प्राणि उद्यान के 99 पायदान, एक नजर में जानें बनारसी बाग से अब तक का सफर

लखनऊ अगर इतिहास का सुनहरा पन्ना है तो यहां का चिडिय़ाघर उस पन्ने पर अंकित स्वर्णिम हस्ताक्षर। अपनी जिन खूबियों के लिए यह शहर दुनिया भर में मशहूर है, उनमें से एक यहां का प्राणि उद्यान आज अपने 99 वर्ष पूरे कर रहा है। शहर को बदलते हुए देखने के साथ इसने खुद को भी कई मायनों में तब्दीलियत से गुजारा है। यहां तक कि नाम भी कई बार बदले गए। बाढ़ का कहर झेलकर भी अपने वजूद को कायम रखने वाले चिडिय़ाघर ने कई मुश्किल दौर देखे, तो कई ऐसी सौगातें भी रहीं जिन्होंने इसे खुद पर गर्व करने का मौका दिया। देश के मशहूर चिडिय़ाघरों में शुमार हमारा प्राणि उद्यान आज भी लोगों की पहली पसंद है। यह जितना अजीज हमें कल था, उतना ही आज भी है और कल भी रहेगा। एक नजर उसकी यात्रा पर…

बनारसी बाग से नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान तक का सफर 

कभी चिडिय़ाघर के आसपास के लोगों में इसकी पहचान बनारसी बाग के रूप में थी। समय के साथ इसके नाम में बदलाव दिखे। प्रिंस ऑफ वेल्स जूलोजिकल्स गार्डन से लेकर लखनऊ प्राणि उद्यान व नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान तक के सफर में वन्य जीवों की इस छोटी सी दुनिया में कई बार हलचलें भी हुईं।

मशहूर हो गई बारादरी 

उमराव जान फिल्म का मशहूर गीत ‘दिल चीज क्या है, आप मेरी जान लीजिए’ भी चिडिय़ाघर की बारादरी में फिल्माया गया। इस गीत ने चिडिय़ाघर को और भी मशहूर बना दिया। यहां आने वाले दर्शकों में बारादरी को देखने की उत्सुकता आज भी बरकरार है।

बच्चों का वंडरलैंड

चिडिय़ाघर हमेशा से बच्चों की पसंदीदा जगह रही है। यहां आते ही मानो बच्चे एक जादुई संसार में प्रविष्ट कर जाते हैं। बाल ट्रेन से लेकर अजायबघर तक। अब तो सांपघर, उल्लूघर, मछलीघर और तितली बाग जैसे कितने ही ऐसे रोमांचकारी अनुभव हैं कि बच्चे सपनों की दुनिया में खो जाते हैं। यहां आमद भी सबसे ज्यादा बच्चों की ही होती है।

हमेशा चर्चा में रहा चिडिय़ाघर 

अपनी उपलब्धियों व अन्य वजहों के चलते चिडिय़ाघर हमेशा चर्चा में बना रहा। जापान के प्रधानमंत्री को भेंट स्वरूप भेजी जा रही नन्ही हाथी की मौत भी चिडिय़ाघर के दामन में ही हुई। इसके चलते जापान तक चिडिय़ाघर चर्चा में रहा। वर्ष 1960 में बाढ़ का कहर भी चिडिय़ाघर ने झेला था, तब वन्यजीवों को पानी से बचने के लिए ऊंचाई की जगह तलाशनी पड़ी। बाघ और शेर भी अपनी मांद की छत पर आ गए थे और डर यह बन रहा था कि वह बाहर न जाएं। वर्ष 1960 में प्रधानमंत्री की हैसियत से जवाहर लाल नेहरू ने भी चिडिय़ाघर की सैर की तो तीन दशक बाद उनका राजहंस जहाज भी चिडिय़ाघर की शान बन गया। वर्ष 1965 में चिडिय़ाघर की शान में एक और इजाफा हुआ और संग्रहालय उसका हिस्सा बन गया। मिस्र की ममी (संरक्षित शव, जो आज भी सुरक्षित है) ने संग्रहालय की तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ाया।  वर्ष 1968 में बाल ट्रेन बच्चों के बीच मशहूर हुई। पचास साल बाद चिडिय़ाघर में 2002 में कोलकाता से जिराफ पहुंचा तो चिडिय़ाघर में इसे देखने वाले दर्शकों का हुजूम उमड़ पड़ा। फिल्मी हस्तियों ने भी इसकी पहचान दूर-दूर बढ़ाई।

