हांगकांग की अस्थिरता वैश्विक अर्थव्यवस्था को कर रही डावांडोल, संकट में कई अंतरराष्ट्रीय कंपनी

हांगकांग में पांच महीने पहले शांतिपूर्ण सामूहिक मार्च के रूप में जो आंदोलन शुरू हुआ था, वर्तमान में वह शहर के सबसे बड़े राजनीतिक संकट में बदल गया है। सरकार और चीन की नीतियों को लेकर लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन से बड़े पैमाने पर व्यवधान उत्पन्न हुआ है। वैश्विक वित्तीय केंद्र होने के नाते हांगकांग में जारी अस्थिरता का असर पूरी दुनिया के व्यापार पर पड़ना शुरू हो गया है। कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां और ब्रांड हांगकांग से बाहर निकलने और अपनी शाखाओं को कहीं और स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं। निवेश कमजोर होने लगा है। पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय कमी दर्ज हुई है।

अर्थव्यवस्था को नुकसान

पांच महीने की हिंसा और उपद्रव ने शहर की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। हांगकांग मंदी की गिरफ्त में फंस गया है।

पर्यटकों का आना हुआ कम

खुदरा व्यापार और शहर में आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है। लोग अपनी नौकरी खो रहे हैं, और छोटे व्यवसायों को बंद करने को मजबूर हैं। इस साल मई में पर्यटकों की 59 लाख संख्या सितंबर में कम होकर 31 लाख रह गई।

होगा बुरा हाल

हांगकांग एक वैश्विक वित्तीय केंद्र है, इसलिए इसकी अर्थव्यवस्था पर जरा सी भी चोट दुनिया भर में व्यापार को प्रभावित करती है। कई आर्थिक विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अशांति जारी रहती है, तो अंतरराष्ट्रीय कंपनियां हांगकांग से बाहर निकलने और अपनी शाखाओं को कहीं और स्थानांतरित कर सकती हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चीन ने अपनी सेना शहर में तैनात की तो इस तरह की कार्रवाई हांगकांग के लिए विनाशकारी हो सकती है। शेयर बाजार धड़ाम हो जाएगा। इसका असर पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। बड़े पैमाने पर शहर से पलायन शुरू हो जाएगा और अन्य देशों में हांगकांग से आने वाले प्रवासियों की संख्या बढ़ जाएगी। 1997 की विरासत के रूप में कई हांगकांग वासियों के पास विदेशी पासपोर्ट है और उनके लिए विदेश जाना आसान है।

संकट में कई अंतरराष्ट्रीय कंपनी

कई ब्रांड और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन समर्थक और चीन विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच फंस गई हैं। जो ब्रांड और कंपनियां प्रदर्शनकारियों के प्रति सहानुभूति रखती हैं, उनका सामना चीनी उपद्रव और वित्तीय गतिरोध से होता है और जो चीन के प्रति सहानुभूति रखने की कोशिश करते हैं, उन्हें प्रदर्शनकारियों का समाना करना पड़ता है।

उदाहरण के लिए, एनबीए टीम के महाप्रबंधक ने विरोध प्रदर्शनों के समर्थन में ट्वीट किया तो चीन के दबाव के चलते एनबीए को माफी मांगनी पड़ी। उसके बाद महाप्रबंधक ने फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपने समर्थन की पुष्टि की। इससे चीन भड़क गया और उसने एनबीए से अपनी साझेदारी तोड़ ली। मूल्यवान चीनी साझेदारी खो दी। ले ब्रॉन जेम्स और ओनील जैसे बास्केटबॉल सितारों ने भी इस मुद्दे पर बात की। वैन, नाइके, वर्साचे, कोच और गिवेंची जैसे ब्रांड भी चीन या प्रदर्शनकारियों के टार्गेट में हैं।

भविष्य की राह

प्रदर्शनकारियों और सरकार दोनों ही फिलहाल पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे है। ऐसे में यह कहना कठिन है कि संघर्ष कब या कैसे समाप्त हो सकता है।

Related Articles

Back to top button