शिवसेना ने बीजेपी पर कसा तंज, ‘ईवीएम साथ दे तो लंदन-अमेरिका तक में जीत सकते हैं’
शिवसेना ने सामना के जरिए एक बार फिर से केंद्र और महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी पर जमकर निशाना साधा है. पार्टी ने अपने मुखपत्र में लिखा है, ‘महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आत्मबल की जितनी प्रशंसा की जाए वो कम ही है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में पुणे में श्री फडणवीस ने नारा दिया है कि ‘पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में हमने 42 सीटें जीती थीं. इस बार हम किसी भी हालत में 43 सीटें जीतेंगे.’
लेख में आगे लिखा है, ‘फडणवीस का ऐसा भी दावा है कि इस बार हम बारामती में पवार को भी हराएंगे. इस पर पवार ने अपने स्वभावानुसार बीजेपी को शुभकामनाएं दी हैं. सच तो यह है कि महाराष्ट्र की कुल सीटों में से मतलब 48 सीटें ये लोग आसानी से जीत सकते हैं और देश में तो अपने बलबूते 548 सीटें तो कहीं नहीं गई हैं. ‘ईवीएम’ और इस तरह झागवाला आत्मविश्वास साथ में हो तो लंदन और अमेरिका में भी ‘कमल’ खिल सकता है लेकिन उससे पहले अयोध्या में राम मंदिर का कमल क्यों नहीं खिला? इसका जवाब दो.’
शिवसेना ने कहा है कि अयोध्या जैसे कई सवालों का जवाब उनके (बीजेपी) पास नहीं लेकिन ‘इसे गिराएंगे, उसे गिराएंगे, उसे गाड़ेंगे’ इस तरह की भाषा इन दिनों दिल्ली से लेकर गल्ली तक जारी है. गिराने की भाषा इनके मुंह में इतनी बस गई है कि किसी दिन ‘स्लिप ऑफ टंग’ होकर खुद के ही अमुक-तमुक लोगों को गिराएंगे, ऐसा बयान उनके मुंह से न निकल जाए. सत्ताधारी दल में जो संयम और विनम्रता का भाव होना चाहिए वो हाल के दिनों में खत्म हो चुका है.
सामना में लिखा है, ‘एक तरह की राजनीतिक बधिरता का निर्माण हुआ है. यह मान्य है कि विरोधी दल बेलगाम होकर बोलता है, इसलिए सत्ताधारी दल भी इसी तरह बेलगाम होकर न बोले. महाराष्ट्र में शीत लहर के कारण फसलों पर बर्फ जम गई है. कई भागों में ओस की बूंदें जम गई हैं. उसी तरह सत्ताधारियों की बुद्धि भी ठंडी से जम गई है और राजनीति बिगड़ गई है, ऐसा कुछ हुआ है क्या? किसान आज संकट में है. सूखाग्रस्त महाराष्ट्र को केंद्र ने भी नजरअंदाज कर दिया. उन पर जोर से चिल्लाने की बजाय ‘इसे गिराओ, उसे गाड़ो’ ऐसा ही बयानबाजी हो रही है.’
लेख में आगे लिखा है, ‘महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी युति का मामला अधर में अटका है. लेकिन ये स्थिति हमने नहीं पैदा की. बल्कि 2014 में इस पाप का बीजारोपण बीजेपी ने ही किया था. सत्ता आती है और चली जाती है. लहर आती है और लहर खत्म हो जाती है. लोकतंत्र में दुर्घटनाएं होती रहती हैं लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में दुर्घटना से राह निकालने का काम जनता को ही करना पड़ता है. पिछले 70 वर्षों में जनता ने यह कार्य बखूबी किया है. किसी दुर्घटना में मजबूत, कर्ता-धर्ता इंसान की स्मृति चली जाती है. उसी तरह किसी दुर्घटना में ‘झटका’ लगने के बाद उसकी स्मृति लौट आती है, ऐसा विज्ञान कहता है. सत्ता किसे नहीं चाहिए? राजनीति करनेवाले सभी लोगों को वह चाहिए लेकिन चौबीस घंटे उसी नशे में रहकर झूमना और नशे में डूबकर बोलना यह उचित नहीं.’
पार्टी ने सामना के जरिए कहा, ‘चुनाव लड़ने के लिए ही जैसे हमारा जन्म हुआ है और दूसरे किसी की चुनाव में उतरने की योग्यता भी नहीं है, ऐसे अहंकारी फुफकार से महाराष्ट्र का सामाजिक मन मटमैला किया जा रहा है. राज्य में ढेर सारे सवाल हैं. मुख्यमंत्री इन सवालों को छोड़कर चुनाव लड़ने-जीतने का जाल बुनते बैठे हैं. एक तरफ 48 में से 43 सीटें जीतने की गर्जना करना और दूसरी तरफ शिवसेना के साथ हिंदुत्व के मुद्दे पर ‘युति’ होनी ही चाहिए, ऐसा कहना. एक बार निश्चित क्या करना है इसे तय कर लो. कुछ भी अनाप-शनाप बोलते रहने से लोगों में बची-खुची प्रतिष्ठा भी खत्म हो जाएगी. जो जीतना है, उसे जीतो लेकिन महाराष्ट्र के गंभीर सवालों का क्या?’
लेख में आगे लिखा है, ‘नगर जिले के पुणतांबे में किसानों की बेटियों ने आंदोलन शुरू किया है. ये बेटियां अनशन पर बैठी हैं. उस आंदोलन को कुचलने के लिए जो सरकार पुलिस बल का इस्तेमाल करती है उनके मुंह जीतने की भाषा शोभा नहीं देती. किसानों की बेटियों-बहुओं को गाड़ो, यही संदेश सरकार दे रही है. प्याज को सिर्फ साढ़े सात पैसे का भाव मिल रहा है. दूध पर लगनेवाली जीएसटी ने किसानों को परेशान कर रखा है.’
पार्टी ने अपने मुखपत्र में लिखा है, ‘अनाथ आश्रम के दत्तक केंद्रों में पिछले ४ वर्षों में एक हजार से अधिक बच्चों की मौत हुई है. राज्य में शिक्षकों की 24 हजार सीटें खाली पड़ी हैं. उसे भरा जाए इसलिए शिक्षक अनशन पर बैठा है. इनमें से एक भी समस्या पर सरकार के पास कोई उपाय नहीं है. लेकिन महाराष्ट्र में 48 में से 43 सीटें जीतने का ‘उपाय’ उनके पास है. जनता को मरने दो, राज्य खाक होने दो, लेकिन राजनीति टिकनी चाहिए. इसे गिराएंगे, उसे गिराएंगे, ऐसा इन दिनों जारी है. इसी नशे में कल वे खुद धराशायी हो जाएंगे, फिर भी इनका गिरे तो भी टांग ऊपर, इस तरीके से कामकाज जारी है. ठंडी से ओस की बूंदें जम रही हैं। उसी तरह राजनीतिक अतिसार से सत्ताधारियों की बुद्धि और मन भी जम गया है.’