इनकी भी रही चर्चा

  • उमराव जान फिल्म की शूटिंग सफेद बारादरी में हुई।
  • 15 मार्च 1995 को चिडिय़ाघर के चिकित्सक डा.रामकृष्ण दास गेंडा लोहित के हमले का शिकार बने और उनकी जान चली गई। इस घटना की चर्चा देश-विदेश तक रही।
  • मार्च 1998 में मोबाइल जू से पकड़कर लाए गए वृंदा नाम के शेर के कारण चिडिय़ाघर का नाम देश-दुनिया में चर्चा में रहा। पिंजड़े में अधिक समय रहने के कारण उसकी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई थी। वह बड़ी मुश्किल से चल पाता था। वर्ष 1999 में उसके लिए मर्सी किलिंग का निर्णय लिया गया। अखबारों में खबरें छपी तो देश ही नहीं विदेशों में रह रहे वन्य जीव प्रेमी वृंदा के पक्ष में उतर आए। दुआ के साथ दवाएं भी देश-विदेश से आने लगीं।
  • वर्ष-1998 में हथिनी चंपाकली के पेट में उल्टा बच्चा था। प्रसव में दिक्कत थी। खबरें छपीं तो ब्रिटेन समेत कई देशों के चिकित्सकों ने सुझाव व दवाएं भेजीं।
  • वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जापान के प्रधानमंत्री को हाथी का बच्चा भेंट करना चाहते थे। तब सड़क मार्ग से जा रहे बच्चे की हालत खराब हो गई और उसे बीमार अवस्था में चिडिय़ाघर लाया गया। यह घटना भी चर्चा में रही और जापान के राजदूत के अलावा भारत के रक्षा मंत्री भी हाथी का बच्चा देखने पहुंचे।
  • नन्हे सारस हैप्पी के पंख तराशने का मामला आया तो दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों ने हंगामा मचा दिया, लिहाजा उसे सुरक्षित गोंडा के पक्षी विहार में छोडऩा पड़ा।

आज सम्मानित होंगे पूर्व निदेशक व चीफ

चिडिय़ाघर के निदेशक आरके सिंह ने गुरुवार को बताया कि स्थापना दिवस के मौके पर चिडिय़ाघर में पूर्व निदेशकों व पूर्व मुख्य संरक्षकों को सम्मानित किया जाएगा। इनमें उमाशंकर सिंह, अनुपम गुप्ता, महेंद्र सिंह, संजय श्रीवास्तव, पी प्रभाकर, डी बंसल, रेनू सिंह, ईवा शर्मा, आरएल सिंह, अहमद हसन, सुमन रूपक डे आदि शामिल हैं।

एक नजर में चिडिय़ाघर

  • प्रिंस ऑफ वेल्स के लखनऊ आगमन पर 29 नवंबर 1921 को चिडिय़ाघर की स्थापना।
  • 29 हेक्टेयर क्षेत्रफल यानी करीब 75 एकड़ में फैला है।
  • वन्य जीवों की 102 प्रजातियां, मछली की 65 प्रजातियां जिनमें वर्ष 2019 में स्टारफिश व सी-हैनीमॉन की दुर्लभ प्रजातियां चिडिय़ाघर में लाई गईं।
  • रोज तीन से 13 हजार तक औसत दर्शक आते हैं, पिछले वर्ष चिडिय़ाघर में 15 लाख 84 हजार दर्शक आए।
  • चिडिय़ाघर में करीब पांच हजार से अधिक पेड़ हैं जिनमें छह-सात चंदन के पेड़, 33 फीट से ज्यादा गोलाई वाला पारिजात का दुर्लभ पेड़ भी शामिल है जो हेरिटेज वृक्ष की श्रेणी में आता है। इमली, अशोक, अर्जुन, एलेंथेस जैसे पेड़ बरसों पुराने हैं।
  • 1,500 से ज्यादा वनस्पतियां चिडिय़ाघर को पर्यावरणीय माहौल दे रही हैं।
  • चिडिय़ाघर में 93 नियमित व 120 संविदा कर्मचारी हैं।
  • वर्तमान में बड़ों के लिए टिकट दर 80 रुपये व पांच से 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए 40 रुपये है।

