भगवान महावीर कौन थे, क्यों मनाया जाता है, ये पर्व

महावीर जयंती जैन समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। 17 अप्रैल को भगवान महावीर की 2617 वीं जयंती मनाई जा रही है। जैन ग्रंथों के अनुसार 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। उन्होंने ही अहिंसा परमो धर्म: का संदेश दुनिया भर में फैलाया। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने 12 वर्षों की कठोर तप कर अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। हम इस खबर में बता रहे हैं क्यों मनाई जाती है महावीर जयंती…

कौन थे भगवान महावीर

भगवान महावीर का जन्म 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर हुआ। उनके बचपन का नाम वर्धमान था। घर त्याग करने वाले स्वामी महावीर अपने सिद्धांत के बेहद पक्के थे। कहा जाता है कि महावीर अपने सिद्धांत में समर्पण का भाव सबसे अहम था। उनका मानना था कि किसी से मांग कर, प्रार्थना करके या हाथ जोड़कर धर्म हासिल नहीं किया जा सकता। भारत में कई राज्यों में जैन धर्म को मानने वाले लोग हैं लेकिन राजस्थान और गुजरात में इसकी तादाद सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं। इसलिए इन राज्यों में इस पर्व को महापर्व की तरह मनाया जाता है।

जैन धर्म के लोग महावीर जयंती को बहुत धुमधाम और व्यापक स्तर पर मनाते हैं। मगवान महावीर ने हमेशा से ही दुनिया को अहिंसा और अपरिग्रह का संदिश दिया है। उन्होंने जीवों से प्रेम और प्रकृति के नजदीक रहने को कहा है।

कैसे मनाया जाता है पर्व
जैन धर्म के लिए इस पर्व का बहुत महत्व है, लोग इस पर्व को महापर्व की तरह मनाते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसमें जैन समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं।

पांच सिद्धांत
मोक्ष पाने के बाद, भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत लोगों को बताए जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाने वाले बताये जाते हैं। ये पांच सिद्धांत इस प्रकार हैं, पहला अहिंसा, दूसरा सत्य, तीसरा अस्तेय, चौथा ब्रह्मचर्य और पांचवा व अंतिम सिद्धांत है अपरिग्रह। इसी तरह किंवदंती है कि महावीर जी के जन्म से पूर्व उनकी माता जी ने 16 स्वप्न देखे थे जिनके स्वप्न का अर्थ राजा सिद्धार्थ द्वारा बतलाया गया है। 

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