WhatsApp, Skype और Google Duo पर कसेगा शिकंजा, TRAI रखेगी नजर

इंटरनेट पर व्हाट्सएप और स्काइप जैसे ओवर-द-टॉप (ओटीटी) सेवा प्रदाताओं को नियामकीय शिकंजे के दायरे में लाया जाए या नहीं, यह ऊहापोह फरवरी के अंत तक खत्म होने की संभावना है. उम्मीद है कि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) इस संबंध में अपने नियम को तब तक तय कर लेगा. TRAI के चेयरमैन आर. एस. शर्मा ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘हम जल्द ही इस पर खुली बहस कराएंगे. हमें उम्मीद है कि अगले महीने के अंत तक हम अपनी सिफारिशें जारी कर देंगे.’’

गूगल डुओ, फेसबुक, व्हाट्सएप और स्काइप जैसी इंटरनेट से चलने वाली सेवाएं मोबाइल सेवाप्रदाता कंपनियों की तरह ही कॉलिंग और मेसेजिंग की सुविधा दे रही हैं. ऐसे में पिछले साल नवंबर में ट्राई ने इन सेवाओं को नियामकीय ढांचे के तहत लाने पर विचार-विमर्श किया था. दूरसंचार कंपनियां लंबे समय से इन एप और ओटीटी सेवाओं को नियामकीय ढांचे के तहत लाने की बातचीत कर रही हैं. ट्राई ने इस संबंध में आम लोगों से भी राय मांगी है कि क्या इन पर भी वैसे ही नियम लागू किए जाने चाहिए जो दूरसंचार कंपनियों पर लागू किए गए हैं.व्हाट्सएप और फेसबुक जैसी कंपनियां पहले ही निजी सूचनाओं की चोरी और फर्जी खबरों को लेकर नीति निर्माताओं की नजर में हैं. किसी भी तरह का नया नियामकीय ढांचा या लाइसेंस की जरूरत, ऐसी एप्स पर और दबाव बनाएंगी. दूरसंचार सेवाप्रदाताओं के संघ सीओएआई के अनुसार लाइसेंस शुल्क, स्पेक्ट्रम, दूरसंचार उपकरण और सुरक्षा उपकरणों पर दूरसंचार सेवाप्रदाता कंपनियां बहुत निवेश करती हैं. साथ ही उन पर भारी कर भी लगता है. ऐसे में ये एप बिना किसी नियामकीय लागत के दूरसंचार कंपनियों की तरह ही वायस-वीडियो कॉल और डाटा सेवाएं मुहैया कराती हैं जो ‘असमानता’ है.

ट्राई को लिखे पत्र में सीओएआई ने इन सेवाओं को लाइसेंस के तहत लाने की सिफारिश की है. वहीं दूसरी तरफ इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) और ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम ने ओटीटी सेवाओं को लाइसेंस या नियामकीय ढांचे के तहत लाए जाने का विरोध किया है.

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