कहीं भस्म, कहीं जूता, कहीं बिच्छू तो कहीं जलते अंगारों से खेली जाती है होली, जानिए….

होली का पर्व रंगों से भरा होता है। रंगभरे इस पर्व को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है और इस पर्व पर लोग एक-दूजे को रंग लगाते हैं और गले मिलते हैं। इस दिन दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं और रंगों से खेलते नजर आते हैं।

इस साल होली का पर्व 29 मार्च को मनाया जाने वाला है। यह पर्व हर साल बड़े ही आकर्षक तरीके से मनाया जाता है लेकिन इस साल कोरोना के कहर के चलते ऐसा नहीं हो सकेगा। इस साल कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोगों को घरों में रहकर होली खेलने के लिए कहा गया है। वैसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी जगहों के बारे में जहाँ बहुत ही अनोखे तरीके से होली का जश्न मनाया जाता है।

लट्ठमार होली – इस होली के बारे में तो आपने सुना ही होगा। ब्रज में जो होली खेली जाती है वह 5,000 वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार खेली जाती है। यहाँ एक अनोखे अंदाज में होली खेली जाती है जिसे लट्ठमार होली कहा जाता है। इस दौरान यहाँ लड़के राधा के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं और इसी बीच बरसाने की लड़कियां और महिलाएं उनपर लट्ठों की वर्षा करती हैं और उन्हें झंडा फहराने से रोकती हैं। यहाँ कोई हार-जीत नहीं होती और ना ही कोई नाराजगी। यहाँ सभी मजे और आनंद के साथ लट्ठमार होली खेलते हैं। सब आनंद और मधुरता के साथ एक-दूजे को रंगते हैं, लट्ठ मारते हैं और आनंद लेते हैं। वैसे यहाँ लड़कियों के लट्ठों की चोट से लड़कों का बचना आसान नहीं होता है। परम्परा के अनुसार लड़कों को उनसे बचना होता है और गुलाल छिड़ककर उन्हें चकमा देना होता है। इस दौरान पकड़े जाने पर न केवल उनकी जमकर पिटाई होती है, बल्कि महिलाओं जैसा श्रृंगार करके उन्हें बीच भवन में नचाया भी जाता है। यहाँ सभी पर प्राकृतिक रंग-गुलाल की बारिश होती रहती है। यह पर्व यहाँ सबसे ख़ास अंदाज में मनाया जाता है और इस पर्व पर लोग जमकर आनंद लेते हुए दिखाई देते हैं।

हल्दी वाली होली- यहाँ होली का पर्व कुछ धूम-धाम से नहीं मनाया जाता है लेकिन हाँ, होली जैसा ही एक त्यौहार मनाया जाता है जिसका नाम है मंगलकुली। कहते हैं होली को यहाँ पर मंगलकुली कहा जाता है और इसे मनाने के लिए लोग यहाँ बड़े-बड़े टब में हल्दी घोलते हैं और फिर उसमे लोगों को डालते हैं और नहला देते हैं। वैसे आप सभी जानते ही होंगे दक्षिण भारत में होली को कामदेव की कहानी से जोड़कर देखा जाता है। यहाँ कामदेव और उनकी पत्नी रति की दुखद कहानी के कारण होली का पर्व नहीं मनाया जाता है लेकिन कामदहनम मनाया जाता है। तमिलनाडु में होली को यही कहा जाता है। वहीँ केरल के मलयाली भाषी लोग होली नहीं मनाते, लेकिन हाँ यहाँ रहने वाले तमिल भाषी लोग होली खेलते हैं। बात करें मंगलकुली की तो मंगल यानी हल्दी और कुली का अर्थ स्नान होता है। इसी के चलते यहाँ होली स्नान करवाया जाता है। वैसे यहाँ हैदराबाद में दो दिनों तक होली का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है।

राजवाड़ी होली – नंदूरबार महाराष्ट्र में है और यहाँ के अक्कलकुआं तहसील में काठी नाम का एक गांव है। जहाँ लोग होली के जश्न को धूम-धाम से मनाते हैं। यहाँ पर होली का पर्व आदिवासी समाज मनाता है और वह भी राजवाड़ी तरीके से। जी दरअसल जैसे-जैसे होली नजदीक आती है वैसे-वैसे महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाक़ों के लोग काठी जाना शुरू कर देते हैं। यहाँ पर सभी आदिवासी लोग अपने पारंपरिक परिधान पहनते हैं और उसके बाद यहाँ बजती हैं लोक वाद्यों की धुन। इस धुन पर सभी नाचते-गाते हैं। आप सभी को बता दें कि काठी में होली खेलने की परंपरा 770 सालों से अधिक पुरानी है और यहाँ होली का जश्न देखने लायक होता है।

