इस अध्ययन की मदद से उत्पादक अपने उत्पाद को और बेहतर तरीके से उपभोक्ताओं को लिए करेंगे पेश
पेय पदार्थों में बनने वाला झाग इस बात का निर्धारण करता है कि उसकी गुणवत्ता कैसी होगी। जिस पेय में जितना ज्यादा झाग लंबे समय तक बना रहता है, माना जाता है कि उसकी ब्रिकी उतनी ही ज्यादा होती है, लेकिन यह झाग पेय पदार्थों में स्थिर कैसे रहता है? अब तक यह एक पहेली थी, जिसे अमेरिकी शोधकर्ताओं ने सुलझाने का दावा किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से वाशिंग मशीन में डिटर्जेंट (सर्फ) के झाग को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है, जहां अपेक्षित झाग नहीं बन पाता है।
अमेरिका की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के रिचर्ड कैंपबेल सहित कई वैज्ञानिकों के एक समूह ने सर्फेक्टंट नामक यौगिक वाले एक मिश्रण का अध्ययन किया, जो तरल पदार्थों का पृष्ठीय तनाव कम करता है। अध्ययन में यौगिकों को समझने के लिए एक नए तरीके का जिक्र किया गया है। यह अध्ययन केमिकल कम्युनिकेशन नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ और यह तरल पदार्थ बनाने वालों के लिए उसमें बेहतर झाग बनाने में मदद कर सकता है।
ऐसे किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के तौर पर झाग बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए तरल पदार्थों पर न्यूट्रॉन की किरणें डालीं। शोधकर्ताओं में एक कैंपबेल ने कहा, ‘जब हम प्रकाश को किसी चमकदार वस्तु से प्रतिबिंबित होते देखते हैं, हमारा दिमाग उसे उसकी मौजूदगी से पहचानने में मदद करता है। ठीक उसी तरह जब तरल पदार्थ से न्यूट्रॉन प्रतिबिंबित होता है, तो हम कंप्यूटर की मदद से उसकी सतह के बारे में अहम जानकारियां पता लगा सकते हैं। इसमें अंतर यह है कि यह जानकारी सिर्फ आण्विक स्तर पर होती है, जिसे हम अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैं।’
उत्पादों की बढ़ेगी ब्रिकी
कैंपबेल ने कहा कि अभी तक शोधकर्ता तरल पदार्थों की सतह की सामान्य खूबियों के बारे में सोच रहे थे, न कि इस पहलू पर कि जब बुलबुले की सतह पर अलग-अलग अणु एकत्रित होते हैं, तो इसका ढांचा कैसे बनता है। शोधकर्ताओं मे कहा कि इस अध्ययन के फलस्वरूप भविष्य में बीयर पीने वाले हमेशा अपनी बोतल की पेंदी में बुलबुले यानी झाग का लुत्फ उठा सकेंगे। उनका कहना है कि इस अध्ययन से वाशिंग मशीन में डिटर्जेंट (सर्फ) के झाग को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है, जहां अपेक्षित झाग नहीं बन पाता है। कैंपबेल का कहना है कि यह अध्ययन कई उत्पादों की बिक्री बढ़ा सकता है।
नए तरीके की खोज की
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब सिर्फ एक योजक के साथ तरल पदार्थों से बने झागों की प्रकृति के बारे में समझने की कोशिश की जाती है, तो अधिक योजक युक्त तरल पदार्थ (जो असल उत्पाद में इस्तेमाल होते हैं) की जानकारी भ्रामक बनी रहती है। उन्होंने इन मिश्रणों में झागों या बुलबुले बनने की प्रक्रिया का अध्ययन किया, जिन्हें उनके तरल पदार्थ के नमूने से न्यूट्रॉन को प्रतिबिंबित करके फोम फिल्म के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत का प्रयोग करके एक नए तरीके की खोज की, जिसके जरिये फोम फिल्मों की स्थिरता को उसी तरीके से बरकरार रखी जा सकती है, जिस तरह योजक बुलबुले की सतह पर खुद को व्यवस्थित रखता है। उन्होंने अध्ययन किया कि आखिर इस प्रक्रिया ने बुलबुले को फूटने से बचने के लिए कैसे स्थिरता दी। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन की मदद से उत्पादक अपने उत्पाद को और बेहतर तरीके से उपभोक्ताओं को लिए पेश कर पाएंगे।