फिलीपींस: पश्चिम एशिया में खत्म होने के बाद इस देश में सिर उठा रहा है आइसिस

 फिलीपींस 7000 से भी ज्यादा द्वीपों वाला दक्षिण पूर्वी एशियाई देश है. इनमें से तीन द्वीप, लूजोन, विसायस और मिंदानाओ प्रमुख रूप से बड़े हैं. कभी स्पेन के अधीन रहा फिलीपींस 20वीं सदी में अमेरिका के कब्जे में रहा.  रिपब्लिक ऑफ फिलीपींस के आधिकारिक नाम वाले इस देश पर अमेरिका और स्पेन का बहुत ज्यादा प्रभाव स्पष्ट दिखता है. प्रशांत महासागर के पश्चिम में स्थित इस द्वीप समूह में भूकंप और ज्वालामुखी बहुत आते हैं. इसके अलावा भूमध्य रेखा के पास होने के कारण यहां अक्सर तूफान आते रहते हैं. फिलीपींस दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे आधुनिक देशों में से एक है जहां पूर्व और पश्चिम संस्कृति का बेहतरीन मिलन देखने को मिलता है, लेकिन आज यह खूबसूरत देश इस बात को लेकर चर्चा में है क्योंकि यहां आतंकी संगठन आइसिस सर उठा रहा है.

वर्तमान परिदृश्य 

तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के बावजूद फिलीपींस कई समस्याओं से घिरा देश है. ड्रग्स, मानव तस्करी, देह व्यापार जैसी समस्याओं की जड़ें बहुत गहरी हैं. इसके अलावा आज आतंकवाद भी यहां तेजी से सिर उठा रहा है. बाल वेश्यावृत्ति के मामले में यह देश में यह देश विश्व में चौथे नंबर पर आता है. आर्थिक रूप शानदार विकास होने के बाद भी यहां की समस्याएं कम नहीं हुई हैं. यहां के स्थानीय मुस्लिम उग्रवादी संगठनों का आइसिस का खुला समर्थन मिल रहा है. देश के दक्षिणी बड़े द्वीप मिंदानाओ में सक्रिय इन संगठनों की सरकार से सीधी लड़ाई चल रही है. बताया जा रहा है कि आज फिलीपींस में करीब 100 से ज्यादा विदेशी आतंकवादी हैं जो स्थानीय आतंकियों के सीधे संपर्क में हैं. पश्चिम एशिया में आइसिस के लगभग खत्म हो जाने के बाद अब फिलीपींस में ही सबसे ज्यादा आइसिस आतंकी रह गए हैं. ऐसे में फीलीपींस को ही आइसिस का नया ठिकाना माना जा रहा है. स्थानीय असंतोष की समस्या यहां कोई नई नहीं है. इसकी जड़ में यहां के इतिहास के साथ-साथ यहां की भौगोलिक स्थिति का भी योगदान है.

भौगोलिक स्थितियों एक नहीं होने दिया लोगों को

फिलीपींस द्वीप समूह ताइवान के दक्षिण, दक्षिण चीन सागर के पूर्व, मलेशिया के उत्तर पूर्व, इंडोनेशिया के उत्तर पश्चिम में स्थित है. इसके पूर्व में प्रशांत महासागर है और यह चीन, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, पलाऊ, वियतनाम और ताइवान से अपनी समुद्री सीमा साझा करता है. इसके बाद भी इस इलाके में आधुनिक सभ्यता विकसित होने के लिए जलवायु परिस्थितियां मानव सभ्यता के विकास के लिए अनुकूल नहीं रहीं. प्रशांत महासागर के आग के घेरे (रिंग ऑफ फायर) के पश्चिमी भाग में स्थित यह द्वीप समूह भूमध्य रेखा के करीब है, जिसका स्पष्ट प्रभाव यहां की जलवायु में दिखाई देता है. इसकी वजह से यहां बहुत सारे तूफान आते रहते हैं. उष्णकटिबंधीय वनों से ढके इन द्वीपों में बहुत से द्वीप ज्वालामुखी स्वभाव के हैं जिनमें से कुछ आज भी सक्रिय हैं. इतने सारे द्वीप होना यहां के लोगों को जोड़ नहीं पाया जिसका नतीजा यह हुआ कि यहां आधुनिक सभ्यता तो देर से आई ही आने के बाद भी यहां लोगों में संपर्क मुश्किल ही रहा.