बहुत याद आते हैं वो…

इस बार चिडिय़ाघर को 99वां स्थापना दिवस मना रहा है। इस दौरान इतने बरसों में चिडिय़ाघर ने कुछ वन्य जीवों को खोया तो कुछ नए सदस्यों को अपने परिवार में शामिल किया। को पाया। चिडिय़ाघर में वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. उत्कर्ष शुक्ला ने बताया कि यहां नौकरी करते हुए मुझे लगभग 26-27 साल हो रहे हैं। इस दौरान मेरे सामने कई वन्य जीवों की मौत हुई जो आज भी हमें याद आते हैं। यहां बड़ा धनेश सबसे उम्रदराज होकर मरा था। उस वक्त उसकी उम्र लगभग 50 वर्ष थी, अब तो मैं खुद धनेश की उम्र तक पहुंचने वाला हूं। इसी तरह कालू उर्फ श्याम नाम का गिब्बन भी लगभग 38 साल की उम्र में हमसे जुदा हुआ। वहीं, चिडिय़ाघर की शान हुक्कू बंदर को हमने इसी वर्ष खोया है। जिसे आज भी बच्चे ही नहीं बड़े भी याद करते हैं। ऐसे तमाम जानवर हैं जो हम सबको याद आते हैं।

ये हैं सबसे बुजुर्ग सदस्य

चिडिय़ाघर में इस वक्त बुजुर्ग सदस्यों में सोनू नाम का लकड़बग्घा सबसे उम्रदराज जानवर है। उसकी उम्र इस समय लगभग 17 साल है। वहीं, पैंथर मलिहाबाद की उम्र 18 साल है, बुजुर्ग होने के बावजूद वह आज भी स्वस्थ है। इसी तरह इप्शिता टाइगर भी 18 वर्ष पूरे करने वाली बुजुर्ग सदस्य है।

बच्चों संग बड़ों को लुभाती बाल रेल

चिडिय़ाघर की बाल रेल यहां बच्चों ही नहीं बड़ों के बीच भी बेहद लोकप्रिय है। 14 नवंबर, 1969 को तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता ने बालरेल का उद्घाटन किया था। इसके स्टेशन का नाम चंद्रपुरी स्टेशन रखा गया। पुरानी बालरेल के स्थान पर नई बालरेल और रेलवे ट्रैक का फरवरी 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री के जरिए उद्घाटन किया गया। इस समय रेलवे ट्रैक की कुल लंबाई 1.4 किमी है। वर्ष 1971 में चिडिय़ाघर की गोल्डेन जुबली मनायी गयी थी।

चिडिय़ाघर में फ्री में दिखाई जा रहीं फिल्में

हर जानवर में कोई ऐसी विशेषता होती है जो लोगों को आकर्षित करती है, खासकर बच्चों को। कुत्ते अपनी पूंछ क्यों हिलाते हैं, बिल्ली पंजों के बल कैसे उतरती है, पेंग्विन के पैर बर्फ में क्यों नहीं जमते, ऐसे तमाम सवालों के जवाब बच्चों के मन में उठते हैं। जिनके जवाब देने व बच्चों को वन्य जीवों के प्रति जागरूक करने के लिए चिडिय़ाघर में वन्य जीवों के जीवन से जुड़ीं रोचक फिल्में दिखाई जा रही हैं। गुरुवार को यह जानकारी देते हुए चिडिय़ाघर के निदेशक आरके सिंह ने बताया कि एनिमल प्लानेट के साथ मिलकर हमने इसकी शुरुआत की है। जिसके तहत चिडिय़ाघर में हर रोज बच्चों को दो फिल्में दिखाई जा रही हैं जो पूरी तरह निश्शुल्क हैं।

Related Articles

Back to top button