RSS को नया व‍िचार देने वाले नानाजी देशमुख को भारत रत्‍न, सरस्‍वती शिशु मंदि‍र की स्‍थापना की

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्‍या पर देश की तीन हस्‍‍तियों को भारत रत्‍न से सम्‍मानित करने की घोषणा हुई. पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अलावा, भूपेन हजारिका और आरएसएस के बड़े नेता नानाजी देशमुख को भी भारत रत्‍न देने की घोषणा की गई. भारत रत्‍न के इति‍हास में नानाजी देशमुख दूसरे स्‍वयंसेवक हैं, जिन्‍हें भारत रत्‍न दिया गया है. 27 फरवरी 2010 को 93 साल की उम्र में नानाजी देशमुख का नि‍धन हो गया था. इससे पहले उन्‍हें पद्मविभूषण से सम्‍मानि‍त क‍िया जा चुका है.

सभी जानते हैं कि संघ का विचार हिंदू राष्‍ट्रवाद पर आधारित था. लेकि‍न नानाजी देशमुख ने संघ और देश को एक नया विचार ‘मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं” दिया. नानाजी ने अपनी कर्मभूमि भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को बनाया. नानाजी का मानना था कि जब अपने वनवासकाल के प्रवास के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं. अतः नानाजी चित्रकूट में ही जब पहली बार 1989 में आए तो यहीं बस गए.

1940 में हेडगेवार के निधन के बाद RSS को खड़ा किया
RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से नानाजी के पारिवारिक सम्बन्ध थे. नानाजी की उभरती सामाजिक प्रतिभा को पहचानते हुए हेडगेवार ने उन्हें संघ की शाखा में आने के लिए कहा. सन 1940 में हेडगेवार के निधन के बाद आरएसएस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी नानाजी पर आ गई और इस संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाते हुए नानाजी ने अपना पूरा जीवन संघ के नाम कर दिया.

नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर सन 1916 को बुधवार के दिन महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था. इनके पिता का नाम अमृतराव देशमुख था तथा माता का नाम राजाबाई था. नानाजी के दो भाई एवं तीन बहने थीं. नानाजी जब छोटे थे तभी इनके माता-पिता का देहांत हो गया. बचपन गरीबी एवं अभाव में बीता. जब वे 9वीं कक्षा में थे, उसी समय उनकी मुलाकात संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार से हुई. हेडगेवार उनके कार्यों से बहुत प्रभावित हुए. सन् 1940 में उन्होंने नागपुर से संघ शिक्षा वर्ग का प्रथम वर्ष पूरा किया. उसी साल हेडगेवार का निधन हो गया. फिर बाबा साहब आप्टे के निर्देशन पर नानाजी आगरा में संघ का कार्य देखने लगे.

जनसंघ को उत्‍तरप्रदेश में खड़ा क‍िया
जब आरएसएस से प्रतिबन्ध हटा तो राजनीतिक संगठन के रूप में जनसंघ की स्थापना का फैसला हुआ. गोलवलकर ने नानाजी को उत्तरप्रदेश में भारतीय जन संघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा. नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तरप्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी. 1957 तक जनसंघ ने उत्तरप्रदेश के सभी जिलों में अपनी इकाइयाँ खड़ी कर लीं. इस दौरान नानाजी ने पूरे उत्तरप्रदेश का दौरा किया, जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गयी.

ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के अभिनव प्रयोग के लिए नानाजी ने 1996 में स्नातक युवा दम्पत्तियों से पांच वर्ष का समय देने का आह्वान किया. पति-पत्नी दोनों कम से कम स्नातक हों, आयु 35 वर्ष से कम हो तथा दो से अधिक बच्चे न हों. इस आह्वान पर दूर-दूर के प्रदेशों से प्रतिवर्ष ऐसे दम्पत्ति चित्रकूट पहुंचने लगे. चयनित दम्पत्तियों को 15-20 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के दौरान नानाजी का मार्गदर्शन मिलता.

आज देश भर में सरस्वती शिशु मन्दिर नामक स्कूलों की स्थापना नानाजी ने सर्वप्रथम गोरखपुर में ही की थी. 1947 में आरएसएस ने पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक स्वदेश हिंदी समाचार पत्र निकालने की शुरुआत की. अटल बिहारी बाजपेयी को सम्पादन, दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई. 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया फिर भी भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रहा.

बलरामपुर से सांसद चुने गए
आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव हुआ तो नानाजी देशमुख यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए और उन्हें मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया गया लेकिन नानाजी देशमुख ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि 60 वर्ष की उम्र के बाद सांसद राजनीति से दूर रहकर सामाजिक व सांगठनिक कार्य करें. 1960 में लगभग 60 वर्ष की उम्र में नानाजी ने राजनीतिक जीवन से संन्यास लेते हुए सामाजिक जीवन में पदार्पण किया.

अपना शरीर भी दान कर दि‍या 
1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली बार चित्रकूट आए और यहीं बस गए. 27 फरवरी 2010 को नाना जी का देहांत यहीं पर हुआ. 1999 में नानाजी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी नानाजी की समाजसेवा के कायल थे. नानाजी ने अपने मृत शरीर को मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा निधन से काफी पहले 1997 में ही लिखकर दे दिया था.

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