तालिबान ने पहली बार ‘आंख के बदले आंख’ के जरिए सुनाई गई सजा, सरेआम दोषी को फांसी
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान ने पहली बार ‘आंख के बदले आंख’ के जरिए सजा सुनाई है। हत्या के दोषी को सरेआम फांसी पर लटकाया गया है। कट्टरपंथी इस्लामी शासन की क्रूरता का चेहरा पहली दफा सार्वजनिक तौर पर सामने आया है। पिछले महीने ही तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्ला अखुंदजादा ने जजों को इस्लामिक कानून के पहलुओं को पूरी तरह से लागू करने का आदेश दिया था। जिसमें सार्वजनिक तौर पर फांसी, पत्थरों से पीट-पीटकर कत्ल, कोड़ों से पिटाई और चोरी के इल्जाम में शरीर के अंगों को काटना शामिल है।
अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांत की राजधानी फराह में बुधवार को एक अफगानी व्यक्ति को सार्वजनिक तौर पर फांसी से लटकाया गया। तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने सार्वजनिक फांसी की बात को कबूला और पुष्टि की कि यह सजा ‘आंख के बदले आंख’ वाला न्याय है। एक बयान में कहा, “सर्वोच्च न्यायालय को हमवतन लोगों की एक सार्वजनिक सभा में किसास के इस आदेश को लागू करने का निर्देश दिया गया था।”
फांसी पर लटकाए गए शख्स का नाम गुलाम सरवर के बेटे ताजमीर के तौर पर हुई है। वह वह हेरात प्रांत के अंजिल जिले का निवासी था। जानकारी के अनुसार, ताजमीर ने एक व्यक्ति की हत्या की थी और उसकी मोटरसाइकिल और सेल फोन चुरा लिया था। बयान में कहा गया है, “बाद में इस व्यक्ति को मृतक के परिवारवालों ने पहचान की।”
तालिबानी फैसले की निंदा
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सार्वजनिक फांसी पर “गहरी चिंता” व्यक्त की। प्रवक्ता स्टेफनी ट्रेमब्ले ने कहा, “हमारी स्थिति कभी नहीं बदली है। संयुक्त राष्ट्र मृत्युदंड के खिलाफ है … इसलिए हम अफगानिस्तान में मृत्युदंड पर रोक की वापसी का आह्वान करते हैं”।
उधर, अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि यह एक तरह का “घृणित” कार्य है। सार्वजनिक फांसी का आदेश सुनाकर दुनिया के सामने तालिबान ने अपने वादों को तोड़ दिया है। प्राइस ने कहा, “इससे संकेत मिलता है कि 1990 के दशक के तालिबान और अभी के तालिबान में कोई फर्क नहीं है।”