फैसले का इंतजार तो पूरे देश को है लेकिन अयोध्या मानो इन दिनों दिल थामे बैठी है….

देश के सबसे बड़े फैसले का इंतजार कर रही अयोध्या कोई साधारण नगरी नहीं है। रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ रामचरितमानस के अनुसार, इसकी स्थापना सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु ने सृष्टि के आरंभ में ही की। मनु के पुत्र महाराज इक्ष्वाकु ने इसे प्रथम राजधानी के रूप में विकसित किया। मनु के अनेक प्रतापी-पराक्रमी वंशजों से सेवित-संरक्षित अयोध्या तब अपने वैभव के शिखर पर जा पहुंची, जब मनु की 63वीं पीढ़ी के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में राम का जन्म हुआ। वैदिक संस्कृति में वे परात्पर ब्रह्मा के पूर्णावतार के तौर पर स्वीकृत-शिरोधार्य हैं। भगवान राम को धर्म का साक्षात विग्रह माना जाता है। यह सच्चाई उनके जीवन से बखूबी बयां है। वे मानवता का परमादर्श निरूपित करने के साथ उदारता से ओत-प्रोत हैं।

भगवान राम से अनुप्राणित धर्म-संस्कृति की यह विरासत उनके उत्तरवर्तियों ने भी पूरी निष्ठा से आगे बढ़ाई। इसी का परिणाम था कि जैन धर्म के 24 तीथर्ंकरों में से पांच ने इसी नगरी में जन्म लिया। अनीश्वरवादी बुद्ध को रामनगरी ने भगवान राम के उत्तरवर्ती के रूप में भगवान का दर्जा दिया। बुद्ध को भी यह नगरी अत्यंत प्रिय थी और ज्ञान प्राप्ति के बाद 45 वर्ष के जीवन में बरसात का 16 चौमासा उन्होंने यहीं बिताया। नगरी का सांस्कृतिक गौरव सिख गुरुओं से भी सज्जित है।

प्रथम गुरु नानक देव, नौवें गुरु तेगबहादुर एवं दसवें गुरु गोबिंद सिंह समय-समय पर रामनगरी की रज शिरोधार्य करने यहां आए। उनके आगमन की स्मृति शताब्दियों से अक्षुण्ण है। इस्लामिक आस्था का केंद्र मानी जानी वाली पैगंबर हजरत शीश की मजार इस्लाम के जन्म से बहुत पूर्व की मानी जाती है। इस विरासत को तब गहरा आघात लगा, जब रामजन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर तोड़ा गया। जैसा कि हिंदू पक्ष का आरोप है, यह मंदिर 1528 ई. में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोप से ध्वस्त करा दिया था। नगरी की अस्मिता पर यह आघात तो तभी से हरा है। इसके बावजूद अयोध्या की गौरव यात्र आगे बढ़ती रही।

बाबर के पौत्र अकबर ने 1580 ई. में जब अपने शासन क्षेत्र को 12 सूबों में बांटा, तब उसमें से अवध भी था और इसकी राजधानी अयोध्या बनाई गई। 1731 ई. में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अवध का सूबा अपने शिया दीवान सआदत खां को प्रदान किया। सआदत खां ने अयोध्या को ही राजधानी बनाकर सूबे का शासन शुरू किया। 1739 ई. में उसका दामाद मंसूर अली खां अवध का नवाब बना। उसने ही बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी का नवनिर्माण कराया। हनुमानगढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास कहते हैं, बाबर की गलती के लिए हम पूरे समुदाय को दोषी नहीं ठहरा सकते और सच्चाई यह है कि रामनगरी शासकों से लेकर आम मुस्लिमों की भी आस्था से अनुप्राणित है। ऐसे में यदि बाबर के अपराध का निराकरण होना है, तो हमें मुस्लिमों से सदियों पुराने रिश्ते की लाज भी रखनी है।

