सुविधा के नाम पर सिजेरियन का रास्ता अपनाना मां-बच्चे की सेहत के लिए सही नहीं

व्यवस्था कोई भी हो, उसके अच्छे और बुरे पहलू होते ही हैं। सिजेरियन यानी ऑपरेशन के जरिये प्रसव भी ऐसी ही व्यवस्था का उदाहरण है। सिजेरियन प्रसव को चिकित्सा के क्षेत्र में किसी क्रांति से कम नहीं माना जाता है। कई जटिल परिस्थितियों में सिजेरियन प्रसव के जरिये गर्भवती या होने वाले बच्चे की जान बचाना संभव हो पाता है। हालांकि इसके कई नुकसान भी हैं। हाल के अध्ययनों में मां-बच्चे की सेहत पर इसके कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं।

जानकारों का कहना है कि तकनीक बेहतर होते जाने के साथ सिजेरियन प्रसव को लेकर लोगों का भरोसा भी बढ़ता गया है। लेकिन इस बढ़ते भरोसे में ही नया खतरा भी पलने लगा है। मजबूरी में अपनाया जाने वाला यह विकल्प लोगों के बीच तेजी से लोकप्रिय हुआ है। स्थिति यह है कि कई लोग सुविधाजनक मानते हुए सामान्य प्रसव के स्थान पर सिजेरियन का ही रुख करने लगे हैं।

32 फीसद बच्चों का जन्म सिजेरियन के जरिये

अमेरिका में सिजेरियन प्रसव के बढ़ते मामलों से परेशान सरकार ने कई जागरूकता अभियान चलाए हैं। हालांकि व्यापक अभियानों के बाद भी इनमें बहुत कमी नहीं आई है। 2017 में यहां 32 फीसद बच्चों का जन्म सिजेरियन के जरिये हुआ था। भारत में भी शहरी इलाकों में सिजेरियन प्रसव के मामले बढ़ने की बातें सामने आई हैं विशेषज्ञों का कहना है कि कई कारणों से लोग सिजेरियन प्रसव को तरजीह देने लगे हैं लेकिन वह इसके खतरे से बिलकुल अनजान है। एक अध्ययन के अनुसार सिजेरियन प्रसव से जच्चा-बच्चा दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। यह असर तात्कालिक भी हो सकता है और दीर्घकालिक भी। हाल के अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि सिजेरियन प्रसव के कारण बच्चे का मानसिक विकास भी प्रभावित हो सकता है।

बढ़ जाता है ऑटिज्म का खतरा

जामा नेटवर्क ओपन में छपे शोध के मुताबिक सिजेरियन व सामान्य प्रसव से पैदा हुए बच्चों में कई अंतर होते हैं। इनमें से कई फर्क आगे चलकर बच्चे के मानसिक विकास पर असर डाल सकते हैं। इसकी पुष्टि करने के लिए स्वीडन के स्टॉकहोम स्थित कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट व ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी समेत कई अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया। इस दौरान पहले किए गए 61 शोधों से 2.1 करोड़ प्रसव का डाटा जुटाया गया था। उनके विश्लेषण में सामने आया कि सिजेरियन प्रसव से नवजात में ऑटिज्म का खतरा 33 फीसद तक बढ़ जाता है। इसके अलावा अटेंशन डिफिसिट डिसऑर्डर (एडीडी) का भी खतरा 17 फीसद तक बढ़ जाता है। एडीडी डिसऑर्डर से ग्रस्त बच्चे किसी भी काम पर ध्यान नहीं लगा पाते हैं।

कुछ अन्य बीमारियों की भी रहती है आशंका

शोध में शामिल पीएचडी छात्र थ्येनआंग झांग का कहना है कि सिजेरियन के कारण बच्चे के मानसिक विकास पर पड़ने वाले असर को लेकर यह पहला व्यापक अध्ययन है, लेकिन शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पहले के अध्ययनों में भी सामने आ चुके हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य प्रसव के दौरान नवजात बच्चे को अपनी मां से कई बैक्टीरिया मिलते हैं जबकि सिजेरियन प्रसव में ऐसा नहीं होता है। यही वजह है कि सिजेरियन से जन्मे बच्चों को आगे चलकर कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे बच्चों में अस्थमा व मोटापे के साथ डायबिटीज का खतरा भी अन्य से ज्यादा रहता है।

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