सियासत है साहब! पहले नहीं खुलता था मुंह, अब फडफ़ड़ाने लगे
यूं तो टिकट नहीं मिलने पर दोनों गठबंधनों में असंतोष है, किंतु लालू प्रसाद यादव के जेल में होने से उनके कुनबे में कुछ ज्यादा ही खेल होने लगा है। लालू-राबड़ी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की सियासी यात्रा में पहली बार बेटिकट यात्रियों के डिब्बे में इतना शोर है, वरना एक दौर वह भी था, जब टिकट कट जाने पर पड़ोसियों को भी पता नहीं चल पाता था। खुद को कद्दावर बताने वाले भी आलाकमान का इंसाफ मानकर मुंह पर ताला लटका लेते थे। किंतु, अब वैसे पत्ते भी फडफ़ड़ाने लगे हैं, जो लालू के सामने डोलते भी नहीं थे। अब मुंह खोलते हैं। बहुत कुछ बोलते भी हैं।
सीतामढ़ी के पूर्व सांसद सीताराम यादव, झंझारपुर में राजद के मंगनीलाल मंडल, खगडिय़ा में कृष्णा यादव और मधुबनी में पूर्व केंद्रीय मंत्री एमए फातमी की व्यथा में तल्खी है। कृष्णा पर निष्कासन की गाज भी गिर चुकी है। बाकी नेताओं के बयान का बवंडर बनने का इंतजार है।
सीताराम के सपनों पर पानी, कनमना रहीं कांति
सीतामढ़ी में सीताराम के सपनों पर अर्जुन राय ने पानी फेर दिया है। पांच साल में उनकी लगाई-उपजाई फसलों को शरद यादव के सहारे काटने आ गए। काराकाट में पूर्व मंत्री कांति सिंह भी कनमना रही हैं। उन्हें उम्मीद थी कि राष्ट्रीय लोक समतापार्टी (रालोसपा) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के गठबंधन बदलने के बाद भी उजियारपुर के बदले उनकी सीट को छुड़ा लिया जाएगा। किंतु दोनों सीटों को रालोसपा के खाते में डाल दिए जाने से भरोसे का दम टूट गया। राजद के लिए अच्छा है कि झारखंड वाली अन्नपूर्णा देवी जैसा कांति के पास विकल्प नहीं है। वैसी हिम्मत भी नहीं। बेताबी भी नहीं।
बेटिकट हुए राजन, कोपभवन में विनोद
बेटिकट तो बेतिया वाले राजन तिवारी भी हो गए हैं। पटना से रांची तक बार-बार दौडऩा भी काम नहीं आया। मोतिहारी पर दावेदारी कर रहे विनोद श्रीवास्तव के साथ भी ऐसा ही हुआ। संबंध गहरे थे। कोशिश भी पूरी थी, किंतु साध अधूरी रह गई। सीट रालोसपा की झोली में चली गई और विनोद कोपभवन में।
शिवानंद ने बताया हाल-ए-दिल, फातमी भी खफा
विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) को मधुबनी गिफ्ट में मिल गया। फातमी खफा हो गए। नेतृत्व को अल्टीमेटम दिया है। टिकट उन्हें चाहिए नहीं तो फैसला कुछ भी होगा। अभी लालू के प्रति समर्पण की दुहाई दे रहे हैं।
शिवानंद तिवारी ने भी हाले-दिल बता दिया है। उन्हें आरा से टिकट का इंतजार था। लालू प्रसाद से इजहार भी किया, मगर काम नहीं बना। दुखी होना लाजिमी है। राजद और खुद शिवानंद के लिए सुखद यह है कि वे फातमी की तरह खफा नहीं हैं। वैसा तेवर नहीं दिखाएंगे, जैसा राज्यसभा के टिकट से वंचित होने पर नीतीश कुमार को दिखाया था। वृषिण पटेल ने दो बार बदला
कुनबा,महाचंद्र नाराज
रालोसपा, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और कांग्रेस को भी असंतुष्टों से पाला पड़ रहा है। वृषिण पटेल ने दो महीने में दो बार कुनबा बदला है। जीतनराम मांझी को छोड़कर उपेंद्र कुशवाहा की छतरी ओढ़ ली है। महाचंद्र प्रसाद सिंह को मांझी ने टिकट लायक नहीं समझा। अब अगले कदम का एलान कर दिया है।
टिकट पर टिकी लवली की सियासत
लवली आनंद की सियासत भी टिकट पर टिकी हुई है। महीने भर पहले कांग्रेस में आई थी। अब टिकट नहीं तो कुछ नहीं। वाल्मीकिनगर से कांग्रेस के दावेदार पूर्णमासी राम भी बहुत कुछ बोल रहे हैं। अर्जुन के विरुद्ध श्रीकृष्ण
असली करामात तो घर का चिराग ही दिखा रहा है। टिकट के लिए अड़े तेज प्रताप अपने अर्जुन के विरुद्ध ही कुरुक्षेत्र में खड़े हैं। उन्हें दो टिकट चाहिए। अपने लिए नहीं, बल्कि अपनों के लिए। भाई तेजस्वी ने टाल दिया तो बवाल शुरू कर दिया। अब श्रीकृष्ण की भक्ति को कुछ दिनों तक वृंदावन में विश्राम देकर अपना ‘लालू-राबड़ी मोर्चा’ बना महासमर में कूदने पर आमादा हैं। जहानाबाद और शिवहर में अपने चहेतों से पर्चा भरवाएंगे। मध्यस्थता जारी है। बीच का रास्ता नहीं निकला तो कम से कम दो सीटों पर लालू के कृष्ण अपने अर्जुन को कर्म का ज्ञान देंगे।उस तरफ भी धुआं-धुआं है
आग दोनों तरफ लगी है। टिकट से वंचित उधर भी बेचैन हैं। इधर-उधर झांक रहे हैं। हफ्ते भर में दल बदल ले रहे हैं। रात में कहीं और…सुबह कहीं और। दरभंगा वाले कीर्ति आजाद और पटना साहिबवाले शत्रुघ्न सिन्हा की राह पहले से तय थी।
टिकट कटने का सबसे बड़ा सदमा पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन को लगा है। भागलपुर से बेदखल होने पर खफा हैं। कहानी भी बताई है कि किसने उनका टिकट कटवाया। बांका से तैयारी कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता पुतुल कुमारी राजग के दायरे से निकल चुकी हैं। दल नहीं तो निर्दल ही सही। पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू पैदल होने के पहले ही कमल छोड़कर हाथ के साथ हो गए।