देश में प्लास्टिक सर्जरी के लिए तैयार होंगे ‘कृत्रिम त्वचा बैंक’, ये कृत्रिम त्वचा किफायती कीमत पर होगी उपलब्ध
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने मिलकर कृत्रिम त्वचा विकसित की है। फिलहाल इसका जानवरों पर ट्रायल चल रहा है, जिसके उत्साहजनक नतीजे मिले हैं। अगले साल मरीजों पर क्लीनिकल परीक्षण किए जाने की उम्मीद है। यह देश की महत्वपूर्ण चिकित्सकीय शोध परियोजनाओं में शामिल है। कृत्रिम त्वचा बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध होगी, जो प्रत्यारोपण के बाद असली त्वचा की तरह काम करेगी। एम्स के बर्न और प्लास्टिक सर्जरी के प्रमुख डॉ. मनीष सिंघल ने कहा कि प्लास्टिक सर्जरी में त्वचा की कमी होती है। कैडेवर डोनेशन से त्वचा बहुत कम मिल पाती है। उत्तर भारत में सिर्फ सफदरजंग अस्पताल में त्वचा बैंक है, लेकिन यहां पर नाम मात्र के लिए ही त्वचा दान हुआ है। इसलिए जरूरत पड़ने पर दक्षिण भारत से त्वचा मंगानी पड़ती है या मरीज के शरीर के किसी हिस्से से लेनी पड़ती है। ऐसे में एम्स के अंदर त्वचा बैंक खोलना जरूरी है। कृत्रिम त्वचा विकसित होने से इस समस्या का निदान भी होने की उम्मीद है। आइआइटी ने इसे विकसित कर लिया है। एम्स में चूहों पर किया गया इसका ट्रायल सफल रहा है, जबकि सुअरों पर ट्रायल अभी चल रहा है। इसके बाद क्लीनिकल परीक्षण के लिए ड्रग कंट्रोलर से स्वीकृति की जाएगी। उन्होंने कहा कि कई प्रकार के केमिकल्स व फाइबर का इस्तेमाल कर इसे तैयार किया गया है। उम्मीद है कि डेढ़-दो साल में कृत्रिम त्वचा उपलब्ध हो जाएगी। 40 फीसदी तक जलने के मामले में त्वचा की जरूरत होती है। हर साल देश में करीब एक लाख लोगों को त्वचा प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है।
एम्स में शुरू होगा एशिया का सबसे बड़ा बर्न सेंटर
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एशिया का सबसे बड़ा बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी सेंटर बनकर तैयार है। उसमें चिकित्सकीय सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। इस साल के अंत तक इसे शुरू कर दिया जाएगा। राष्ट्रीय प्लास्टिक सर्जरी दिवस पर एम्स में आयोजित कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि इस सेंटर में त्वचा बैंक सहित तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद होंगी। इसलिए यहां हाथ प्रत्यारोपण भी संभव हो सकेगा। इस बर्न सेंटर की क्षमता 102 बेड होगी जिसमें 30 आइसीयू बेड शामिल होंगे। बर्न के मामले में संक्रमण होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए सभी आइसीयू बेड के लिए अलग-अलग कमरे बनाए गए हैं। साथ ही अत्याधुनिक ऑपरेशन थियेटर भी होगा। विभाग के प्रमुख डॉ. मनीष सिंघल ने कहा कि सेंटर शुरू होते ही एक से दो साल के अंदर हाथ व फेशियल प्रत्यारोप भी शुरू किया जाएगा।