मामूली समझ जिस दवा को था नकारा, उसी ने दिलाई कैंसर से मुक्ति
यह एक ऐसे नौजवान की कहानी है, जो ब्रेन कैंसर का पता चलने पर जीने की सारी उम्मीद खो चुका था. यह कहानी उन डॉक्टरों की भी है, जिन्होंने उस हताश हो चुके नौजवान में जीने की उम्मीद जगाई और कैंसर का जड़ से खात्मा कर दिया. उस नौजवान ने पाउडर के रूप में मिलने वाली आयुर्वेदिक दवाओं को बेअसर समझा, लेकिन उन्हीं दवाओं ने उसे कैंसर के पीड़ादायक इलाज के बजाय एक दर्द रहित पक्का इलाज दिया.
कैंसर से संघर्ष कर उसे मात देने वाले नौजवान हैं प्रशांत लाकड़ा. आज 32 वर्ष के प्रशांत एक सामान्य जीवन जी रहे हैं. लेकिन आज से 16 साल पहले एक ऐसा भी वक्त आया था, जब उन्हें और उनके परिवार को लगा था कि उनके जीवन का सफ़र लाइलाज कैंसर के चलते वहीं खत्म हो जाएगा. प्रशांत बताते हैं कि जब वे पढ़ाई के लिए रांची हॉस्टल में रहते थे तो अक्सर उनकी आंखों के सामने झिलमिलाहट सी होती थी. तब उन्होंने इसे कमजोरी और बेतरतीब खानपान के कारण उपजी समस्या समझ लिया. वे छुट्टियों में घर में आए और परिवार वालों को बताया, तो भी सभी ने इसे एक सामान्य सी बात समझ ली. बात आई-गई हो गई, उसके बाद वे रांची से पढ़ाई पूरी कर आगे की पढ़ाई पूरी कराने मध्य प्रदेश चले आए.
एक दिन वे जब अपने दोस्तों के साथ कॉलेज के ग्राउंड पर फुटबॉल खेलने गए तो एक बार फिर उनकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया. उनके दोस्तों ने भी इस समस्या को कमजोरीकेा कारण पैदा हुई समस्या समझ लिया. थोड़ी देर बाद प्रशांत मैदान पर गिर गए और तड़पने लगे. इसके बाद उनका एमआरआई कराया गया तो उनके ब्रेन में एक थक्का नजर आया. डॉक्टरों ने बताया कि एक छोटी सी ब्रेन सर्जरी में इस थक्के को निकाल दिया जाएगा तो सबकुछ सामान्य हो जाएगा. लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत, जब उनके ब्रेन की सर्जरी हुई तो डॉक्टरों ने पाया कि जिसे वे मामूली थक्का समझ रहे थे, वह तो ब्रेन कैंसर के कारण है.
प्रशांत की इस हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने पूरी तरह से उनकी जांच की तो पाया कि यह जल्दी ठीक नहीं होने वाला कैन्सर था. जांच में यह बात भी सामने आई कि प्रशांत को एस्ट्रोसाइटोमा ग्रेड-I है. उन्हें डॉक्टरों ने बताया कि 8-10 साल बाद कैंसर फिर उभर सकता है, जिसकी दोबारा सर्जरी करानी पड़ेगी. प्रशांत और उनके परिवार के लिए यह बेहद मुश्किल घड़ी थी. उधर घरवाले उनके बढ़िया से बढ़िया इलाज के बारे में सोच रहे थे और इधर प्रशांत डिप्रेशन के शिकार हो रहे थे. घरवाले उन्हें देश में मौजूद बेहतरीन से बेहतरीन इलाज दिलाने के लिए देश के बड़े-बड़े अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे. प्रशांत महज 19 साल की उम्र में अपनी जिन्दगी खत्म हुई मान चुके थे.
एक दिन अचानक किसी ने उनकी मां को वाराणसी स्थित डी॰एस॰ रिसर्च सेंटर के बारे में बताया. डी॰ एस॰ रिसर्च सेंटर की स्थापना आज से 47 वर्ष पूर्व प्रो. शिवाशंकर त्रिवेदी की अगुवाई में आयुर्वेदिक पद्धति से रोगों का इलाज करने के उद्देश्य से हुई है. उनके नेतृत्व में आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने कई कैंसर और असाध्य रोगों के मरीजों का इलाज सफलतापूर्वक किया है. इस बात की जानकारी होने पर प्रशांत की माँ को अँधेरे में उजाले की किरण दिखाईदी. वे प्रशांत को लेकर वाराणसी पहुंचीं. यहाँ उनकी मेडिकल रिपोर्ट्स देखने के बाद डॉक्टरों ने उनका इलाज शुरू किया. उन्हें कुछ आयुर्वेदिक दवाइयां दी गईं.
प्रशांत आ तो गए थे इलाज कराने, लेकिन उनके मन में इस इलाज को लेकर ज़रा भी भरोसा नहीं था. उन्हें लगता था कि पहले ही वे इतनी दवाइयां ले चुके हैं और सर्जरी करा चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ है. उनका मन संदेह से भरा हुआ था कि यहां पाउडर के रूप में मिलने वाली दवाएं कभी उनका कैंसर ठीक कर सकेंगी या नही. जैसा कि कैंसर के इलाज में होता है, मरीज काफी तकलीफ से गुजरता है, जो उसकी मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालती है. प्रशांत को भी लगता था कि अच्छा होता, अगर उस दिन मैदान पर बेहोश होकर गिरने के साथ ही उन्हें मौत आ गई होती. प्रशांत इसी नकारात्मक सोच के साथ इलाज करा रहे थे. लेकिन डॉक्टर उन्हें दवा के साथ हौसला भी दे रहे थे. डॉक्टरों और मां की कोशिशों के चलते कभी-कभार निराशा में दवा न लेने वाले प्रशांत ने नियमित तौर पर दवाइयां लेनी शुरू कर दीं.
लगभग दो वर्ष बाद जब एक बार फिर प्रशांत की जांच हुई तो आश्चर्यजनक तरीके से उनके मष्तिषक से कैंसर के सारे लक्षण जड़ से गायब हो चुके थे. प्रशांत में नई ऊर्जा का संचार हो चुका था. प्रशांत आज एक सामान्य जीवन जी रहे हैं और वे अपने आपको भाग्यशाली मानते हैं कि वे अपनी मां के साथ डीएस रिसर्च सेंटर आए और उन्हें यहां एक नया जीवन मिला.
डीएस रिसर्च सेंटर के एमडी अशोक त्रिवेदी ने कहा कि इस सेंटर की स्थापना करने वाले प्रो. शिवाशंकर त्रिवेदी और उनकी टीम ने वर्षों के शोध के बाद यह पाया था कि किसी भी प्रकार के रोग का इलाज उन दवाओं से नहीं हो सकता जो किसी भी प्रकार के ड्रग या विषैले केमिकल से बनीं हों. इस तरह की दवाएं किसी भी मरीज का स्थाई इलाज नहीं कर पातीं. उन्होंने बताया, “हमारी टीम ने 47 वर्षों के अनुसंधान के दौरान एक हजार से अधिक मानवीय भोज्य पदार्थों से ऐसी औषधि विकसित करने में सफलता प्राप्त की है, जो मानव शरीर को खतरनाक बीमारियों से मुक्त कर सकती है.”