सबसे बड़ी गैलेक्सी का लगा पता, हल हो सकती है ब्रह्मांड की पहेलियां

खगोलविदों ने अंतरिक्ष में एक ऐसी आकाशगंगा का पता लगाया है, जो ब्रह्मांडीय धूल के बादलों के बीच छुपी हुई है और माना जा रहा है कि यह आकाशगंगा शुरुआती ब्रह्मांड से भी पुरानी है। खगोलविदों का दावा है कि यह अब तक खोजी गर्ईं सबसे बड़ी गैलेक्सी है। यह खोज नई आकाशगंगाओं का पता लगाने लिए खगोल विज्ञानियों को प्रोत्साहित कर सकती है।

अल्मा 66 रेडियो दूरबीनों का संग्रह

अमेरिका की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा, ‘यह खोज हमें ब्रह्मांड की कुछ सबसे बड़ी आकाशगंगाओं के शुरुआती दौर के बारे में नई जानकारियां देती है। साथ ही इनके बारे में एक नया नजरिया पेश करती है।’ ऑस्ट्रेलिया की स्वाइनबर्न प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और इस अध्ययन के सह-लेखक इवो लाबे ने कहा, ‘यह एक विशालकाय आकाशगंगा है, जिसमें लगभग उतने ही तारे हैं जितने हमारे मिल्की वे में है, लेकिन इसमें एक फर्क यह है कि इस आकाशगंगा के तारों की गतिशीलता हमारे मिल्की वे से सौ गुना ज्यादा है।’ एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने अटाकामा लार्ज मिलीमीटर एरे, या अल्मा का उपयोग किया। अल्मा 66 रेडियो दूरबीनों एक संग्रह है, जो चिली के ऊंचे पहाड़ों में स्थित है।

रहस्यमय आकाशगंगा

इस अध्ययन की मुख्य लेखिका क्रिस्टीना विलियम्स ने कहा, यह बहुत रहस्यमय आकाशगंगा है। इसका प्रकाश अन्य आकाशगंगाओं से बिल्कुल अलग है। जब मैंने देखा कि यह आकाशगंगा किसी अन्य तरंग दैध्र्य में दिखाई नहीं देती, तो इसके प्रति हमारा उत्साह और बढ़ गया, क्योंकि इसका मतलब है कि संभवत: यह आकाशगंगा अंतरिक्ष में बहुत दूर धूल के बादलों के बीच छिपी हुई है।

हल हो सकती है ब्रह्मांड की पहेलियां

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसका सिग्नल इतनी दूर से आया था कि पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 1.25 करोड़ लग गए। खगोलविदों का मानना है कि यह खोज खगोल विज्ञान में लंबे समय से चली आ रही पहेलियों को हल कर सकती है कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में सबसे बड़ी आकाशगंगाओं में से कुछ बड़ी गैलेक्सी कैसे दिखाई देती हैं और सैद्धांतिक रूप से यह बहुत जल्दी कैसे परिपक्व हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त यह भी पता लग सकता है कि हबल स्पेस टेलीस्कोप से देखी जाने वाली छोटी आकाशगंगाएं तेजी से क्यों नहीं बढ़ रही हैं?

भारतीय टेलीस्कोप ने खोजी थी आकाशगंगा

इससे पहले खगोलशास्त्रियों ने एक भारतीय टेलीस्कोप की मदद से ब्रह्मांड में अब तक की सबसे दूर स्थित आकाशगंगा की खोज की थी। पुणे में स्थित गेंट मीटर- वेव रेडियो टेलीस्कोप द्वारा खोजी गई यह आकाशगंगा उस दौर की बताई गई थी जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति को ज्यादा समय नहीं हुआ था। इस आकाशगंगा की दूरी जेमिनी नार्थ टेलीस्कोप और लार्ज बाइनोक्युलर टेलीस्कोप की मदद से निर्धारित की गई थी। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी जर्नल के अनुसार, यह आकाशगंगा उस समय की है, जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति को महज एक अरब साल हुए थे।

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