धीमी चाल तेज कर देती है मृत्यु की रफ्तार, दिमाग की आयु से है गति का सीधा संबंध

अक्सर देखा जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियों पर भी असर दिखना शुरू हो जाता है। 45 वर्ष के लोगों के चलने की गति का अध्ययन कर शोधकर्ताओं ने इसके पीछे के कारणों का पता लगाने का दावा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि 45 साल की उम्र के बाद लोगों की अन्य शारीरिक गतिविधियों के साथ-साथ चलने की गति भी प्रभावित हो जाती है क्योंकि चलने की गति का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है। यदि हमारी चाल प्रभावित हो रही है तो इसका मतलब है कि हमारे मस्तिष्क की उम्र बढ़ रही है।

इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधार्थी भी शामिल थे। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि धीमी गति से चलने वाले लोगों के फेफड़े, दांत और इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) भी तेज चलने वाले लोगों के मुकाबले कमजोर था। जामा नेटवर्क ओपन नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, बूढ़े रोगियों को आमतौर पर इस तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। लेकिन कम उम्र में इस तरह की समस्याओं से घिरे रहना चिंताजनक है।

लगाया जा सकता है पूर्वानुमान

शोधकर्ताओं ने कहा कि न्यूरोकांग्निटिव परीक्षण के जरिये यह पता लगया जा सकता है कि भविष्य में किन लोगों की चलने की गति कम हो सकती है। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति के आइक्यू स्तर, भाषा समझने व निराशा सहने की क्षमता, मोटर कौशल और भावनात्मक नियंत्रण का अध्ययन कर यह पता लगाया जा सकता है कि 45 वर्ष की उम्र में उनकी चलने की गति कैसी होगी।

समय से पूर्व मौत की आशंका

इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता टेरी ई. मोफिट ने कहा, ‘डॉक्टरों जानते हैं कि धीमी गति से चलने वाले लोगों की तेजी से चलने वालों की तुलना में जल्दी मृत्यु हो जाती है। लेकिन अध्ययन में दावा किया गया है कि पैदा होने से लेकर युवावस्था तक यदि व्यक्ति धीमी चाल से चलता है और यह यदि उनकी आदत में शुमार है तो ऐसी आशंका ज्यादा रहती है कि उनकी मौत समय से पूर्व हो जाए।

ऐसे पड़ता है चाल पर असर

इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने न्यूजीलैंड के डुनेडिन में एक वर्ष के दौरान पैदा हुए लगभग 1,000 लोगों के डेटा की जांच की और 904 प्रतिभागियों का परीक्षण किया जिनकी उम्र 45 वर्ष की थी। इस दौरान उनके जीवन में आए शारीरिक-मानसिक बदलावों का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन से पता चला है कि धीमी गति से चलने वाले लोगों के मस्तिष्क का द्रव्यमान कम होता है और मुख्य कॉर्टिकल की मोटाई भी औसतन कम होती है, जिसका असर उनके चलने की गति पर पड़ता है।

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