US Fed ने वर्ष 2023 तक ब्याज दरों में दो बार बढ़ोतरी की घोषणा की, भारतीय बाजार पर दिखा असर

नई दिल्ली, अमेरिका के फेडरेल रिजर्व ने वर्ष 2023 तक ब्याज दरों में दो बार बढ़ोतरी की घोषणा की है। लेकिन भारतीय बाजार पर इसका असर अभी से दिखने लगा है। डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में फेडरल रिजर्व के फैसले के बाद से लगभग 75 पैसे की गिरावट हो चुकी है और रुपये के कमजोर होने की आशंका अभी जारी है। इसका सीधा असर भारत की महंगाई पर देखने को मिल सकता है।

भारत में थोक और खुदरा दोनों ही महंगाई दर अभी अपने चरम पर हैं और ऐसे समय में महंगाई में तेजी के लिए हवा मिलना आर्थिक विकास के लिए खतरनाक हो सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अमेरिका के साथ भारत में आर्थिक विकास की गति तेज होती है, तो महंगाई के बढ़ने से भी भारत की आर्थिक सेहत पर खास फर्क नहीं पड़ेगा।

पिछले साल के कोरोना काल को छोड़ दे तो भारत हमेशा से निर्यात के मुकाबले आयात अधिक करता रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से आयात करने के लिए पहले की तुलना में अधिक रुपये खर्च करने होंगे, जिससे देश का चालू खाता घाटा बढ़ेगा।

वहीं, डॉलर में निवेश पर अधिक रिटर्न मिलने की संभावना देख विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से जोखिम वाले पोर्टफोलियो से हाथ खींच सकते हैं। इससे भारतीय कंपनियों से शेयर भाव नीचे जाने के साथ डॉलर के रिजर्व में भी कमी आ सकती है। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक यह अब तय है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ाएगा, जिससे निवेशकों को वहां के बांड खरीदने में या फिर डॉलर रखने में अधिक रिटर्न दिख रहा है। इसलिए निवेशक भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में किए गए अपने निवेश को निकालकर अभी से डॉलर इकट्ठा करना शुरू कर देंगे।

एचडीएफसी की वरिष्ठ अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता कहती हैं कि इस प्रकार की कोई भी संभावना देख निवेशक उसका मूल्यांकन करने लगते हैं और उनकी आगे की चाल भी उसके मुताबिक होने लगती है। यही वजह है कि रुपये के मूल्य में पिछले सप्ताह गिरावट देखने को मिली और यह गिरावट अभी और हो सकती है, जो देश के विकास के लिए फिलहाल चिंता का विषय है।

महंगाई को मिलेगी हवा

विशेषज्ञों के मुताबिक, रुपये में कमजोरी से भारत को कच्चे तेल की खरीदारी के लिए पहले के मुकाबले अधिक रुपये खर्च करने होंगे। कच्चे तेल की खरीद मूल्य बढ़ने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें और बढ़ेंगी, जिससे अन्य चीजों की ढुलाई लागत में इजाफा होगा और उसका असर खुदरा कीमत पर दिखेगा। इसके अलावा आयात होने वाले सभी कच्चे माल की खरीदारी के लिए पहले के मुकाबले अधिक रुपये खर्च करने होंगे, जिस कारण उन कच्चे माल से बनने वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे।

लागत बढ़ने से उन वस्तुओं का निर्यात भी प्रभावित होगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता कमजोर होगी। मई महीने की थोक महंगाई दर 13 फीसद तो खुदरा महंगाई 6.30 फीसद के स्तर पर है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई बढ़ती भी है, तो आरबीआइ फिलहाल अपनी दरों में बढ़ोतरी नहीं करने जा रहा है। भारत में बढ़ने वाली महंगाई मुख्य रूप से सप्लाई पक्ष कमजोर होने की वजह से बताई जा रही है। हालांकि, रुपये के कमजोर होने का फायदा निर्यात को मिल सकता है और रुपये टर्म में निर्यात में अधिक बढ़ोतरी दिखेगी।

सरकार से लेकर निवेशकों को सचेत रहने की जरूरत

आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, फेडरल रिजर्व की घोषणा के बाद आरबीआइ से लेकर भारतीय निवेशकों को सचेत रहने की जरूरत है। आरबीआइ अभी ‘इंतजार करो और देखो’ की स्थिति में रहेगा, क्योंकि अभी किसी भी प्रकार के कदम उठाने की स्थिति नहीं बनी है। आरबीआइ यह भी देखेगा कि रुपये के मूल्य में गिरावट से महंगाई किस हद तक बढ़ती है। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

इस साल अमेरिका की विकास दर सात फीसद रहने का अनुमान है। पहले यह अनुमान 6.5 फीसद का था। वहां बेरोजगारी घट रही है और आर्थिक गतिविधियां तेज हो रही हैं, जिससे अमेरिका की महंगाई दर बढ़ रही है, जिसे नियंत्रित करने के लिए इस प्रकार के कदम उठाए जा रहे हैं। इस साल मार्च में फेडरल रिजर्व ने अगले साल तक ब्याज दर जीरो रखने की घोषणा की थी।

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