राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट जल्द की सुनाएगा ये अहम फैसला….
भारत के प्रधान न्यायधीश रंजन गोगोई की रिटायरमेंट का दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे कुछ मामलों पर फैसला देने की घड़ी भी नजदीक आ गई है। आपको बता दें कि रिटायरमेंट से पहले उन्हें पांच अहम मामलों में फैसला सुनाना है। इनमें से सबसे चर्चित मामला अयोध्या का है। दूसरा मामला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से जुड़ा है जबकि तीसरा मामला सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से जुड़ा है। चौथा मामला सीजेआई कोर्ट का आरटीआई के दायरे में लाने से जुड़ा है और पांचवां मामला राफेल लड़ाकू विमान सौदे (Rafale deal verdict) से जुड़ा है।
लंबे समय से विवाद
राफेल मामले पर काफी समय से विवाद चल रहा है। हालांकि भारत को इसकी खेप मिलनी भी शुरू हो गई है इसके बाद भी विवाद जिंदा है। इस पर आने वाले फैसले पर राजनीतिक पार्टियों समेत कई लोगों की निगाहें लगी हैं। आपको यहां पर बता दें कि बीते लगभग सभी चुनावों में विपक्ष ने इस मुद्दे को बड़े जोर-शोर के साथ उठाया था। हालांकि कोर्ट पहले ही 36 राफेल विमानों की खरीद के सौदे की निगरानी में जांच कराने की मांग खारिज कर चुका है। इसको अरुण शौरी और भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा समेत अन्य याचिकाकर्ताओं ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुनौती दी है।
एनडीए ने शुरू की थी कवायद
वायुसेना में शामिल मिग और जगुआर विमानों की खराब हालत और लड़ाकू विमानों की कमी को देखते हुए लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए कवायद शुरू की गई थी। पहले भारतीय वायु सेना की क्षमता को बढ़ाए रखने के लिए 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन की जरूरत थी जिसको बाद में 34 कर दिया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भारतीय वायु सेना की मांग के बाद 126 राफेल विमान खरीदने का पहली बार प्रस्ताव रखा था। लेकिन वाजपेयी सरकार के जाने के बाद इसको कांग्रेस ने आगे बढ़ाया और 2007 में इसकी खरीद को मंजूरी प्रदान की थी। इसके बाद बोली प्रक्रिया शुरू हुई और 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया। आपको बता दें कि यह सौदा उस एमएमआरसीए प्रोग्राम (मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट) का हिस्सा है जिसको एलसीए और सुखोई के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए शुरू किया गया था।
कई विमानों में चुना गया राफेल
इस प्रक्रिया में शामिल छह विमानों में से राफेल को फाइनल किया गया। इसकी कई वजहों में से ये भी थी कि य यह एक बार में तीन हजार से अधिक की दूरी तय कर सकता था। इसके अलावा इसकी कीमत अन्य फाइटर जेट से कम थी और रख-रखाव सस्ता था। राफेल के अलावा इस प्रक्रिया में अमेरिका का बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे लड़ाकू विमान शामिल थे। वर्ष 2011 में भारतीय वायुसेना ने राफेल और यूरोफाइटर टाइफून के मानदंड पर खरा उतरने की घोषणा की। वर्ष 2012 में राफेल को लेकर डसाल्ट एविएशन से सौदे की बातचीत शुरू हुई। हालांकि इसकी कीमत को लेकर यह बातचीत 2014 तक भी अधूरी रही।
सौदे से पहले गतिरोध
यूपीए सरकार के दौरान टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बने रहने की वजह से यह सौदा अंतिम रूप नहीं ले सका। दरअसल, सौदे के मसौदे में शामिल एक बिंदु पर डसाल्ट एविएशन राजी नहीं था। भारत चाहता था कि यहां पर तैयार होने वाले राफेल विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी भी कंपनी ले, लेकिन कंपनी इसके लिए तैयार नहीं थी। डसाल्ड के मुताबिक भारत में इसके उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत थी, जबकि एचएएल ने इसके तीन गुना अधिक मानव घंटों की जरूरत बताई थी। इसकी वजह से विमान पर आने वाली लागत काफी बढ़ जाती।
सहमति, समझौता और शर्त
- वर्ष 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान इस विमान को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ।
- इस समझौते में तय समय-सीमा के अंदर विमानों की आपूर्ति शामिल थी।
- इसके अलावा कंपनी को विमान से जुड़े सभी सिस्टम, हथियार भी तय मानकों के अनुरूप करने थे।
- समझौते के तहत विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी कंपनी की थी।
- वर्ष 2016 में इस सौदे को कैबिनेट से मंजूरी मिली। समझौते पर हस्ताक्षर होने के 18 माह के अंदर कंपनी को विमानों की आपूर्ति शुरू करनी थी।
यूं शुरू हुआ विवाद
फ्रांस से राफेल पर सौदे के बाद यूपीए ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उसने कहीं अधिक कीमत पर यह सौदा किया है। यूपीए का कहना था कि उनकी सरकार के मुकाबले एनडीए ने यह सौदा करीब साढ़े बारह सौ करोड़ रुपये अधिक में किया है। वहीं सरकार की तरफ से कहा गया है पहले सौदे में राफेल के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात कहीं नहीं थी जबकि महज मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस दिए जाने की बात कही गई थी। सरकार का दावा था कि सौदे के बाद फ्रांस की कपंनी मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने में सहायक साबित होगी।
कांग्रेस की मांग और सवाल
- विपक्ष लगातार सौदे से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग करता रहा।
- कांग्रेस का आरोप था कि उसके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि नरेंद्र मोदी सरकार 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ अदा कर रही है।
- कांग्रेस का आरोप था कि मोदी सरकार में एक राफेल विमान की कीमत 1555 करोड़ रुपये हैं जिसे यूपीए सरकार में 428 करोड़ रुपये में खरीदने की बात थी।
- कांग्रेस ने राफेल और मेक इन इंडिया पर सवाल उठाए।
- कांग्रेस के मुताबिक यूपीए सरकार के समय 108 विमानों की असेंबलिंग भारत में की जानी थी, जबकि 18 तैयार विमान भारत को मिलने वाले थे।
- इस सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी शामिल था।
- यूपीए ने सवाल उठाया कि सौदे को लेकर मोदी सरकार में हड़बड़ी क्यों थी।
- कांग्रेस ने इस सौदे में घोटाले का आरोप लगाया है।
- राहुल गांधी ने सदन में राफेल सौदे को 1 लाख 30 हजार करोड़ की डील बताया है।