पत्थर वाली होली- होली का पर्व यहाँ भी बड़ा ही ख़ास होता है लेकिन यहाँ एक ऐसी परम्परा को निभाया जाता है जिसके बारे में सुनने के बाद आपको हैरानी होगी। जी दरअसल राजस्थान के बांसवाड़ा में रहने वाली जनजात‍ियों के बीच होली कुछ इस कदर खेली जाती है कि सुनने के बाद आपको हैरानी होगी। जी दरअसल यहाँ पर होली में गुलाल के साथ होल‍िका दहन की राख पर चलने की परंपरा है। जी हाँ, यहाँ होली पर गुलाल लगाया जाता है और उसके बाद यहाँ लोग होलिका की राख पर चलते भी हैं। केवल इतना ही नहीं बल्कि यहाँ पर होली के दिन पत्थरबाजी का भी चलन है जो सालों से चला आ रहा है। कहा जाता है पत्थर होली खेलने से जो खून व्यक्ति के शरीर से निकलता है वह व्यक्ति को पवित्र और बेहतरीन बनाता है।

जलते अंगारों वाली होली- होली का पर्व मध्यप्रदेश के जिलों में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यहाँ होली का जश्न दिल खोलकर किया जाता है। यहाँ आपको हर जिले में लोग होली खेलने के लिए बेताब ही मिलेंगे। वैसे हम आज बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के मालवा की। यहाँ जिस तरह से होली खेलते हैं सुनकर आप खौफ में डूब जाएंगे। जी दरअसल यहाँ होली के दिन लोग एक-दूजे पर जलते अंगारे फेंकते हैं और यहाँ अंगारों से होली खेली जाती है। यहाँ होली का जश्न बहुत बड़ा होता है लेकिन अंगारों के साथ होता है। कहा जाता है ऐसा इस वजह से किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से होल‍िका राक्षसी मर जाती है। केवल इतना ही नहीं बल्कि यहाँ आद‍िवासी लोग बाजार लगाते हैं फिर उसमे लड़के एक खास तरह का वाद्ययंत्र बजाते हुए डांस करते-करते अपनी मनपसंद लड़की को गुलाल लगा देते हैं। वहीँ इस दौरान अगर उस लड़की को भी वो लड़का पसंद होता है तो लड़की भी बदले में उस लड़के को गुलाल लगाती है और फिर दोनों की शादी हो जाती है।

चिता के भस्म की होली- होली का पर्व वैसे तो रंगों का होता है लेकिन काशी में चिता की भस्म को ही रंग मानकर होली का पर्व मनाया जाता है। यहाँ होली वाले दिन चिता की भस्म का उपयोग किया जाता है। जब यहाँ के लोग होली मनाते हैं तो हर तरफ सुनाई देती है डमरुओं की गूंज और हर-हर महादेव के जयकारे। केवल यही नहीं बल्कि यहाँ भांग, पान और ठंडाई के साथ लोग एक-दूसरे को मणिकर्णिका घाट का भस्म लगाते हुए होली का जश्न धूम-धाम से मनाते हैं। यहाँ का जो दृश्य होता है वह बड़ा ही अलौकिक होता है। यहाँ इस होली को खेलने के पीछे यह मान्यता है कि भोलेनाथ इस दिन सबको तारक का मंत्र देकर तारते हैं। वहीँ पौराणिक मान्यता को माना जाए तो यहाँ एकादशी के अगले दिन भोलेनाथ खुद भक्तों के साथ होली खेलते हैं इसी के चलते चिता की भस्म से होली खेलते हैं।

जूता मार होली- यह होली कहाँ खेली जाती है यह आप सोच रहे होंगे। वैसे ज्यादा देर ना करते हुए हम आपको बता दें कि यह होली यूपी के शाहजहांपुर में खेली जाती है। यहाँ पर जूते मारकर होली का रंगीन पर्व मनाया जाता है। यह होली पर्व ऐसा है कि इसके चलते यहाँ पहले से पुलिस को अलर्ट होना पड़ता है और सभी पर नजर रखनी पड़ती है। यहाँ कोई भी जूते और झाड़ू से कब पीट जाए कुछ खबर नहीं होती है। यहाँ अंग्रेजों के विरोध में होली का पर्व मनाया जाता है।

बिच्छू वाली होली- होली का पर्व वैसे तो रंगों से खेला जाता है लेकिन एक ऐसी भी जगह है जहाँ बिच्छू से होली खेलने का चलन है। जी हाँ, हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी जगह के बारे में जहाँ रंगों से, गुलाल से नहीं बल्कि बिच्छू से होली का पर्व मनाया जाता है। जी दरअसल हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के इटावा की। यहाँ पर एक गाँव है जिसे सौताना के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर होली के एक दिन पहले ही शाम के समय लोग बिच्छू पकड़ते हैं। वह बिच्छू को उसके बिल से बाहर निकालने के लिए जोर-जोर से ड्रमों को पीटते हैं,बजाते हैं। उसके बाद जैसे ही बिच्छू अपने बिल से बाहर आता है वैसे ही लोग उसे पकड़ते हैं और एक-दूसरे के शरीर के अलग अलग भागों पर रखते है। यह आश्चर्यजनक होता है और सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक होता है बिच्छू का किसी को ना काटना। आमतौर पर बिच्छू जहरीले होते हैं और काट ले तो व्यक्ति की जान तक जा सकती है लेकिन यहाँ होली वाले दिन ऐसा कुछ नहीं होता और ना ही आज तक यहाँ से इस दौरान एक भी व्यक्ति को बिच्छू काटने का मामला सामने आया है।

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