हरियाणा में भाजपा से गठजोड़ के बाद शिरोमणि अकाली दल ने नया सियासी कार्ड चल दिया…
भारतीय जनता पार्टी का पंजाब में तो शिरोमणि अकाली दल का साथ अरसे से है, लेकिन हरियाणा में पहली बार उसने भाजपा का साथ देने की घोषणा। इन सबके बीच शिअद की रणनीति की किसी को भनक तक नहीं थी। इसी के तहत उसने विधानसभा चुनावों में भाजपा से हरियाणा में अपने लिए 30 सीटें मांगी हैं। दरअसल, शिअद ने यह कदम भाजपा की पंजाब में अधिक सीट की मांग के जवाब में किया है।
पंजाब में पचास फीसद सीटें मांगने वाली भाजपा को उसी के अंदाज में जवाब
बताया जाता है कि भाजपा पंजाब में शिअद से 50 फीसद सीटें मांगने की तैयारी में है। समझा जा रहा है कि शिअद ने हरियाणा में भाजपा से इसलिए 30 सीटें मांगी है ताकि पंजाब विधानसभा चुनावों में उसे भाजपा को पहले से अधिक सीटें न देनी पड़े।
गौरतलब है कि इसके पहले हरियाणा में अकाली दल का सहयोग और समर्थन इंडियन नेशनल लोकदल को रहता था। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों को छोड़ दें तो उसने हर चुनाव में इनेलो का ही साथ दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में तो हिसार से इनेलो के प्रत्याशी रहे दुष्यंत चौटाला का प्रचार करने भी सरदार प्रकाश सिंह बादल पहुंचे थे। हालांकि संसदीय चुनाव में अकाली दल ने भाजपा का साथ दिया था, लेकिन तब उसने कोई सीट नहीं मांगी थी।
संसदीय चुनाव के बाद अकाली दल के हरियाणा के प्रभारी व राज्यसभा सदस्य बलविंदर सिंह भूंदड़ ने हरियाणा के नेताओं के साथ मीटिंग करके अब भाजपा से तीस सीटें मांग लीं है। उनकी दलील है कि अकाली दल का कुरुक्षेत्र, अंबाला, फतेहाबाद, सिरसा आदि में अच्छा आधार है। इस पंजाबी व सिख बहुल इलाकों की सीटें उन्हें दी जानी चाहिए।
आखिर यह रणनीति क्यों अपनाई पार्टी ने
राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि अकाली दल ने यह रणनीति क्यों बनाई। 2019 के संसदीय चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन ने 13 में से चार सीटें जीतीं जिनमें दो पर अकाली दल ने और दो पर भाजपा ने कब्जा किया। अकाली दल दस सीटों पर लड़ा और दो सीटें जीता जबकि भाजपा ने तीन में से दो सीटें जीतीं।
उसके बाद पूर्व प्रधान कमल शर्मा ने सार्वजनिक तौर पर बयान जारी कर दिया कि अब पार्टी विधानसभा चुनाव में पंजाब में 117 में सिर्फ 23 सीटों पर नहीं लड़ेगी बल्कि 50 फीसदी सीटों की मांग करेगी। भाजपा का मुख्य फोकस कोर मालवा पर होगा, जिसमें लुधियाना जिला शामिल नहीं है।
कोर मीटिंग में भी उठा था मुद्दा
अकाली दल द्वारा सीटें ज्यादा लेने का मसला पिछले दिनों भाजपा की कोर कमेटी की मीटिंग में भी उठा था। उसमें तय किया गया कि अब पार्टी 23 सीटें नहीं लेगी बल्कि कम से कम 45 सीटों पर लड़ेगी। पार्टी की सीनियर लीडरशिप ने कह दिया कि वे अपना आधार मालवा में भी बढ़ाएं ताकि अकाली दल के साथ नए सिरे से सीटों की हिस्सेदारी पर बात की जा सके।
भाजपा के इस रुख को देखकर अकाली दल ने भी उसी तरह का दांव खेला है। पार्टी ने हरियाणा में 30 सीटें मांग ली हैं। हरियाणा में इतनी सीटों पर अकाली दल ने कभी नहीं लड़ा है। इनेलो के साथ समझौता होने पर भी वे पार्टी को दो से तीन सीटें ही देते रहे हैं। अकाली दल की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि पार्टी को इतनी सीटें मिलनी मुश्किल है लेकिन भाजपा पंजाब में ज्यादा पांव न पसारे, ऐसा इसलिए किया गया है।