केंद्र सरकार ने मोटे अनाज की बिक्री और वितरण के दिशानिर्देश में किए बदलाव
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मोटा अनाज वर्ष 2023 की तैयारियों के तहत मोटा अनाज पर जारी दिशानिर्देशों में संशोधन किया है। इस वर्ग की फसलों की खेती, सरकारी खरीद और उपभोक्ताओं के बीच वितरण को लेकर नियमों में कई तरह के विसंगतियां थीं, जिसे तर्कसंगत बना दिया गया है। इससे मोटा अनाज की खेती को प्रोत्साहन मिलने के साथ उपभोक्ताओं के खानपान में प्रचलित होगा। मोटे अनाज की सरकारी खरीद और उसके वितरण को लेकर वर्ष 2014 में जारी दिशानिर्देशों को संशोधित कर दिया गया है। इसमें खरीद, आवंटन, वितरण और बिक्री को विनियमित किया गया था। इन दिशा निर्देशों में राज्यों को केंद्रीय पूल के तहत किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मोटा अनाज खरीद की अनुमति दी गई थी। इसके लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के परामर्श से राज्य सरकार के खरीद प्रस्ताव के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी थी।
दरअसल, मोटे अनाज की खरीद की अवधि समाप्त होने के तीन महीने के भीतर अनाज की पूरी मात्रा बांट देना जरूरी था। हाल के वर्षों में मोटे अनाज वाली फसलों की खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है। सरकारी खरीद का भी दबाव बढ़ा है। हालांकि राज्य सरकारों के समक्ष मोटे अनाज के वितरण को लेकर कई तरह की कठिनाई पेश आने लगी हैं। अनाज का बड़ा स्टाक और उसके भंडारण के साथ उसके वितरण की तीन महीने की सीमित अवधि से मुश्किलें आ रही थीं। इतने कम समय में इतने अनाज का वितरण करना संभव नहीं हो पा रहा था। लिहाजा राज्यों की ओर से नियमों में रियायत की मांग उठ रही थी। इसीलिए इसमें पर्याप्त संशोधन करते हुए इसकी अवधि बढ़ा दी गई है।
ज्वार और रागी के वितरण की अवधि बढ़ाई गई
ज्वार और रागी के वितरण की अवधि को तीन महीने से बढ़ाकर छह और सात महीने कर दिया गया है। इससे इन अनाजों की खरीद व खपत में बढोतरी होगी। राशन प्रणाली के तहत इसे बांटने में भी काफी सहूलियत होगी। मोटे अनाज की खरीद शुरू होने से पहले उपभोक्ता राज्यों को अपनी अग्रिम मांग को रखना होगा, जिससे अंतरराज्यीय परिवहन का प्रविधान भी निर्धारित समय से किया जा सकेगा।
मोटे अनाज की खरीद बिक्री और खपत बढ़ाने में मिलेगी मदद
नए दिशानिर्देशों से राशन प्रणाली के माध्यम से मोटे अनाज की खरीद बिक्री व खपत बढ़ाने में मदद मिलेगी। दरअसल इन फसलों की खेती असिंचित भूमि पर होती है और इसकी खेती सीमांत किसान करते हैं। इन फसलों की मांग बढ़ने से जहां उन्हें अच्छी कीमतें मिलेंगी वहीं किसानों का रुझान इन फसलों की खेती की ओर होगा, जिससे ज्यादा से ज्यादा किसानों को लाभ मिलेगा। सीमांत और गरीब किसान राशन प्रणाली के उपभोक्ता भी हैं। उन्हें एक रुपये प्रति किलों की दर से अनाज मिलेगा, जिससे उन्हें राहत होगी।