होम स्टे योजना: उत्तराखंड के गांवों को पर्यटन से जोड़ने की पहल, पढ़े पूरी खबर

देहरादून, नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण उत्तराखंड के गांवों को पर्यटन से जोड़ने के साथ ही आजीविका के नए अवसर सृजित करने के उद्देश्य से चल रही होम स्टे योजना को सरकार की अच्छी पहल माना जा सकता है। पिछले पांच वर्षों में इसके आशानुरूप परिणाम भी आए हैं। पांच हजार के लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 3685 होम स्टे उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद में पंजीकृत हो चुके हैं। तैयार हो चुके होम स्टे का अब सुविधाओं के हिसाब से श्रेणीकरण किया जा रहा है। इस पहल से चारधाम यात्रा मार्ग के साथ ही विभिन्न स्थानों पर सैलानियों के लिए सुविधाएं जुटी हैं। साथ ही रोजगार के अवसर भी सृजित हुए हैं।

यही सरकार की सोच और मंशा भी है। कोरोनाकाल में टिहरी, उत्तरकाशी समेत अन्य स्थानों पर स्थित कुछ होम स्टे तो वर्क स्टेशन के रूप में उभरकर सामने आए हैं। देश के विभिन्न हिस्सों के लोग यहां आकर न सिर्फ होम स्टे में ठहर रहे हैं, बल्कि आनलाइन कार्य संपादित करने के साथ ही यहां के खान-पान और प्रकृति के नजारों का आनंद भी उठा रहे हैं। होम स्टे के लिए शर्त यही है कि इसका संचालक स्वयं वहां रहेगा और सैलानी पेइंग गेस्ट के तौर पर। सैलानियों को यहां के पारंपरिक व्यंजन परोसे जाएंगे तो सांस्कृतिक थाती से भी उसे परिचित कराया जाएगा। निश्चित रूप से यह पहल बेहतर है और बदली परिस्थितियों में इसकी आवश्यकता है।

होम स्टे की मुहिम तेजी से आगे बढ़े, इसके लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी को दोगुना करने की तैयारी है तो नियमों को लचीला बनाने की भी। होम स्टे की पहल से स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार मिल रहा है और स्वाभिमान के साथ जीने का अवसर भी, लेकिन इसके किंतु-परंतु कम नहीं हैं। अभी तक की तस्वीर देखें तो होम स्टे के क्षेत्र में ज्यादातर वही लोग सामने आए हैं, जो सक्षम होने के साथ ही व्यावसायिक सोच रखते हैं।

यह सही भी है और वे अपनी सोच और सरकार से मिले संबल का लाभ उठा रहे हैं, लेकिन गांव के आम ग्रामीण को इस योजना से जोड़ने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार और योजना के क्रियान्वयन को जिम्मेदार विभागों को अपनी रणनीति बदलनी होगी। गांव का गैर व्यवसायिक सोच रखने वाला व्यक्ति भी होम स्टे योजना से लाभान्वित हो, इसे उस स्तर तक ले जाना होगा। जब आम ग्रामीण भी होम स्टे के लिए प्रेरित होंगे, तभी सही मायने में योजना को धरातल पर उतरा हुआ माना जाएगा। इससे पलायन को थामने में भी मदद मिलेगी।

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