नागेश्वर राव, इतिहास में CBI के पहले अधिकारी जिन्‍हें मिली ऐसी सज़ा

DNA में अब हम CBI के पूर्व अंतरिम निदेशक और Additional Director, M. नागेश्वर राव की अनोखी सज़ा का विश्लेषण करेंगे. देश के इतिहास में ये पहली बार है, जब CBI के किसी अधिकारी को ऐसी सज़ा हुई हो. आज सुप्रीम कोर्ट ने नागेश्वर राव को अदालत की अवमानना के मामले में एक अनोखी सज़ा सुनाई. सुप्रीम कोर्ट ने नागेश्वर राव को कोर्ट का काम खत्म होने तक कोर्ट के एक कोने में बैठे रहने की सज़ा दी. इस सज़ा के बारे में सुनकर आपको अपने स्कूल की याद आ गई होगी. सबसे पहले आपको ये समझाते हैं कि किस मामले में नागेश्वर राव को ये सज़ा सुनाई गई? ये मामला बिहार के मुज़फ्फरपुर शेल्टर होम मामले की CBI जांच से जुड़ा हुआ है. पिछले साल मुज़फ्फरपुर के शेल्टर होम में रहने वाली बच्चियों के यौन शोषण का मामला सामने आया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जब ये जांच CBI को सौंपी थी तो ये आदेश दिया था कि अदालत की अनुमति के बिना CBI की जांच टीम में शामिल किसी भी अधिकारी का ट्रांसफर न किया जाए. लेकिन अदालत के आदेश के बावजूद, जांच टीम के प्रमुख, Joint डायरेक्टर AK शर्मा का ट्रांसफर कर दिया गया. इसी साल 17 जनवरी को उनका ट्रांसफर CBI से CRPF के Additional DG के पद पर कर दिया गया था.

इसके बाद 7 फरवरी को जब सुप्रीम कोर्ट मुज़फ्फरपुर शेल्टर होम मामले की सुनवाई कर रहा था, तो अदालत के सामने ये बात आई। इससे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई काफी नाराज़ हुए और उन्होंने नागेश्वर राव को अवमानना का नोटिस भेजते हुए उन्हें 12 फरवरी को पेश होने का आदेश दिया था. नागेश्वर राव ने सोमवार को यानी कल सुप्रीम कोर्ट में एक लिखित हलफनामा दायर किया और उसमें बिना शर्त के माफी भी मांगी.

अपने माफ़ीनामे में नागेश्वर राव ने कहा कि उन्होंने जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना नहीं की. इसके बाद आज नागेश्वर राव कोर्ट के सामने हाज़िर हुए. नागेश्वर राव की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल K. K. वेणुगोपाल ने कहा कि नागेश्वर राव अपनी गलती स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन ये उन्होंने जानबूझ कर नहीं किया. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अवमानना के आरोपी का बचाव सरकार के पैसे से क्यों हो रहा है? नागेश्वर राव की तरफ़ से दलील देने के लिए कौन सा वकील पेश हुआ है?

चीफ जस्टिस ने नाराज़गी जताई और कहा कि नागेश्वर राव को सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का पता था, तभी उन्होंने Legal विभाग से राय मांगी और Legal Advisor ने कहा था कि AK शर्मा का ट्रांसफ़र करने से पहले सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर करके इजाज़त मांगी जाए, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ऐसा नहीं किया.

चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर आप कोर्ट से पूछे बगैर अधिकारी के Relieving Order पर Sign करते हैं तो ये कोर्ट की अवमानना नहीं, तो और क्या है? आगे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि नागेश्वर राव ने AK शर्मा को जांच की टीम से हटाने के बाद, सुप्रीम कोर्ट को बताने की जरूरत तक नहीं समझी. इसके बाद अटॉर्नी जनरल ने अदालत से विनती करते हुए कहा कि My Lord, प्लीज़ इन्हें माफ कर दीजिए. इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि वो नागेश्वर राव की माफ़ी को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। वो नागेश्वर राव को अवमानना का दोषी मानते हैं. चीफ जस्टिस ने उन्हें बुलाकर ये भी कहा कि अदालत उन्हें 30 दिन के लिए जेल भेजेगी, इस पर उन्हें क्या कहना है.

लेकिन इसके बाद एक बार फिर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि My Lord इंसान से गलतियां हो जाती हैं, इंसान गलतियों का पुतला है. इसलिए नागेश्वर राव को माफ कर दीजिए. लेकिन चीफ जस्टिस ने नागेश्वर राव को अवमानना का दोषी करार दिया. उन्हें कोर्ट की कार्यवाही चलने तक कोर्टरूम में रहने की सज़ा दी और उन पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. नागेश्वर राव के अलावा CBI के Legal Advisor, S. Bhasuran (बासुरन) को भी अवमानना का दोषी करार दिया गया और उन पर भी एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया.

इसके बाद चीफ जस्टिस की बेंच Lunch के लिए गई और इस दौरान नागेश्वर राव कोर्ट रूम में बैठे रहे. आज नागेश्वर राव को दोपहर का खाना भी नसीब नहीं हुआ. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. इसके बाद करीब पौने चार बजे अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से एक बार फिर ये गुज़ारिश की कि नागेश्वर राव ने काफी सज़ा भुगत ली है, अब उन्हें जाने दिया जाए. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ये आपका दंड है, आपसे कहा गया है, कोर्ट उठने तक बैठे रहें। क्या आप चाहते हैं कि हम कल कोर्ट उठने तक आपकी सज़ा बढ़ा दें?

कोर्ट के सख्त रवैये के बाद नागेश्वर राव चुपचाप अपनी सीट पर आकर बैठ गए. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का समय पूरा होने के बाद, नागेश्वर राव सज़ा पूरी करके कोर्ट रूम से बाहर निकल गए.

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