Lok Sabha Election 2019 : इस बार बिहार से मिलेंगे कई अहम सियासी सवालों के जवाब

पुलवामा में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में वायुसेना की साहसिक और सनसनीखेज कार्रवाई के बाद पूरे देश के साथ-साथ बिहार का भी चुनावी मन-मिजाज बदला-बदला सा है। नेता, नीति, एजेंडा, सियासी गठजोड़, जातीय व वर्गीय समीकरणों से अटे-गुंथे चुनावी महासमर में बिहार इन दिनों बेहद रोमांचक मोड़ पर खड़ा दिखाई देता है।

आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर अभी हाल तक राजनीतिक पंडित जहां सत्तारूढ़ राजग और विपक्षी महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर का अनुमान जता रहे थे, वहीं फिलहाल पलड़ा एक तरफ कुछ झुकता हुआ दिखाई दे रहा है। चाहे व्यक्तित्व या छवि की बात हो या फिर चुनावी गठबंधन या फिर नीति या उपलब्धियों की, इन तमाम मोर्चों पर राजग को बढ़त मिली हुई है।

हालांकि बिहार में जाति भी एक बड़ा फैक्टर है, जो दोनों खेमों को बढ़-चढ़कर दावे करने से रोक भी रही है। चुनाव कहीं न कहीं व्यक्तित्व और छवि की भी लड़ाई है। इस मामले में राजग के पास सबसे बड़ा तुरूप का पत्ता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

केंद्र में पांच साल की सरकार चलाने के बाद भी समाज के विभिन्न वर्गों में कमोबेश मोदी चर्चा में है। खासकर पाकिस्तान के खिलाफ हालिया एयर स्ट्राइक के बाद उनकी छवि एक मजबूत शासक के तौर पर और निखरी है। व्यक्तित्व या छवि की लड़ाई में राजग खेमे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बोनस की तरह हैं।

नीतीश की न सिर्फ अपनी एक छवि है, बल्कि आम तौर पर लोग उनकी सरकार के विकास के कार्यों और प्रदेश में कानून-व्यवस्था की हालत में सुधार के कायल भी हैं। राजग के पक्ष में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि इसका चुनावी गठजोड़ न सिर्फ समय से हो गया, बल्कि सीटों के बंटवारे को लेकर किसी प्रकार की किचकिच भी नहीं हुई।

भाजपा और जदयू को 17-17, जबकि लोजपा को छह सीटों का फार्मूला तय हुआ है। इसमें भाजपा को पिछली बार अपनी कई जीती हुई सीटें छोड़नी पड़ रही हैं। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बृहतर लाभ के मद्देनजर भाजपा ने बिहार में यह त्याग सहजता से किया और इसका राजग के कुल वोट बैंक पर अच्छा संदेश भी गया है। मतलब कि एकजुटता का संदेश देने में राजग महागठबंधन से आगे है।

पिछले दिनों गांधी मैदान में हुई राजग की रैली ने इस संदेश को और पुख्ता किया है। इन सबके बावजूद राजग की राह को एकदम आसान नहीं कहा जा सकता। सीटों का बंटवारा बेशक हो गया हो, लेकिन कई संसदीय क्षेत्र ऐसे हैं, जहां गठबंधन की एकता से ज्यादा जाति का फैक्टर हावी दिखाई देता है। मतलब कि चाहे ये सीटें गठबंधन के किसी भी दल के कोटे में जाए, जाति को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा।

कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जहां मौजूदा सांसद को बदलना गठबंधन की मजबूरी होगी। जाहिर है कि इस मोर्चे पर जदयू या लोजपा से ज्यादा दवाब भाजपा को झेलना है। दूसरी ओर, यदि विपक्षी महागठबंधन की बात करें तो वहां अभी सब कुछ तय नहीं दिखाई दे रहा है।

सीटों का फार्मूला क्या होगा, राजद अन्य घटक दलों, खासकर कांग्रेस को किस हद तक समायोजित करेगा, यह अभी तय नहीं हो पाया है। कांग्रेस को दस से बारह सीटें मिलने का अनुमान है, लेकिन प्रदेश नेतृत्व की अपेक्षा ज्यादा है।

खासकर पिछले महीने राहुल गांधी की प्रभावी रैली के बाद से कांग्रेस बिहार में घुटने टेकने के मूड तो कतई नहीं है। स्थानीय नेतागण केंद्रीय नेतृत्व को यह संदेश निरंतर दे रहे हैं कि अब प्रदेश में पार्टी के दोबारा से अपने पैरों पर खड़े होने का वक्त आ गया है। लिहाजा गठबंधन जरूर हो, लेकिन आत्मसमर्पण नहीं।

इसके अलावा अभी हाल तक राजग खेमे में शामिल रहे उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के अलावा जीतनराम मांझी की हम और मुकेश सहनी की वीआइपी जैसे घटकों की भी छोटी ही सही, लेकिन सीट केंद्रित मजबूत अपेक्षाएं हैं। आए दिन इनमें से कुछ के बागी तेवर भी सामने आते रहते हैं।

इस बीच, उत्तर प्रदेश में मजबूत आधार वाले गठबंधन की घटक सपा और बसपा ने भी यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि बिहार में उसे भी हिस्सेदारी चाहिए। बसपा ने तो दवाब बढ़ाते हुए एक कदम आगे जाकर सभी 40 सीटों पर ताल ठोंकने का एलान भी कर दिया है। जाहिर है कि विपक्षी खेमे में कई गुत्थियां अभी उलझी हुई हैं।

जहां तक वोट बैंक पर दावों की बात है तो महागठबंधन, खासकर राजद मुस्लिम-यादव (माई) समीकरण पर अपनी पुरानी दावेदारी का खम ठोंक रहा। चूंकि माई समीकरण बड़ा वोट बैंक है, इसलिए इसे लेकर कहीं न कहीं राजग की पेशानी पर बल भी है।

हालांकि राजग गठबंधन के रणनीतिकारों को सवर्णों के एकमुश्त वोट के अलावा महादलित और यादवों के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों के समर्थन का पक्का भरोसा है। पसमांदा मुसलमान पर भी नीतीश का कहीं न कहीं प्रभाव माना जाता है।

इन दिनों पूरे प्रदेश में राजग के घटक दल इस प्रचार-प्रसार को एक मुहिम के तौर पर संचालित भी कर रहे हैं कि किस तरह मोदी और नीतीश की जोड़ी (केंद्र और राज्य सरकार) ने मिल-जुलकर बिहार को पिछड़ेपन और गरीबी के दौर से बाहर निकाल लिया है।

गांवों से लेकर शहरों तक कामकाज दिखाई भी देता है। खासकर बिजली, सड़क और अपराध नियंत्रण के मोर्चे पर प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शराबबंदी के मुद्दे को भी महिला वोटरों ने हाथोंहाथ लिया है। राजग को इसका भी निश्चित रूप से फायदा मिलेगा। बहरहाल, बिहार बदलता हुआ दिखाई दे रहा है, लेकिन अभी यह देखना बाकी है कि आगामी आम चुनाव में यह बदलाव किस हद तक परिलक्षित होता है।

लोकसभा चुनाव 2014 सीट

भाजपा 29.40 22

राजद 20.10 04

जदयू 15. 80 02

रालोसपा 3.00 03

लोजपा 6.40 06

कांग्रेस 8. 40 02

राकांपा 1.20 01

विधानसभा 2015

भाजपा 24.4 53

राजद 18.4 80

जदयू 16.8 71

कांग्रेस 6.7 27

रालोसपा 2.6 02

हम 2.2 01

लोजपा 4.8 02

Related Articles

Back to top button