अब आजाद महसूस होता है-साजिद खान पर उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली प्रियंका बोस ने बताया
साजिद खान पर मी टू मूवेंट के तहत उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली अभिनेत्री प्रियंका बोस का कहना है कि इस बारे में खुलकर बोलने के बाद वो पहले से ज्यादा आजाद महसूस कर रही हैं.
‘लायन’ की अभिनेत्री प्रियंका बोस जिन्होंने मीटू मूवमेंट के दौरान फिल्म मेकर साजिद खान पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, उनका कहना है कि अपने साथ हुए उत्पीड़न के बारे में दुनिया को बताने के बाद मैं खुद को आजाद महसूस कर रही हूं.
जब उनसे साजिद खान के साथ कड़वे अनुभव के बाद जीवन में आए बदलाव के बारे में पूछा गया तो एक्ट्रेस ने बताया, “ओह, मैं इससे ऊपर उठ चुकी हूं. बेहतर हो कि इससे उनकी जिंदगी में बदलाव आए. हम अपराधियों से घिरे पड़े हैं. इसके बारे में खुलकर बोलने के बाद मैं खुद को आजाद महसूस कर रही हूं, जबकि कई लोग ऐसा नहीं करते. यह हर किसी का व्यक्तिगत फैसला होता है. इस दौरान मुझे जज किया गया, अपमानित किया गया और अब मुझे हरगिज फर्क नहीं पड़ता.”
प्रियंका बोस इन दिनों नेशनल और इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं. हाल ही में उन्हें एचएंडएम के ‘कॉन्शियस कलेक्शन स्प्रिंग कैंपेन 2019’ में देखा गया. अपने करियर को लेकर उन्होंने बताया कि वह कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं. इनमें से एक है प्रकाश झा की शिक्षा व्यवस्था पर आधारित आगामी फिल्म ‘परीक्षा’.
इसके बारे में प्रियंका ने बताया, “परीक्षा’ फिल्म एक अभिभावक के अपने बेटे को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने के सपने और उससे जुड़े संघर्षों पर आधारित है. भारत एक ऐसा देश है, जहां शिक्षा व्यवस्था में भी वर्ग का पैमाना बनाया गया है. जहां अगर आप किसी जाति से ताल्लुक रखते हैं तो उस स्थिति में आपको मिलता है, वर्ना नहीं मिलता.
परिवार का कमाने वाला सदस्य एक रिक्शा चालक है. कलाकार के तौर पर हमें इस तरह की कहानियों से इस दूरी को खत्म करने का मौका मिलता है.”जब उनसे पूछा गया कि वह बड़े पर्दे पर कम नजर आती हैं, ऐसा क्यों? तो उनका जवाब था, “मैं पिछले दो साल से लगातार काम कर रही हूं.
मैंने एप्पल (एप्पल टीवी+वीडियो स्ट्रिमिंग सर्विस) के एक रोमांचक शो की शूटिग हाल में ही पूरी की है. अब यह कब रिलीज होगा यह मुझ पर निर्भर नहीं है. मैं काफी कुछ सीख रही हूं, खुद को ढेर सारे कामों में व्यस्त रख रही हूं. मेरे मैनेजर और मेरे एजेंट मेरे नजरिए को और मुझे काफी समर्थन देते हैं. जो काम मुझे यहां मिलता है और जो काम मुझे वहां (अंतर्राष्ट्रीय) मिलता है, दोनों से मैं दो दुनिया के बीच की दूरी को पाटना सीख रही हूं.”