शब्द हमेशा के लिए हट गया था. और उसे Indian Army कहा जाने लगा था. फील्ड मार्शल KM करियप्पा, आज़ाद भारत के पहले Army Chief बने थे.

हालांकि, इसी ख़बर से जुड़ा विरोधाभास ये भी है, कि हमारे देश के मुट्ठीभर लोगों ने सेना का भी राजनीतिकरण कर दिया है. सेना दिवस के दिन ये कहते हुए बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा. लेकिन कभी-कभी सच्चाई को स्वीकार करना हमारी मजबूरी ही नहीं, ज़रुरत भी होती है. भारत इस वक्त एक ऐसे मोड़ पर है, जहां उसे देश के भीतर मौजूद राष्ट्रविरोधी तत्वों से भी लड़ना है. और सीमा के उसपार मौजूद दुश्मनों का भी पूरी ताकत के साथ सामना करना है. भारतीय सीमा के आसपास पाकिस्तान और चीन की सक्रियता को देखते हुए भारत के लिए सावधान रहना बहुत ज़रूरी है.

Reports के मुताबिक, कुछ दिन पहले ही भारतीय सीमा के पास तिब्बत में चीन ने हल्के टैंक तैनात कर दिए हैं.

उसने सिक्किम की सीमा से सटे हुए इलाकों में 50 किलोमीटर की रेंज तक हमला करने वाले Laser and Satellite Guided, PLC-181 तोपों को तैनात कर दिया है.

ये वही हथियार है, जिसका इस्तेमाल चीन की Artillery Brigade ने तिब्बत में वर्ष 2017 में किया था.

इसके अलावा चीन, अपने इलाकों में सैनिकों की संख्या बढ़ा रहा है.

इसीलिए भारत भी हर चुनौती का सामना करने के लिए लद्दाख और कश्मीर के इलाक़ों में तैयारी कर रहा है. वहां आकाश मिसाइल सिस्टम की एक रेजीमेंट तैनात करने की प्रक्रिया पर काम चल रहा है. आकाश मिसाइल, सतह से हवा में 30 किलोमीटर की दूरी तक वार कर सकती है. और दुश्मन के लड़ाकू विमानों को तबाह कर सकती है. ने ज़मीन पर मौजूद भारतीय सेना के इस आकाश का एक विश्लेषण तैयार किया है. भारतीय सेना दिवस के दिन आप इसे हमारी तरफ से एक छोटा सा तोहफा भी कह सकते हैं.

हर साल सेना दिवस सिर्फ एक सरकारी औपचारिकता बनकर रह जाता है. इसलिए आज हम आपसे अपील करेंगे, कि आप भी इस दिन को उतना ही महत्व दें, जितना आप किसी और पर्व या त्यौहार को देते हैं. आज का दिन हमारे लिए एक पर्व जैसा ही होना चाहिए. और यकीन मानिए…अपने देश के जवानों के लिए अपनी सोच में ये छोटा सा बदलाव लाकर….हम ना सिर्फ उन्हें सम्मान देंगे…बल्कि उनके हौसलों को भी मज़बूत करेंगे.

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