रामजन्मभूमि पर फैसले के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में आज दाखिल करेगा रिव्यू पिटीशन

बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब के अनुसार छह दिसंबर को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगा। रिव्यू पिटीशन पर हाजी महबूब सहित मो. उमर, मौलाना महफूजुर्रहमान, बादशाह खान जैसे स्थानीय पक्षकारों के हस्ताक्षर हैं।

इससे पहले जमीयत उलेमा हिंद नौ नवंबर को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर रिव्यू पिटीशन सर्वोच्च न्यायालय में दायर कर चुका है, जबकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से पक्षकार रहे इकबाल अंसारी फैसला आने के पूर्व से ही घोषित अपने रुख पर कायम हैं। इकबाल अंसारी से पहले पक्षकार रहे उनके पिता मरहूम हाशिम अंसारी भी सदैव कहते आए थे कि सर्वोच्च न्यायालय का जो भी फैसला आएगा उन्हें मान्य होगा। इकबाल ने इस संबंध में बुलाई बैठकों से भी खुद को दूर रखा।

फैसला आने के बाद अपनी शुरुआती प्रतिक्रिया में हाजी महबूब ने भी रिव्यू पिटीशन दाखिल न करने की बात कही थी, लेकिन बाद में वह अपने बयान से पलट गए और कहा कि सबकी राय में उनकी राय भी शामिल है। हालांकि रामनगरी के अधिकतर लोग व संत धर्माचार्य इकबाल अंसारी के रुख पर खुशी का इजहार करते हुए उन्हें सौहार्द का दूत बताते हैं। बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब का कहना है कि यह न्यायिक प्रक्रिया का ही हिस्सा है और इस दिशा में हम जितनी कोशिश कर सकते हैं, वह करेंगे। हमने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का एलान कर रखा है। 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कर रहा है तैयारी

सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर को अयोध्या में विवादित स्थल राम लला को देने का निर्णय किया है। इसके एवज में सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में दूसरे स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का निर्णय किया है। इसी निर्णय का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विरोध कर रहा है। 27 नवंबर को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका नौ दिसंबर से पहले दाखिल करने का एलान किया था।बोर्ड इन दिनों पुनर्विचार याचिका को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है। बोर्ड के सचिव व बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी का कहना था कि हमारे पास पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए नौ दिसंबर तक का समय है। इसलिए दिसंबर के पहले हफ्ते में पुनर्विचार याचिका दाखिल हो जाएगी। कहा कि पुनर्विचार याचिका हमारा संवैधानिक अधिकार है।

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