द्वीपों ने अलग ही रखा लोगों को

इन द्वीपों का क्षेत्रफल 300,000 वर्ग किलोमीटर (115,831 वर्ग मील) है. यहां की जनसंख्या दस करोड़ 9 लाख है. फिलीपीनों और अंग्रेजी यहां की आधिकारिक भाषा है, लेकिन इसके बाद आज यहां 171 भाषा बोलने वाले लोग हैं. यहां प्रमुख (79.5%) धर्म ईसाई है जिसे स्पेन के लोगों ने फैलाया, लेकिन यहां मुस्लिम (9.5%) और अन्य धर्म के लोग भी रहते हैं. मुस्लिम धर्म के लोग दक्षिण के द्वीप मिंदानाओ में ज्यादा रहते हैं जो कि स्वायत्ता की मांग कर रहे हैं. उत्तरी द्वीप स्थित फीलीपींस की राजधानी मनीला यहां के सबसे बड़े शहरों में से एक है. आज का फिलीपींस भले एशिया का सबसे तेजी से पश्चिमीकृत हुआ देश हो, लेकिन इसकी वजह इसका इतिहास ही जो तमाम विषमताओं के बावजूद इसकी एक अलग इबारत लिखता है.

फिलींपींस के इतिहास में छिपें हैं इन सवालों के जवाब 

फिलीपींस में हजारों साल पुराने मानवों के अवशेष मिले हैं, जिनमें पुरापाषाण से लेकर नवपाषाण काल तक के अवशेष शामिल है. यहां की जलवायु के कारण अधुनिक सभ्यता यहां देर से पहुंची. ८वीं शताब्दी में चीनी व्यापारियों के आने और उसके शक्तिशाली बौद्ध साम्राज्यों के उदय के कारण इण्डोनेशिया द्वीप समूह, भारत, जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार शुरू हुआ, लेकिन यहां बड़ी सभ्यता नहीं पनप सकी, यहां तक की यहां के लोगों में आपस में भी ज्यादा गहरा संपर्क नहीं था. इसी वजह से यहां सांस्कृतिक विविधता ज्यादा है जो कि आज भी नजर आती है.

स्पेन ने बसाई आधुनिक सभ्यता

16वीं सदी में यहां स्पेन के लोगों ने आकर इस देश को बसाया और अपने राजा फिलिप द्वीतीय के नाम पर इस देश का नाम फिलीपींस रखा. कैथोलिक रोमन धर्म का प्रचार-प्रसार काफी हुआ जिससे आज यहां की ज्यादातर जनसंख्या ईसाई है. यहां नए स्पेन (आज का मैक्सिको) का शासन रहा. तीन सदियों तक शासन करने के बावजूद स्पेनी यहां के सभी लोगों को प्रभावित नहीं कर सके. उन्नीसवीं सदी में यहां के लोगों ने स्पेनी शासन के खिलाफ विद्रोह के सुर उठाए. उन्हें सफलता सदी के अंत तक ही मिली जब उन्हें स्पेनी लोगों को फिलीपींस से लगभग बाहर ही कर दिया, लेकिन 1898 में स्पैनिश-अमेरिकन युद्ध के बाद स्पेन ने संयुक्त राज्य अमेरिका को फ़िलीपीन्स दो करोड़ डॉलर में दे दिया और यहां 1901 तक अमेरिका का शासन स्थापित हो गया. अमेरिका शासन के दौरान यहां स्वायत्ता की मांग उठती रही. अमेरिकी सरकार भी यहां के लोगों को अधिकार देने में समय लगाती रही और 1946 में जाकर फिलीपींस अमेरिका से पूरी तरह से आजाद हो गया. इसी बीच धीमी गति से पश्चिमीकरण भी होता जा रहा था, लेकिन यहां के लोगों का स्थानीय प्रभाव नहीं छूटा.

