।।देश व प्रदेशवासियों को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।।
6 सितंबर 2023 लखनऊ।
भगवान श्रीकृष्ण के प्रकट होने का दिन –
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वंदे जगत गुरुम्।।
आज महामहिमामयी श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महा उत्सव है। वैवस्वतमन्वन्तरीय अष्टाविंश चतुर्युग के द्वापर के अंत में भाद्र मास की कृष्णाष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में पृथ्वी को श्रीकृष्ण के प्राकट्य का महान सौभाग्य प्राप्त हुआ।
अखिल विश्व ब्रह्मांड के लिए आज का दिन महान महिमामय , महान मंगलमय, महान मधुमयऔर महान ममता मय तथा परम धन्य है। आज के ही दिन असुरों के अत्याचारों से उत्पीड़ित, कामना , वासना, दुख दैन्य और दारिद्र्य आदि के तीव्र ताडन से संत्रस्त तथा क्षत विक्षत, बहिर्मुखता एवं जड़वाद से जर्जरित और प्रेम रस सुधा धारा से रहित सर्वथा शुष्क जगत में अखिल रसामृतसिंधु षडैश्वर्यसंपूर्ण सर्वलोक महेश्वर स्वयं भगवान का आविर्भाव हुआ ।
भगवान के अवतार में क्या हेतु होता है, इसे तो भगवान ही जानते हैं, पर जान पड़ता है कि इसमें प्रधान हेतु है भगवान की अपनी घनीभूत परमानंद रस रूप लीला विग्रह को प्रकट करने की मंगलमय इच्छा।
वैसे, साधुजनों का परित्राण, दुष्टो का विनाश के द्वारा भूमिका भारहरण और धर्म संरक्षण या धर्म संस्थापन के मंगल मय कार्य भी श्री भगवान के अवतीर्ण होने में कारण बताए गए हैं।
स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गीता, चतुर्थ अध्याय के आठवें श्लोक में कहा है –
परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
साधु पुरुषों की परित्राण, दुष्टो के विनाश और धर्म संस्थापन के लिए मैं युग युग में उत्तम रीत से प्रकट होता हूं। पर केवल यही कारण नहीं है– भगवान ने ही इससे पहले छठे और सातवें श्लोक में अन्य कारणो का भी स्पष्ट संकेत किया है —
अजोअपि सन्नव्यात्मा भूतानामीश्वरोअपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानम धर्मस्य तादात्मानम् सृजाम्यहम्।।
मै अजन्मा, अव्ययात्मा और समस्त भूतों का ईश्वर रहते हुए ही अपनी प्रकृति को स्वीकार करके अपनी माया से ( योग माया को साथ लेकर) उत्तम रीति से प्रकट होता हूं ।
जब-जब धर्म की ग्लानि तथा अधर्म का अभियुत्थान होता है, तब तक मैं अपने को प्रकट करता हूं ।इनमें से छठे श्लोक में अजन्मा, अविनाशी तथा सर्वभुत महेश्वर होकर भी जन्म लेने, अंतर्धान होने तथा छोटे से पराधीन बालक बनने का संकेत करके ‘विरुद्ध धर्माश्रयी’ स्वयं भगवान के पूर्ण आविर्भाव की बात कही गई है , और सातवे श्लोक में सदुपदेश के द्वारा धर्म ग्लानि रूप अधर्म के अभ्युत्थान का नाश करने वाले अथवा काम कलुषित विषय सेवन रूप अधर्म के अभ्युत्थान को ध्वंसकर परम त्यागमय मधुर तम विशुद्ध (गोपी) प्रेम धर्म के संस्थापन की ओर संकेत किया गया है।
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भगवान है, उनके द्वारा सभी लीलाओं का सुसंपन्न होना इस्ट है- इसके अनुसार उनके प्राकट्य में भी विभिन्न कारण हो सकते हैं और वे सभी सत्य है।
12 वर्ष बाद यह उत्तम दिन आया है रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि आज यानी 06 सितंबर को है।
हम सभी धन्यातिधन्य है जो पावन काल को मना रहे है।
बोलिए नन्द नन्दन बाल कृष्ण भगवान की जय हो।