67 साल बाद जौनसार में मनाया गया बिस्सू का फुलियात पर्व, देवता को अर्पित किए बुरांस के फूल
67 साल बाद जौनसार की खत मझियारना के समाल्टा में बिस्सू का फुलियात पर्व मनाया गया। पर्व पर चालदा महाराज मंदिर समाल्टा में हर गांव से ग्रामीण ढोल-दमाऊ रणसिंगे की गूंज के साथ ग्रामीण पहुंचे। जिन्होंने देवदर्शन कर खुशहाली की मन्नतें मांगी और देवता को बुरांस के फूल अर्पित किए।
स्थानीय ग्रामीणों ने लोक संस्कृति के प्रतीक ठोड़ा नृत्य की प्रस्तुति से युद्व कला का प्रदर्शन किया। बिस्सू देखने बाहर से आए पर्यटकों के लिए ठोड़ा नृत्य विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।
बैसाखी की संक्राति से एक दिन पहले मंगलवार को रायगी गांव स्थित शेडकुडिया महाराज और चालदा महासू मंदिर कोटी-बावर में मने बिस्सू मेले के साथ जौनसार-बावर में बिस्सू पर्व का आगाज हो गया था। जिसके बाद अन्य स्थानों पर बिस्सू पर्व की शुरूआत हुई।
फुलियात पर्व मनाने बड़ी संख्या में जुटे स्थानीय ग्रामीणों व महिलाओं ने देवता के दरबार में मत्था टेकने के बाद ढोल-दमोऊ व रणसिंघे की थाप पर हारुल के साथ तांदी नृत्य की प्रस्तुति से समा बांधा।
बिस्सू में देव पालकी के दर्शन को जुटी भीड़
देवघार खत के रायगी गांव में शेडकुडिया महाराज का प्राचीन मंदिर है। देव परंपरा के अनुसार यहां प्रतिवर्ष बैसाखी की संक्राति से एक दिन पहले बिस्सू मेला मनाने का रिवाज है। इसके बाद जौनसार-बावर के अन्य इलाकों में पूरे एक माह तक बिस्सू का जश्न परंपरागत तरीके से मनाया जाएगा।
क्षेत्र में बिस्सू मेले की शुरुआत रायगी मंदिर से होती है। लोकपरंपरा के अनुसार बिस्सू के दिन रायगी मंदिर के गर्भगृह से शेडकुडिया महाराज की देव पालकी गाजे-बाजे के साथ श्रद्वालुओं के दर्शनार्थ बाहर निकली। देवता के दर्शन को बड़ी संख्या में जुटे श्रद्वालुओं ने देव पालकी को कंधा लगाकर पुण्य कमाया।
बिस्सू में ठोड़ा नृत्य रहा आकर्षण का केंद्र
जौनसार-बावर में हर साल अप्रैल से मई माह के बीच मनाए जाने वाले बिस्सू मेले का विशेष एवं परंपरागत महत्व है। ढोल-बाजे के साथ आए ग्रामीणों ने जौनसारी जनजाति समाज की लोक संस्कृति के प्रतीक माने जाने वाले ठोड़ा नृत्य की शानदार प्रस्तुति से अपनी युद्व कला का प्रदर्शन कर समाज की नई पीढ़ी को विरासतन संस्कृति को बचाने के साथ जडों से जुड़े रहने की सीख दी।
लोक संस्कृति के जानकारों ने ठोड़ा नृत्य के समय तीर-कमान से एक दूसरे पर निशाना साधा। सटीक निशान लगाने पर युद्व कला के माहिर देवघार-बावर के ग्रामीणों ने युवाओं के साथ बिस्सू का जश्न मनाया।