बच्चे के जन्म के बाद अक्सर न्यू पेरेंट्स के सामने कुछ इमोशनल चुनौतियां आती हैं, जानें, उनसे डील कैसे कर सकते हैं-

अक्सर लोगों को लगता है कि प्रेग्नेंसी की जर्नी खत्म होने के बाद सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। लेकिन, आपको बता दें कि आपकी यह अवधारणा बिल्कुल गलत है। क्योंकि प्रेग्नेंसी के बाद यानी जब डिलीवरी हो जाती है, उसके बाद नई किस्म की समस्याएं, नए सिरे से शुरू होती हैं। डिलीवरी के बाद माता-पिता दोनों के लिए नई तरह की चुनौतियां सामने आ जाती हैं और इनमें से कुछ इमोशनल प्रॉब्लम्स भी होती हैं। जरूरी है कि आप इन्हें वक्त रहते पहचान लें, वरना भविष्य में इसका असर पड़ सकता है। सुकून साइकोथैरेपी सेंटर की फाउंडर, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी से जानें इन समस्याओं के बारे में और इनसे निपटने का तरीका।

बेबी ब्लूज

न्यू पेरेंट्स को बच्चे के जन्म के पहले 12 सप्ताह में यह समस्या हो सकती है। आमतौर पर बेबी ब्लूज, मांओं को होता है। दरअसल, इस टाइम पीरियड के दौरान मांएं बहुत सेंसिटिव होती हैं, उनका स्वास्थ्य कमजोर होता है, बच्चे की नई-नई जिम्मेदारी आई होती है और जब वे उन सब चीजों को संभाल नहीं, तो आसानी से रो देती है। इस तरह के लक्षण बच्चे के जन्म के 3 से 5 दिनों बाद काफी ज्यादा उबरकर आते हैं। इस दौरान मां का मूड स्विंग भी काफी ज्याद होता है। विशेषज्ञों की मानें, तो इसके होने की एक वजह हार्मोनल बदलाव भी है।

एंग्जाइटी

न्यू पेरेंट्स अक्सर एंग्जाइटी का शिकार हो जाते हैं। दरअसल, बच्चा होने के बाद छोटी-सी बात भी बहुत ज्यादा परेशान करने लगती है, क्योंकि नए पेरेंट्स के लिए हर स्थिति नई होती है। वे अपने बच्चे का रोना नहीं समझ पाते, उसे कब भूख लगी है, उसे कब दिक्कत हो रही है, यब बातें नए पेरेंट्स के लिए नई और अंजानी होती है। ऐसे में पेरेंट्स के सामने जितनी चुनौतियां आती हैं, वे उसे आसानी से डील नहीं कर पाते, जिस्से उन्हें एंग्जाइटी होती रहती है।

एड्जेस्टमें करने में परेशानी

न्यू पेरेंट्स के लिए बच्चे को संभालना, घर में नए मेहमान का आना और उसके साथ अपने जीवन जीने के अंदाज को बदलना। यह सब बिल्कुल अलग होता है। कई बार पेरेंट्स इस तरह के स्थाई बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाते हैं, जिससे उन्हें एड्जेस्टमेंट प्रॉब्लम होने लगती है। हालांकि, इस तरह की परेशानियां अस्थाई होती हैं और समय के साथ-साथ सब कुछ ठीक होने लगता है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन

न्यू पेरेंट्स कई तरह के इमोशनल प्रॉब्लम फेस करते हैं, कई बार वह मेंटल हेल्थ इश्यूज में बदल जाते हैं। पोस्टपार्टम डिप्रेशन उन्हीं में से एक है। यह समस्या, विशेषकर मां को होती है। बच्चे के जन्म के बाद अक्सर मां इस तरह की परेशानी से गुजरती है। आमतौर पर, इस तरह की समस्या कुछ दिनों में अपने आप ठीक होने लगती है, लेकिन कुछ महिलाएं महीनों तक इसी अवस्था में रहती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने पर महिला का मूड स्विंग होता है, मन खराब रहता है, कुछ करने का मन नहीं करता है और बार-बार रोने का मन करता है। इस स्थिति में मरीज को दवा भी देनी पड़ती है साथ ही काउंसलिंग भी दी जाती है।

पोस्टपार्टम साइकोसिस

कई बार नई मां पोस्टपार्टम साइकोसिस का शिकार भी हो जाती हैं। हालांकि, यह बहुत कम मामलों में देखा जाता है। कई बार मरीज पोस्टपार्टम साइकोसिस और पोस्टपार्टम डिप्रेशन में कंफ्यूज हो जाते हैं। लेकिन आपको बता दें कि यह भी एक गंभीर बीमारी है। यह समस्या होने पर मरीज को असल ज़िंदगी से दूर हो जाता है। अगर बच्चे के होने के बाद ऐसा को लक्षण आपको दिखे, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।

इन समस्याओं से कैसे निपटें

न्यू पेरेंट्स कई तरह की इमोशनल-मेंटल हेल्थ की परेशानियां से गुजरते हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि उनका कोई समाधान नहीं है। पेरेंट्स को चाहिए कि बच्चा होने के बावजूद, पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए समय जरूर निकालें। जब भी वक्त मिले, एक-दूसरे के साथ इमोशनल इंटीमेसी यानी भावनात्मक अंतरंगता जरूर शेयर करें। इससे पति-पत्नी के बीच आई दूरियां धीरे-धीरे खत्म हो लगेंगी। इस तरह के उपाय आजमाने के बावजूद अगर समस्या का समाधान न निकले, तो बेहतर होगा कि एक बार मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से मिलें और उनसे प्रॉपर काउंसलिंग लें।

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