जानिए- केंद्र सरकार ने HC में क्यों कहा- जीवन के अधिकार का हिस्सा नहीं विवाह का अधिकार

विवाह करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार नहीं है और यह संविधान के तहत जीवन के अधिकार के दायरे में नहीं आता। सोमवार को यह बात केंद्र सरकार (Union Government) और भारतीय सेना (Indian Army) ने दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में कही। उन्होंने कहा कि वैवाहिक स्थिति के आधार पर जज एडवोकेट जनरल (जैग) विभाग या किसी बल की भर्ती में कोई भेदभाव नहीं होता है।

केंद्र सरकार व सेना ने अदालत में कहा कि जैग विभाग की भर्ती प्रक्रिया में शादीशुदा पुरुषों व महिलाओं की प्रविष्टियों को रोका गया है। इसमें अगर कोई भी बदलाव किया जाता है तो यह देश की सुरक्षा को प्रभावित करेगा। सुरक्षा कारणों का दिया हवाला केंद्र सरकार व सेना ने शपथ पत्र में कहा कि यही वजह है कि शादीशुदा पुरुष और महिलाओं की विभाग में भर्ती को रोका गया है। साथ ही सुरक्षा कारणों के चलते बोर्ड में अन्य आवेदन को भी रोका गया है।

याचिकाकर्ता कुश कालरा द्वारा दायर याचिका पर जवाब देते हुए शपथ पत्र दाखिल किया गया। कुश कालरा ने जैग विभाग में शादीशुदा महिलाओं और पुरुषों के आवेदन पर लगी रोक को संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन बताया है। शपथ पत्र में कहा गया है कि अगर याचिका को स्वीकार किया जाता है तो इसका असर पूरे देश की सुरक्षा पर पड़ेगा।

याचिकाकर्ता ने इसे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया याचिकाकर्ता द्वारा शादीशुदा पुरुषों और महिलाओं को आवेदन से रोका जाना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इसके जवाब में शपथ पत्र में कहा गया है कि अनुच्छेद 21 के तहत शादी का अधिकार जीवन का अधिकार नहीं हो सकता है। ऐसा कहीं भी नहीं लिखा गया है कि शादी न किए जाने से व्यक्ति की जिंदगी दुखी और अस्वस्थ हो जाती है।

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