इस वर्ष गुरू नानक देव जी की जयंती 12 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है….
सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरू नानक देव जी की जयंती पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष गुरू नानक देव जी की जयंती 12 नवंबर दिन मंगलवार को है। गुरू नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। बाद में तलवंडी का नाम ननकाना साहब पड़ा, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। आइए गुरू नानक देव जी की जयंती पर हम जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी प्रमुख बातों के बारे में।
1. गुरू नानक देव जी के पिता का नाम कल्यानचंद या मेहता कालू जी था, वहीं माता का नाम तृप्ता देवी था। नानक देव जी की एक बहन थीं, जिनका नाम नानकी था।
2. नानक देव जी बचपन से ही धीर-गंभीर स्वभाव के थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही रूढ़िवादी सोच का विरोध किया।
3. एक बार उनके पिता जी ने उनको 20 रुपये देकर बाजार भेजा और बोले कि खरा सौदा लेकर आना। उन्होंने उन रुपयों से भूखे साधुओं को भोजन करा दिया। लौटकर उन्होंने पिता जी से कहा कि वे खरा सौदा कर आए हैं।
4. गुरु नानक देव जी की पत्नी का नाम सुलक्षिनी था, वह बटाला की रहने वाली थीं। उनके दो बेटे थे, एक बेटे का नाम श्रीचंद और दूसरे बेटे का नाम लक्ष्मीदास था।
5. नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, वे सिखों के प्रथम गुरू हैं। वे अंधविश्वास और आडंबरों के सख्त विरोधी थे।
6. नानक देव जी एक दार्शनिक, समाज सुधारक, कवि, गृहस्थ, योगी और देशभक्त थे।
7. नानक जी जात-पात के खिलाफ थे। उन्होंने समाज से इस बुराई को खत्म करने के लिए लंगर की शुरुआत की। इसमें अमीर-गरीब, छोटे-बड़े और सभी जाति के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
8. नानक देव जी ने ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार प्रसार किया। वे मूर्ति पूजा के खिलाफ थे। उनका कहना था कि ईश्वर एक है, वह सर्वशक्तिमान है, वही सत्य है।
9. नानक देव जी ने समाज को जागरूक करने के लिए काफी यात्राएं की। उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों का भ्रमण किया।
10. गुरू नानक देव जी का देहावसान करतारपुर में 1539 में हुआ। स्वर्गगमन से पूर्व उन्होंने बाबा लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। वे गुरू अंगददेव के नाम से प्रसिद्ध हुए।