अमेरिका से मुक्त होते होते शुरू हुआ विकास

4 जुलाई 1946 में अमेरिका से फिलीपींस को राजनैतिक आजादी तो मिल गई, लेकिन अमेरिकी प्रभाव से मुक्ति नहीं मिली. वहीं द्वितीय विश्व युद्ध में मनीला एक तरह से तहस नहस ही हो गया था. अमेरिका पर व्यापार में सीमा शुल्क बहुत ही धीरे शुरू हुए लोग और यहां तक कि शासन भी खुद को अमेरिका प्रभाव से मुक्त करने को बेकरार होने लगा. लंबे समय तक फिलीपींस में अमेरिका के सैन्य अड्डे रहे जिन्होंने वियतनाम युद्ध में खास भूमिका निभाई. 1965 में फर्दीनांद मार्कोस का राष्ट्रपति बनने के बाद कई नई परियोजनाएं शुरू हुईं जिसमें कहा जाता है कि बड़े पैमाने पर पैसा बहाया गया और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. 1972 में मार्कोस ने देश में मार्शल लॉ लगा दिया. मार्कोस का कार्यकाल मानव अधिकारों का हनन, सेंसरशिप और राजनैतिक दमन के दौर के रूप में याद किया जाता है. इस दौर में फिलीपींस के लोगों में भी संपर्क काफी हद तक बढ़ा, लेकिन उनमें सांस्कृतिक विविधता बहुत ज्यादा ही रही.

1986 से 20वीं सदी के अंत तक: आतंकवाद का उदय

1986 के चुनाव में मार्कोस को हार मिली और उन्हें देश छोड़ कर भागना पड़ा, जिसके बाद देश में पहली कोराजोन एक्वीनो (जिनके पति की हत्या कर दी गई थी) देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं. एक्वीनो के कार्यकाल में लोकतंत्र की वापसी तो हुई लेकिन भ्रष्टाचार, बढ़ता कर्ज, साम्यवादी उग्रवाद, सराकारों के तख्तापलट के प्रयास, मारो मुस्लिमों के अलगाववाद, प्राकृतिक आपदाएं जैसी समस्याएं छाई रहीं.

1990 के दशक में देश में थोड़ी राजनैतिक स्थिरता जरूर आई लेकिन देश की आर्थिक स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार आने के बजाय 20वीं सदी के अंत तक देश मंदी की चपेट में आ गया. इन आर्थिक उतार चढ़ाव के बीच यहां के लोगों की समस्याएं नहीं सुलझीं और दक्षिण के द्वीप मिंदानाओ, खासकर जोलो और बासिलान में रहने वाले मारो मुस्लिमों ने 1991 में अबु सैयाफ नाम का संगठन बनाकर आंतकवाद का रास्ता अपना लिया. इस आतंकवादी संगठन ने 4 अप्रैल 1995 को एक हमले में 53 लोगों की हत्या की और दूसरे देशों में अपनी जड़ें भी फैलाईं.

21वीं सदी में फिलीपींस

21 वीं सदी में ग्लोरिया मैकापैगल अरोयो के शासनकाल में फिलीपींस ने तेजी से आर्थिक उन्नति की लेकिन इसमें बढ़ता आतंकवाद प्रमुख समस्या थी साल 2000 से आतंकी हमलों की संख्या बढ़ती गई और आतंकवादी संगठनों की संख्या की भी. केवल वर्ष 2000 में ही अलग हमलों में 75 से ज्यादा लोग मारे गए. इस संगठन ने बम धमाकों से लोगों को मारने, अपहारण, यौन शोषण जैसे अपराधों को तेजी से बढ़ाया.

नहीं थमा आतंकवाद

2011 में राष्ट्रपति बने बेनिंग्यो एक्वीनो तृतीय को ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा जिससे उनके पड़ोसियों से संबंध खराब हो गए और देश में अस्थिरता भी बढ़ी. वहीं बेनिंग्यो एक्वीनो तृतीय ने आतंकवादियों से बातचीत भी शुरू की पर आतंकवादी घटनाओं में कमी नहीं आई. 2014 में एक बार फिर युद्ध विराम की स्थिति बनी लेकिन वह हकीकत नहीं बन पाई.

फिर भी उन्नति नहीं रुकी
इसी बीच अमेरिका का एक बार फिर फिलीपींस से रक्षा समझौता हुआ और अमेरिकी सेना की फिलीपींस में वापसी भी हुई. 2016 में रोड्रिगो दुतेर्ते ने राष्ट्रपति बनने के बाद ड्रग माफिया के खिलाफ कड़ा अभियान चलाया. इसके अलावा देश में कई आर्थिक कार्यक्रमों के साथ ही शिक्षा में सुधार अभियान भी चलाया गया और देश ने एक बार फिर आर्थिक उन्नति का अच्छा दौर देखा. दुनिया के 10 सबसे अच्छे शॉपिंग माल्स में से 3 फिलीपींस में हैं. इन सबके बावजूद इस देश की समस्याएं कुछ कम तो हुईं लेकिन कुछ ने जैसे गहरी पैठ बना ली थी जिसमें इस्लामिक आतंकवाद की समस्या प्रमुख है.

