शहरों को भीषण नुकसान से बचाएगा IIT खड़गपुर का ‘भूकंप मैप’
जब भी कोई भूकंप आता है, तो न वो मैदान देखता है और न ही शहर. उसके लिए सब बराबर हैं. कई बार तो शहर के शहर खंडर में तब्दील हो जाते हैं ऊपर से जान-माल का नुकसान होता है सो अलग. लेकिन ऐसी आपदाओं से लोगों को कैसे बचाया जाए? वो कौन सा तरीका हो जिससे भूकंप आने पर कम से कम नुकसान हो? इसी पर काम कर रहा है खड़गपुर IIT संस्थान. खड़गपुर IIT के वैज्ञानिक ऐसे मैप तैयार कर रहे हैं, जिससे पता चल जाएगा कि भूकंप आने पर किन-किन इलाकों में सबसे ज्यादा नुकसान होता है. इन मैप की मदद से राज्य सरकारों को पता चल जाएगा कि शहर में कहां-कहां ज्यादा अलर्ट की जरूरत है.
मैप का क्या फायदा होगा
दरअसल, मैप उन शहरों का है जहां सबसे ज्यादा भूकंप आता है. मैप के जरिए उन शहरों की पहचान हो सकेगी. खासकर पहाड़ी इलाकों में सरकारें इस बात के इंतजाम कर सकेंगी कि आपदा आने पर लोगों को जल्द से जल्द कैसे राहत मिले. बचाव टीमें किस तरह राहत पहुंचाने में समय बचा सकेंगी. इस शोध से राज्य सरकारों को ज्यादा जोखिम वाले इलाकों की पहचान तेजी से करने में मदद मिलेगी. इससे आपदा के समय में बगैर वक्त गंवाए प्रभावित इलाकों में राहत एवं बचाव टीमें भेजने में भी सहायता मिलेगी. आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर शंकर कुमार नाथ ने अपने 25 साले के काम के आधार पर ये रिसर्च की है. उन्होंने बताया कि कम से कम 10 लाख लोगों पर हिमालयी क्षेत्र में आने वाले भूकंपों से गंभीर रूप से प्रभावित होने का खतरा है.
भूकंप पर भारत की स्थिति
भूंकप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है. जोन-2 में दक्षिण भारतीय क्षेत्र को रखा गया है, जहां भूकंप का खतरा सबसे कम है. जोन-3 में मध्य भारत है. जोन-4 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों को रखा गया है, जबकि जोन-5 में हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ को रखा गया है. जोन-5 के अंतर्गत आने वाले इलाके सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं. दरअसल, इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है. यह हिमालय के दक्षिण में है, जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है, जिसमें चीन आदि देश बसे हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट की तरफ बढ़ रही है. यदि ये प्लेटें टकराती हैं तो भूकंप का केंद्र भारत में होता है.