Bastar News सरकार यहां अब तक नहीं बना पाई बिजली पहुंचाने की कोई भी योजना…

आजादी के 72 साल बीत चुके। इस दौरान देश ने बहुत तरक्की की। आज गिनती के ही गांव ऐसे होंगे, जहां बिजली न पहुंची हो। बीजापुर जिले के इंद्रावती टाइगर रिजर्व में बसीं चार पंचायतों के 33 गांव शाम होते ही अंधेरे में डूब जाते हैं। यहां निवासरत करीब पांच हजार आदिवासी आज भी आदिम युग की जिंदगी बिताने को मजबूर रहते हैं। बिजली पहुंचाने की तमाम योजनाएं बनीं। सुदूर गांवों तक बिजली पहुंची भी, लेकिन बस्तर के जंगलों में जहां बिजली के खंभे पहुंचाना संभव नहीं था, वहां अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण यानी क्रेडा के मार्फत सोलर लाइट लगा दी गई, पर इस इलाके में कोई योजना नहीं कारगर नहीं हुई।

सरकार यह बताते नहीं अघाती कि आज देश के हर घर में बिजली पहुंच चुकी है। हालांकि बीजापुर जिले के भोपालपटनम ब्लॉक का नेशनल पार्क का इलाका भी इसी देश में है, जहां पहुंचने पर तमाम सरकारी दावे झूठे साबित होने लगते हैं।

इंद्रावती नेशनल पार्क के कोर इलाके में सेंड्रा, बडेकाकलेर, एडापल्ली और केरपे पंचायतें हैं। इन पंचायतों में 33 गांव शामिल हैं। अति पिछड़े इस इलाके में वैसे तो सभी बुनियादी सुविधाएं नदारद ही हैं, पर यह जानकार आश्चर्य होता है कि यहां के आदिवासी बिजली क्या होती है यह जानते तक नहीं। आजादी के सात दशकों में धीरे-धीरे शिक्षा की रोशनी इन जंगलों तक भी पहुंची। पूरी न सही पर आधी आबादी आज शिक्षा पा चुकी है।

दशकों से बिजली की मांग की जाती रही है पर यहां तक बिजली कभी नहीं पहुंच पाई। आज भी आदिवासी चिमनी की रोशनी में रहते हैं। सरकार यहां तक बिजली पहुंचाने की कोई योजना ही नहीं बना पाई।

कभी पहुंचते थे विदेशी सैलानी

वनभैंसा, बाघ व अन्य वन्य पशुओं की वजह से इंद्रावती नेशनल पार्क को देश का एक महत्वपूर्ण नेशनल पार्क माना जाता है। कभी यहां घूमने के लिए विदेशी सैलानी भी आते थे। करीब चार दशक पहले नक्सलवाद ने इन जंगलों में विस्तार किया और अब यहां कोई नहीं जा पाता। जब नक्सलवाद नहीं था तब सरकार की इन जंगलों में अच्छी पकड़ थी। ग्रामीण कहते हैं कि आज तो यही बहाना है कि नक्सलियों की वजह से बिजली नहीं पहुंचाई जा पा रही है लेकिन जब यहां नक्सली नहीं थे तब भी कोई प्रयास नहीं किया गया।

बिजली देख चौंधिया गईं आंखें

नेशनल पार्क के फरसेगढ़ और भोपालपटनम से सटे गांवों में क्रेडा की ओर से सोलर लैंप लगाए गए पर उनके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया। पार्क के अंदर के गांवों में तो कभी कोशिश भी नहीं की गई। सेंड्रा के पूर्व सरपंच मेटा रामलाल और ग्रामीण इस्तारी मडे की उम्र 60 साल से अधिक है। उन्होंने अपनी सारी उम्र इसी इलाके में गुजारी है। वे कहते हैं कि जब कभी बीजापुर या बार्डर पार महाराष्ट्र गए तो वहां बिजली देख उनकी आंखें चौंधिया गईं।

– जिले के 256 गांवों में क्रेडा की ओर से सोलर लाइट लगाया जा रहा है। नेशनल पार्क की चारों पंचायत भी इसी कार्य योजना में शामिल हैं।- टीआर साहू, कार्यपालन अभियंता, विद्युत विभाग

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