विवादित स्थल से बमुश्किल तीन किलोमीटर के फासले पर स्थित ग्राम मिर्जापुर माफी के रहने वाले समाजसेवी बब्लू खान को इस विरासत ने इतना आंदोलित किया कि तीन वर्ष पूर्व वे राम मंदिर के समर्थन में खुलकर अभियान चलाने लगे। विवाद के निर्णायक मोड़ पर बब्लू कहते हैं, अच्छा तो यह होगा कि कोर्ट का निर्णय आने से पूर्व मुस्लिम मंदिर के हक में मस्जिद का दावा वापस ले बाबर के नाम पर लगा दाग धोएं। हालांकि ऐसी कोशिश के लिए अब समय न के बराबर रह गया है। इसके बावजूद आपसी समझ और भाईचारा वह तत्व है, जिससे बड़ी से बड़ी चुनौती का मुकाबला संभव है। वैदिक आचार्य पं. कल्किराम सरयू तट पर लोगों को एक पर्चा देते नजर आते हैं। इस पर भगवती की उपासना से संबंधित कुछ मंत्र और अनुष्ठान की विधि अंकित होती है। कल्किराम बताते हैं, समुचित विधि से इस मंत्र का अनुष्ठान अराजकता-अन्याय का शमन करने वाला है और आज इसकी कहीं अधिक जरूरत है। सरयू तट पर ही रामकथा मर्मज्ञ पं. राधेश्याम शास्त्री से भेंट होती है।

मौजूदा परिदृश्य के जिक्र पर वे रामराज्य की अवधारणा का स्मरण कराते हैं और रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ रामचरितमानस में वर्णित यह पंक्ति प्रस्तुत करते हैं, सब नर करहिं परस्पर प्रीती/ चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती। फैसले की प्रतीक्षा के बीच रामनगरी में एहतियातन सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ती जा रही है। लंबे विवाद के बीच रामनगरी सुरक्षा संबंधी पाबंदियों से जुड़ी आशंका की आदी हो गई है और मौजूदा मोर्चे पर भी यह आशंका सुरसा की तरह मुंह बाए नजर आती है। स्वयंसेवी संस्था मित्र मंच के प्रभारी शरद पाठक बाबा अपने कुछ सहयोगियों के साथ रिहायशी इलाकों का भ्रमण कर रहे होते हैं और लोगों को यह बताते हैं कि केंद्र एवं राज्य में जिम्मेदार सरकारें हैं। उनके रहते घबराने की जरूरत नहीं है। वे न्याय का पालन कराएंगी और हमें न्याय स्वीकारना है।

अतीत के गौरव से जुड़ने की कसमसाहट

मंदिर-मस्जिद विवाद के समाधान की प्रतीक्षा के साथ अयोध्या में अतीत के गौरव से जुड़ने की कसमसाहट भी बयां हो रही है। जिस अयोध्या की चमक-दमक से प्राचीन ग्रंथ पटे हुए हैं, उसे आज विरासत के अनुरूप सज्जित करने की कोशिश हो रही है। 2014 में केंद्र की मोदी सरकार के प्रथम संस्करण और 2017 में प्रदेश में योगी सरकार आने के साथ इस दिशा में प्रयास रंग लाने लगा है। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत सिंह नगरी की पहचान के पर्याय स्थानीय रेलवे स्टेशन एवं राम की पैड़ी के नवीनीकरण का वास्ता देकर कहते हैं, बदलाव हो रहा है और मंदिर का फैसला आते ही इसे और तीव्र गति मिलेगी।

युगों से रोशन हैं आस्था के केंद्र

कनकभवन, हनुमानगढ़ी एवं पुण्यसलिला सरयू युगों से आस्था का केंद्र बनकर रोशन है। हनुमानगढ़ी एवं कनकभवन जैसे मंदिर स्थापत्य के शानदार उदाहरण हैं पर उससे भी शानदार यहां प्रतिदिन उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ होती है, जो खास पर्वो पर लाखों तक पहुंच जाती है। सलिला सरयू की गणना देश की चुनिंदा स्वच्छ नदियों में होती है और पवित्रता की विरासत सरयू की इस खूबी में चार चांद लगाती है।

विश्व पर्यटन के मानचित्र पर प्रतिष्ठा

प्रदेश की योगी सरकार के ही काल में प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को दीपोत्सव मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई है। पहले वर्ष ही राम की पैड़ी परिसर में रिकॉर्ड एक लाख 87 हजार दीप जले। दूसरे दीपोत्सव में दीपों की संख्या बढ़कर तीन लाख 11 हजार तक और इस बार छह लाख 11 हजार तक जा पहुंची। स्थानीय भाजपा नेता परमानंद मिश्र कहते हैं, सुपर मेगा इवेंट के रूप में रामनगरी के दीपोत्सव को वैश्विक पहचान मिल रही है।

 

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