चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को झटका लगा है
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को झटका लगा है। दिसंबर में आर्थिक वृद्ध दर अनुमान से भी कम रही है।
सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) कम होकर 6.6 फीसद हो गई, जो पांच तिमाही का न्यूनतम स्तर है। पिछले साल की समान तिमाही में यह 7 फीसद रही थी।
रॉयटर्स के पोल में अर्थशास्त्रियों ने वृद्धि दर के 6.9 फीसद रहने का अनुमान लगाया था। पोल में अर्थशास्त्रियों ने ग्रामीण आय में कमी और शहरी क्षेत्र की सुस्त डिमांड का हवाला देते हुए वृद्धि दर में गिरावट का अंदेशा जताया था।
इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी के अनुमान को घटा दिया गया है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 2018-19 के लिए जीडीपी के पूर्वानुमान को 7.2 फीसद से घटाकर 7 फीसद कर दिया है।
हालांकि, इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
दिसंबर तिमाही में चीनी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.4 फीसद रही है।
गौरतलब है कि 2018-19 की दूसरी तिमाही में जीडीपी 7.1 फीसद रही थी, जबकि पहली तिमाही में यह 8.2 फीसदी थी।
दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट की मुख्य वजह डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में आई गिरावट और ग्रामीण मांग में सुस्ती रही। इसके साथ ही मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग में भी सुस्ती रही, जिसका असर जीडीपी पर हुआ।
सरकार ने लगाया था GDP के 7.2% रहने का अनुमान: इससे पहले सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के जीडीपी पूर्वानुमान को संशोधित करते हुए उसे बढ़ाकर 7.2 फीसद कर दिया था।
तीसरी तिमाही के आंकड़ों के बाद केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने इसे घटाकर 7 फीसद कर दिया गया है। भारत ने वैसे समय में जीडीपी पूर्वानुमान में इजाफा किया था, जब चीन ने वर्ष 2017 के लिए अपनी जीडीपी वृद्धि दर को 6.9 फीसदी से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया है।
जीडीपी में होने वाली संभावित गिरावट को भांपते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ब्याज दरों में कटौती कर दी थी। इसके साथ ही आरबीआई ने अपने नीतिगत रुख को ”सख्त” से बदलकर ”सामान्य” कर दिया था।
हालांकि, आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा समिति ने माना था कि व्यापार युद्ध को लेकर जारी वैश्विक अनिश्चितता, ब्रेक्जिट और तेल की कीमतें आने वाले दिनों में ग्रोथ रेट के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।