महर्षि जैमिनी की शंका और ४ पक्षियों द्वारा उसका निवारण – २
पिछली कथा में आपने पढ़ा कि जैमिनी मुनि के मन में महाभारत और श्रीकृष्ण को लेकर भ्रम उत्पन्न हो गया। वे उसके निवारण हेतु मार्कण्डेय ऋषि के पास गए। उन्होंने जैमिनी मुनि को महर्षि शमीक के आश्रम रह रहे पिंगाक्ष, निवोध, सुपुत्र और सुमुख नामक ४ पक्षियों के पास जाने को कहा। उधर उन पक्षियों ने ऋषि शमीक से ये पूछा कि वे चारो मनुष्यों की भाषा कैसे बोल लेते हैं। तब शमीक ऋषि ने उन्हें उनके पिछले जन्म की कथा सुनाई। अब आगे…
शमीक ऋषि ने बताया कि प्राचीनकाल में विपुल नामक एक तपस्वी ऋषि थे जिनके सुकृत और तुंबुर नाम के दो पुत्र हुए। तुम चारों ही पूर्वजन्म में सुकृत के पुत्र हुए। एक बार देवराज इंद्र पक्षी के रूप में सुकृत के आश्रम आये और उनसे भोजन हेतु मनुष्य का मांस मांगा। तब तुम्हारे पिता सुकृत ने तुम लोगों को आदेश दिया कि पितृऋण चुकाने हेतु तुमलोग इंद्र का आहार बनो। किन्तु मृत्यु के भय से तुम लोगों ने उनकी आज्ञा नहीं मानी। इससे क्रोध होकर तुम्हारे पिता ने तुम चारों को पक्षी रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया और स्वयं पक्षी का आहार बनने के लिए तैयार हो गए।
उनकी ऐसी दृढ इच्छाशक्ति देख कर इंद्र ने उन्हें दर्शन दिए और आशीर्वाद स्वरुप तुम लोगों को श्राप से मुक्ति का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि तुम लोग पक्षी रूप में ज्ञानी बनकर कुछ दिन विंध्याचल पर्वत की कंदरा में निवास करोगे। जिस दिन महर्षि जैमिनी तुम्हारे पास आकर अपनी शंकाओं का निवारण करने के लिए तुम लोगों से प्रार्थना करेंगे, तब तुम लोग अपने पिता के श्राप से मुक्त हो जाओगे। ऐसा कहकर देवराज इंद्र पुनः स्वर्गलोक चले गए। ये कथा सुनकर उन चारो पक्षियों ने महर्षि शमीक से शीघ्र विंध्याचल जाने की आज्ञा मांगी और फिर उनके आदेशानुसार विंध्याचल में जाकर निवास करने लगे।
इस कथा को सुनकर मार्कण्डेय मुनि ने जैमिनी ऋषि से कहा – “हे महामुने! यही कारण है कि मैंने आपको विंध्याचल पर्वत को जाने को कहा। वहाँ वे चारों पक्षी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि आपके पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देकर वे चारों श्रापमुक्त हो जाये। इसीलिए आप यथाशीघ्र विंध्याचल की और प्रस्थान कीजिये।” महर्षि मार्कण्डेय की सहमति से जैमिनी ऋषि विंध्याचल पहुंचे और उन्होंने वहां उच्च स्वर में वेदों का पाठ करते पक्षियों को देखा। यह देख कर वे बड़े प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने चारों से अलग-अलग ४ प्रश्न पूछे।
- पिंगाक्ष से उन्होंने पूछा – “इस जगत के कर्ता-धर्ता भगवान ने मनुष्य का जन्म क्यों लिया?” तब पिंगाक्ष ने कहा – “हे महर्षि! कई बार प्रभु अपनी ही सृष्टि के बनाये नियम का पालन करने के लिए विवश होते हैं। इसी कारण पापियों का नाश करने के लिए और इस पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करने के लिए स्वयं नारायण ने श्रीकृष्ण के रूप में मानव अवतार लिया।”
- निवोध से उन्होंने पूछा – “द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी क्यों बनी?” तब निवोध ने कहा – “महामुने! द्रौपदी ने पिछले जन्म में महादेव से ऐसे पति की कामना की थी जो धर्म का चिह्न हो, बल में जिसकी कोई तुलना ना हो, जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो, संसार में उसके सामान कोई सुन्दर ना हो और जिसके सामान धैर्यवान कोई और ना हो। किसी भी एक व्यक्ति में ये सारे गुण नहीं हो सकते थे इसीलिए उसे पाँच पतियों से विवाह करना पड़ा क्यूंकि युधिष्ठिर धर्म का चिह्न थे, भीम का बल अपार था, अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, नकुल सर्वाधिक सुन्दर और सहदेव सबसे बड़े धैर्यधारी थे। सूर्यपुत्र कर्ण में ये सारे गुण अवश्य थे किन्तु उनमे एक अवगुण था कि वे अधर्मियों का साथ दे रहे थे।
- सुपुत्र से उन्होंने पूछा – “श्रीकृष्ण के भ्राता बलराम ने किस कारण तीर्थयात्राएं कीं?” तब सुपुत्र ने कहा – “महर्षि! बलराम कभी भी भाइयों के बीच वैरभाव के समर्थक नहीं थे। उनके विचार में जितना दोष दुर्योधन का था, द्रौपदी को दांव पर लगाने के कारण उससे अधिक दोष युधिष्ठिर का था। उन्हें ये पता था कि जैसा युद्ध इन दोनों पक्षों के बीच होने वाला है वैसा ना आज तक हुआ और ना ही होगा। ऐसे समय में शांति का लोप हो जाएगा। इसी कारण शांति हेतु उन्होंने युद्ध में भाग ना लेकर तीर्थयात्रा करना उचित समझा।
- सुमुख से उन्होंने पूछा – “द्रौपदी के पांच पुत्र उपपांडवों की ऐसी जघन्य मृत्यु क्यों हुई?” तब सुमुख ने कहा – “हे महामुने! ये इस युद्ध का प्रारब्ध था। धरती को मनुष्यों और पापियों के भार से मुक्त करने के लिए ही ये युद्ध हुआ था। इसी कारण इसमें पापियों के साथ-साथ श्रेष्ठ मनुष्यों की भी मृत्यु हुई। उप-पांडवों की मृत्यु भी उनके पिछले जन्मों के कर्मों के कारण हुई।”
इस प्रकार चारो पक्षी महर्षि जैमिनी के प्रश्नों का समाधान कर श्राप