तो अचानक क्यों चर्चा में आ गया फिलीपींस

अभी तक आतंकवाद, खासकर इस्लामिक आतंकवाद को लेकर दुनिया का ध्यान पश्चिम एशिया में था जहां  2015 तक आइसिस (या आइलिस या आइएस) ने इराक और सीरीया का बहुत बड़ा इलाका अपने कब्जे में कर लिया था. लेकिन जब से यह घोषणा हुई कि इस क्षेत्र में आइएस का खात्मा हो गया है, तब लोगों का ध्यान फिलीपींस पर गया जहां आइसिस तालिबान के उदय के समय से सक्रिय है. अमेरिका का यह दावा कि उसने आइएस को खत्म कर दिया है, केवल पश्चिम एशिया कर सीमित रह गया. फिलीपींस अभी भी इस तरह के आतंकवाद से जूझ रहा है जिसे खत्म करना अमेरिका जैसे देश, जिसे वियतनाम में मुंह की खानी पड़ी थी, आसान नहीं होगा. अब दुनिया की निगाहें फिलीपींस पर टीकी हैं.

अर्थव्यवस्था

फिलीपींस दुनिया की 35वीं और एशिया की 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. यहां खनिजों की बहुलता (सोना और तांबा), पेट्रोलियम, नमक, लकड़ी प्रमुख प्राकृतिक स्रोत है. यहां के प्रमुख उद्योगों में इलेक्ट्रोनिक्स, कपड़े, जूते, फार्मेसी, केमिकल्स, लकड़ी की वस्तुएं, खाद्य प्रसंस्करण, पेट्रोलियम रिफाइनिंग आदि शामिल हैं. इसके अलावा गन्ना, नारियल, चावल, मक्का, केला, कसावा, अनन्नास, आम, अंडे मछली आदि कृषि उत्पादों में आते हैं. यहां की मुद्रा फिलीपीन पेसो है. ज्वालामुखी क्षेत्र होने की वजह से यहां खनिजों का भी भंडार है. दक्षिण अफ्रीका के बाद यहां सोने का सबसे बड़ा भंडार है. वहीं दुनिया में सबसे ज्यादा तांबा यहीं पाया जाता है. इसके अलावा यहां पर्यटन की भरपूर संभावनाएं हैं और दुनिया भर के लोग यहां की प्राकृतिक सौंदर्यता को निहारने आते हैं.

शासन व्यवस्था

फिलीपींस ने अमेरिका की तरह ही अध्यक्षीय शासन प्रणाली है, लेकिन यहां अमेरिका की तरह द्विदलीय व्यवस्था न होकर बहुदलीय व्यवस्था है. राष्ट्रपति छह साल के  लिए बहुल मतदान प्रणाली से चुने जाते हैं. दूसरे स्थान पर आने वाला व्यक्ति उपराष्ट्रपति होता है. इसके अलावा यहां अमेरिका की तरह सीनेट और प्रतिनिधि सभा वाली कांग्रेस भी है.

भारत और फिलीपींस 

भारत और फिलीपींस के सांस्कृतिक संबंध तो ऐतिहासिक हैं ही, पर हाल ही में भारत सरकार की लुक ईस्ट नीति से दोनों देशों के बीच संबंध और मजबूत हुए हैं. आसियान देशों से (जिसमें फिलीपींस शामिल है) भारत के संबंध तो मजबूत हैं ही, फिलीपींस से भारत अपने व्यापारिक संबंध मजबूत करता रहा है. सांस्कृतिक और संबंधों के अलावा भारतीय नौसैना और कोस्टगार्ड भी फिलीपींस की नियिमित रूप यात्रा कर रहे हैं जिसमें रक्षा संबंधी अहम सूचनाओं का आदान प्रदान होता है. अभी दोनों देशों के बीच काफी ऐसी संभावनाएं हैं जो दोनों के लिए परस्पर फायदे की साबित हो सकती हैं.

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